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लेवाना सुइट्स अग्निकांड : शासन और एलडीए में ठनी, शासन कार्रवाई करने पर, तो एलडीए नाम न देने पर अड़ा

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होटल लेवाना अग्निकांड

लेवाना मामले में जांच समिति ने भले ही सरकार को अपनी रिपोर्ट दे दिया है, लेकिन लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) के जिम्मेदारों पर हुई कार्रवाई से आवास विभाग संतुष्ट नहीं हैं। एलडीए का प्रशासनिक विभाग होने के नाते आवास विभाग उन अधिकारियों पर कार्रवाई के लिए अड़ा हुआ है, जिन अधिकारियों के टेबल से  नक्शा पास करने से संबंधित पत्रावली गुजरी है। शासन चाहता है कि होटल के निर्माण वाले वर्ष से लेकर अब तक जो भी अधिकारी यह काम देखते रहे हैं, उन सबके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। शासन पहले ही इस बारे में एलडीए से दोषी इंजीनियरों के अलावा जिम्मेदार अधिकारियों के बारे में जानकारी मांग चुका है। इसके बावजूद   एलडीए यह जानकारी नहीं दे रहा है। लिहाजा इस मुद्दे पर शासन और एलडीए के बीच ठन गई है।

दरअसल आवास विभाग पहले दिन से ही होटल के अवैध निर्माण के लिए एलडीए द्वारा दोषियों के खिलाफ की जा रही कार्रवाई पर सवाल उठा रहा है। इसकी वजह यह रही है कि होटल में आग लगने के कुछ ही घंटे बाद एलडीए ने इस मामले में 22 इंजीनियरों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की संस्तुति करके शासन को भेज दिया था। इस पर  प्रमुख सचिव आवास नितिन रमेश गोकर्ण ने असंतोष जताते हुए एलडीए के उपाध्यक्ष से लिखित रूप से यह पूछा था कि ‘क्या होटल के अवैध निर्माण व संचालन के लिए सिर्फ इंजीनियर ही दोषी हैं, अन्य अधिकारी या कर्मचारी दोषी नहीं हैं?’ उन्होंने अन्य जिम्मेदार अधिकारियों व कर्मचारियों के बारे में तत्काल जानकारी उपलब्ध कराने के निर्देश दिए थे. लेकिन एलडीए की ओर से शासन को जवाब नहीं भेजा गया। अगले दिन शासन ने एलडीए के रिमाइंडर भेजकर अधिकारियों के बारे में जानकारी उपलब्ध कराने को कहा, फिर भी एलडीए ने शासन के उक्त निर्देश की अनदेखी कर दिया।

इसी बीच कमिश्नर और पुलिस कमिश्नर लखनऊ की संयुक्त जांच टीम ने शासन को रिपोर्ट सौंप दी तो एलडीए भी आवास विभाग द्वारा मांगी गई जानकारी देना भूल गया। लेकिन शासन अभी भी इस बात पर अड़ा है कि लेवाना प्रकरण में जिम्मेदार सभी अधिकारियों पर भी कार्रवाई हो, पर एलडीए अधिकारियों को बचाने पर अड़ा है। ऐसे में शासन अब इस प्रकरण के तह तक जाने के लिए लेवाना से संबंधित जमीन का पूरा ब्योरा जुटाने का काम शुरू कर दिया है। शासन स्तर पर इसके लिए कुछ अधिकारियों को लगाया गया है। सूत्रों के मुताबिक शासन जल्द ही इस मामले में एक नई जांच शुरू करा सकता है। इसके लिए कई बिंदु तैयार किया जा रहा है, ताकि इन बिंदुओं के आधार पर एलडीए से रिपोर्ट मांगी जा सके।

सही जांच हुई तो नपेंगे कई अफसर
शासन द्वारा तैयार किए जा रहे बिंदुओं के आधार पर यदि नये सिरे जांच हुई तो एलडीए में तैनात कई रसूखदार अधिकारियों की गर्दन भी फंसेगी। सूत्रों का कहना है कि 2017 के बाद एलडीए में सचिव, अवर सचिव, संयुक्त सचिव, विहित अधिकारी, संपत्ति अधिकारी के अलावा उपाध्यक्षों की भी गर्दन फंसेगी। इसलिए एलडीए इस मामले में लीपापोती करना शुरू कर दिया है। यही वजह है कि एलडीए प्रशासन अधिकारियों की गर्दन बचाने के लिए कमिश्नर लखनऊ की जांच कमेटी की रिपोर्ट के बहाने मामले को ठंडे बस्ते में डालने का प्रयास किया है।

होटल में पार्टी करने वाले अधिकारी भी निशाने पर
सूत्रों की माने तो शासन एलडीए के उन अधिकारियों के बारे में भी जानकारी जुटा रहा है जो अधिकारी 2017 से लेकर अब तक इस होटल में पार्टी करते रहे हैं। वहीं, उन अधिकारियों की सूची भी तैयार की जा रही है, जिन अधिकारियों के पास 2017 से लेकर अब तक नक्शा पास करने की जिम्मेदारी रही है।

ये भी प्रमुख तथ्य जुटाए जा रहे
– 1996 में सशर्त नक्शा पास करने वाले अधिकारी कौन हैं?
– छह महीने बाद निर्माण को आवासीय में परिवर्तित न कराने पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
– 1999 मे स्वैच्छिक शमन योजना में होटल के अवैध हिस्से को क्यों नियमित किया गया?
– 2001 में नक्शा पास करने में किन-किन अधिकारियों की भूमिका रही?

 

होटल अवैध तो कैसे दे दिया जीएसटी नंबर

होटल लेवाना सुइट्स अग्निकांड की जांच के दौरान राज्य कर विभाग की लापरवाही पर भी सवाल उठ रहे हैं। सवाल ये है कि जब एलडीए अफसरों एवं इंजीनियरों की सरपरस्ती में बना होटल अवैध था तो उसे राज्य कर विभाग ने जीएसटी नंबर कैसे वैध दे दिया। होटल संचालक ने बिजली कनेक्शन के बाद जीएसटी नंबर लिया और इसके जरिये आबकारी विभाग से बार लाइसेंस हासिल किया। अवैध होटल को बार लाइसेंस देने में आबकारी अफसरों पर तो कार्रवाई की गई, लेकिन जीएसटी नंबर देने वाले राज्य कर विभाग के अफसरों को छोड़ दिया गया।

नियमानुसार इलाकाई राज्य कर अधिकारी को जीएसटी नंबर जारी करने के 30 दिन के भीतर कारोबार स्थल का भौतिक रूप से सत्यापन कर जांच प्रक्रिया पूरी करनी पड़ती है। अधिकारी ने जांच के दौरान ओनरशिप का सत्यापन किस दस्तावेज से किया, यह भी सवाल है। राज्य कर विभाग ने होटल चलने के बाद ठहरने वाले ग्राहकों से जीएसटी भी हासिल किया। राज्य कर विभाग के सलाहकार गोविंद प्रसाद गुप्ता ने बताया कि कारोबारी को जीएसटी नंबर कारोबार स्थल और ओनरशिप (मालिक होने की पुष्टि ) की जांच करके जारी किया जाता है। जांच के दौरान दोनों का सत्यापन सही पाए जाने पर जीएसटी नंबर दिया गया होगा।

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