ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी वाद सुनवाई योग्य है या नहीं, इस पर आज वाराणसी जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत अदालत में फैसला होगा। तीन महीने से ज्यादा समय तक चली सुनवाई में दोनों पक्षों ने अपनी दलीलें दी हैं। हिंदू पक्ष की ओर से इस मामले को सुनवाई योग्य करार देने के लिए कई साक्ष्य प्रस्तुत किए गए। उधर, मुस्लिम पक्ष ने इस वाद को खारिज कराने के लिए अदालत को सबूत सौंपे हैं। बेहद महत्वपूर्ण इस मामले में बहस के दौरान मुगल आक्रांता औरंगजेब तक के आदेशों का हवाला दिया गया है।
सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत की ओर से ज्ञानवापी परिसर में कराए गए सर्वे के बाद अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी सुप्रीम कोर्ट चली गई थी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने जिला जज की अदालत को ऑर्डर 7 रूल 10 के तहत सुनवाई का आदेश दिया था। इस मामले में न्यायालय इस बात पर सुनवाई कर रही थी कि आजादी के समय विशेष उपासना स्थल कानून ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले में लागू होता है या नहीं।
हिंदू पक्ष के अधिवक्ता सुभाष नंदन चतुर्वेदी ने कहा कि आदेश अपने पक्ष में आएगा, इसमें कोई संशय नहीं है। क्योंकि सारे साक्ष्य हम लोगों के पक्ष में है। कोर्ट स्वीकार करेगा कि यह मामला चलने योग्य है। गौरतलब है कि काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर आधा दर्जन से ज्यादा मुकदमे अलग-अलग कोर्ट में लंबित हैं।
अंजुमन इंतजामिया मसाजिद के अधिवक्ता मुमताज अहमद ने कहा कि आदेश जो भी आएगा उसे स्वीकार किया जाएगा। कोर्ट का आदेश ही माना जाएगा, उसके बाद जो प्रक्रिया होगी उसे किया जाएगा।
जिला जज की अदालत में चार महिला वादियों की ओर से सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अधिवक्ता हरिशंकर जैन और विष्णु जैन पक्ष रखा। इसमें उन्होंने 26 फरवरी 1944 के गजट को फर्जी करार दिया और दलील दी थी कि यह धौरहरा बिंदु माधव मंदिर के लिए था। बादशाह आलमगीर ने हिंदू मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई।
वादिनी राखी सिंह के अधिवक्ता मानबहादुर सिंह की दलील थी कि मंदिर के स्ट्रक्चर पर मस्जिद का ढांचा खड़ा कर दिया गया। यह विशेष उपासना स्थल एक्ट से बाधित नहीं है। औरंगजेब आतताई था और मंदिर तोड़कर मस्जिद बनवाया, लेकिन मस्जिद के पीछे मंदिर का दीवार छोड़ दी। वक्फ मामले में दीन मोहम्मद के केस का भी हवाला दिया गया है।
अंजुमन इंतजामिया मसाजिद के अधिवक्ता शमीम अहमद ने काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट एक्ट और विशेष उपासना स्थल कानून का हवाला दिया था। इसमें उन्होंने 1944 के गजट और 1936 के दीन मोहम्मद केस के निर्णय का हवाला दिया। इसमें उन्होंने दावा किया कि यह मस्जिद औरंगजेब के जमाने के पहले से है।
विशेष उपासना स्थल कानून 1991 का जिक्र कर कहा गया है कि अदालत में आजादी के बाद जो भी धर्म स्थल जिस रूप में होगा, उसी रूप में रहेगा। इसमें मुस्लिम पक्ष ने मामले को सुनवाई योग्य नहीं मानने के लिए दलील दी है।
18 अगस्त 2021 को पांच महिलाओं ने शृंगार गौरी के नियमित दर्शन-पूजन और विग्रहों की सुरक्षा को लेकर याचिका दायर की थी। इस पर तत्कालीन सिविल जज सीनियर डिविजन रवि कुमार दिवाकर ने कोर्ट कमिश्नर नियुक्त कर ज्ञानवापी का सर्वे कराने का आदेश दिया था। 16 मई 2022 को सर्वे की कार्यवाही के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 23 मई 2022 से इस मामले में जिला कोर्ट में सुनवाई चल रही है।