इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि पुलिस रिपोर्ट को निरस्त कर अदालतें उस पर संज्ञान नहीं ले सकतीं। ऐसा आदेश अवैध होगा। पुलिस रिपोर्ट को अस्वीकार कर कोर्ट उस पर संज्ञान ले सकती है। लेकिन प्रश्नगत मामले में पुलिस रिपोर्ट को निरस्त कर बगैर किसी रिपोर्ट के संज्ञान लिया गया है और परिवाद कायम किया गया है, जो विधि के विपरीत होने के कारण रद्द होने योग्य है।
कोर्ट ने अपर सत्र न्यायाधीश विशेष अदालत पाक्सो बिजनौर के समक्ष चल रहे आपराधिक मुकदमे की कार्यवाही को रद कर दिया है और अधीनस्थ अदालत को नये सिरे से आदेश पारित करने की छूट दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति राजीव मिश्रा ने शाहिद व तीन अन्य की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है।
जिसमें विशेष अदालत की कार्यवाही की वैधता को चुनौती दी गई थी। याचिका पर अधिवक्ता मिथिलेश कुमार तिवारी ने बहस की।
बिजनौर के अफजलगढ़ थाने में घटना के एक साल बाद शहनवाज उर्फ सानू, शाहिद, राशिद, शौकत व असलम के खिलाफ षड्यंत्र व दुष्कर्म के आरोप में प्राथमिकी दर्ज कराई गई। घटना 26 मई 18 की बताई गई और प्राथमिकी छह जून 19 को दर्ज कराई गई।
पुलिस ने विवेचना की। मेडिकल जांच रिपोर्ट में दुष्कर्म के साक्ष्य नहीं मिले। पीड़िता के बयान पर भी दुष्कर्म नहीं साबित हुआ तो पुलिस ने फाइनल रिपोर्ट पेश की। शिकायतकर्ता ने प्रोटेस्ट दाखिल कर विरोध किया। जिस पर विशेष अदालत पाक्सो ने पुलिस रिपोर्ट निरस्त कर दी और संज्ञान लेते हुए धारा 190 (1)(बी) के तहत केस दर्ज कर सम्मन जारी किया। जिसे याचिका में चुनौती दी गई थी।
याची अधिवक्ता मिथिलेश तिवारी का कहना था कि अदालत द्वारा पुलिस रिपोर्ट निरस्त करने के कारण संज्ञान लेने के लिए कोई रिपोर्ट कोर्ट में नहीं थी। वह पुलिस रिपोर्ट अस्वीकार कर संज्ञान ले सकती थी। ऐसा नहीं किया गया। इसलिए केस कार्यवाही व सम्मन अवैध है। जिसे कोर्ट ने सही माना।