गंगा पर झूंसी में बने पूर्वांचल को जोड़ने वाले शास्त्री सेतु की सतह गहरे गड्डों में तब्दील हो चुकी है। इस सेतु को बनाने वाले इंजीनियर भी कितने गजब के रहे होंगे, इसका अंदाजा इसकी उखड़ कर टूट चुकी सतह से लगाया जा सकता है। हालत यह है कि पिछले एक दशक से इसकी मरम्मत नहीं कराई जा सकी है। इस दौरान सौ बार से अधिक उखड़ चुकी इस सेतु की सतह में लगाए जाने वाले पैबंद अब गिनती के दिनों तक नहीं टिक पा रहे हैं।
भारी वाहनों के दबाव से गड्डों में तब्दील हो चुकी इस सेतु की सड़क की मरम्मत की पीडब्ल्यूडी ने कई बार तैयारी की, लेकिन कभी बजट आड़े आया तो कभी डायवर्जन की समय रहते मंजूरी न मिलने से इसके गहरे जख्मों को टालना पड़ा। ऐसे में हर रोज वाहन सवार इन गड्डों में फिसल कर गिरने और चोट खाने के लिए अभिशप्त हो गए हैं। तीर्थराज प्रयागराज से काशी ही नहीं पूरे पूर्वांचल को जोड़ने वाले इस अहम सेतु को लंबे समय से मरम्मत का इंतजार है। करीब 60 हजार से अधिक वाहनों के रोजाना आवागमन वाले इस सेतु की मरम्मत न होने से हर कदम हादसों का डर बना रहता है।
शास्त्री सेतु से गुजरने वाली ऐतिहासिक ग्रैंड ट्रंक रोड पड़ोसी राज्य बिहार और पश्चिम बंगाल को भी संगम के शहर से जोड़ती है। लेकिन, समुचित रखरखाव के अभाव में इस सेतु के जहां कई पिलर और ज्वाइंट एक्सटेंशन क्षतिग्रस्त हो चुके हैं, वहीं इसकी बियरिंग भी कई बार खिसकने से बड़े हादसों की आशंका बनी रहती है। हालांकि उत्तर प्रदेश सेतु निर्माण निगम को जहां इसके पिलर और बियरिंग समेत अन्य तकनीकी पक्षों को लेकर रीमॉडलिंग की योजना बनाई गई है, वहीं पीडब्ल्यूडी की ओर से गड्डों में तब्दील हो चुकी इस सेतु की सड़क बनाने की योजना तैयार की गई है।
शास्त्री सेतु की गड्डों में तब्दील सड़क की मरम्मत के पीडब्ल्यूडी के प्रस्ताव को शासन की मंजूरी मिल गई है। लेकिन, बारिश से पहले रूट डायवर्जन की अनुमति न मिलपाने की वजह से इसे दुरुस्त नहीं कराया जा सका। अभियंताओं की मानें तो दशक भर पहले पुल की सतह की मरम्मत कराई गई थी, लेकिन उसके बाद सिर्फ गड्ढों को भरने की रस्म अदायगी ही की जाती रही है। ऐसे में लगातार भारी और ओवरलोड वाहनों के आवागमन की वजह से इस सेतु की सतह क्षतिग्रस्त होकर गई जगह गहरे गड्ढों में तब्दील हो गई है। इस सेतु के अनुरक्षण और रखरखाव की जिम्मेदारी पीडब्ल्यूडी के निर्माण खंड तृतीय को दी गई है। लेकिन, वह आंख मूंदे हुए हैं।
शास्त्री सेतु की की टूटी सड़क के बारे में अभी कुछ नहीं कह सकते। इसके बारे में पता करने के बाद ही टिप्पणी दी जाएगी। – रामशंकर यादव-अधीक्षण अभियंता, पीडब्ल्यूडी।
करीब 55 वर्ष पुराने शास्त्री सेतु में हर कदम पर पैबंद लगे और उखड़े हुए देखे जा सकते हैं। प्रयागराज और झूंसी के बीच गंगा नदी पर बने पुल के निर्माण का जिम्मा तब कोलकाता की निजी निर्माण इकाई जोशी एंड कंपनी को दिया गया था। सात साल काम करने के बाद कंपनी पुल के निर्माण को अधूरा छोड़ कर चली गई। इसके बाद ब्रिज कारपोरेशन ऑफ इंडिया ने इस अधूरे सेतु का निर्माण पूरा किया। वर्ष 1966-67 के आसपास इलाहाबाद अब प्रयागराज में गंगा नदी पर वाराणसी जाने वाले मार्ग पर पुल की नींव रखी गई थी। बाद में इस पुल को पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का नाम दे दिया गया।