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शंकराचार्य को अयोध्या से था लगाव : जगद्गुरु स्वरूपानंद सरस्वती के निधन पर संत-धर्माचार्यों ने जताया शोक

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जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती

द्वारिका शारदा पीठ के शंकराचार्य जगद्गुरु स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के निधन पर संत-धर्माचार्यों ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि उनका साकेतवास अपूर्णनीय क्षति है। शंकराचार्य राममंदिर आंदोलन से जुड़े रहे। उनका अयोध्या से भी गहरा जुड़ाव रहा। वे कई बार अयोध्या आए थे। मंदिर निर्माण के लिए विहिप की दावेदारी से इतर जगद्गुरु स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती रामालय ट्रस्ट के माध्यम से लड़ाई लड़ते रहे। जानकीघाट बड़ास्थान के महंत जन्मेजय शरण बताते हैं कि जगद्गुरु स्वरूपानंद उनके गुरुदेव महंत मैथिलरमण शरण व लक्ष्मणकिलाधीश महंत सीताराम शरण के काफी करीबी थे। जब भी अयोध्या आते इन संतों के सानिध्य में रहते।

उन्होंने बताया कि अयोध्या आने पर ज्यादातर वे दीनबंधु नेत्र चिकित्सालय के समीप स्थित आरोग्य निकेतन में ठहरते थे। कहा कि वे अपनी बेबाकी के लिए जाने जाते थे। मंदिर निर्माण के लिए एक समिति भी गठित की थी और अदालत में मुकदमा भी लड़ा था। वे अयोध्या में दिव्य-भव्य मंदिर का निर्माण चाहते थे, उनकी स्मृति सदैव हमारे लिए प्रेरक रहेगी। जगद्गुरु परमहंसाचार्य ने कहा कि उनका निधन सनातन धर्म के एक युग का अंत है। उन्होंने अन्याय व पाखंड का सदैव विरोध किया वे न्याय के पक्षधर थे। महंत नागा रामलखन दास ने भी उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि संतों के प्रति उनकी अपार निष्ठा थी। मंदिर आंदोलन के महानायक कहे जाने वाले रामचंद्र दास परमहंस से भी उनकी खूब बैठती थी।

मंदिर निर्माण के लिए की थी रामकोट की परिक्रमा
आचार्य नारायण मिश्र ने बताया कि अपने बयानों के लिए चर्चा में रहने वाले जगद्गुरु स्वरूपानंद की मंदिर निर्माण के प्रति अपार निष्ठा थी। कहा कि 2005-06 में जब वे अयोध्या आए थे तब उन्होंने साधु-संतों के साथ मंदिर निर्माण के विघ्न-बाधाओं को दूर करने के लिए रामकोट की परिक्रमा की थी। वे अयोध्या, काशी व मथुरा की मुक्ति के लिए आजीवन संघर्षरत रहे। उनके निधन से जो रिक्तता उपजी है, वह भरी नहीं जा सकती।

राममंदिर के नाम पर दफ्तर बनाने का आरोप लगाया था 
श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट में ज्योतिर्मठ पीठ के शंकराचार्य के रूप में वासुदेवानंद सरस्वती को जगह देने पर भी शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने आपत्ति जताई थी। उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने चार फैसलों में वासुदेवानंद सरस्वती को न शंकराचार्य माना और न ही सन्यासी माना है। ज्योतिर्मठ पीठ का शंकराचार्य मैं हूं। ऐसे में प्रधानमंत्री ने ज्योतिर्मठ पीठ के शंकराचार्य के रूप में वासुदेवानंद सरस्वती को ट्रस्ट में जगह देकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना की है। शंकराचार्य स्वामी स्परूपानंद सरस्वती ने राम जन्मभूमि न्यास के नाम पर विहिप और भाजपा को भी घेरा था।

मंदिर ट्रस्ट की बैठक में दी गयी श्रद्धांजलि
श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की बैठक में भी शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के निधन पर शोक संवेदना व्यक्त की गई। ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बताया कि छोटी आयु सेे साधु जीवन में आ गए। उनका योगदान सदैव अविस्मरणीय रहेगा। बताया कि बैठक में पुरातत्ववेत्ता बीबी लाल के भी निधन पर भी शोक व्यक्त किया गया। कहा कि बीबी लाल पुरातत्व के सिरमौर माने गए। वर्ष 1975 में जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री हुआ करती थीं उस समय रामायण काल के स्थान कौन-कौन से हैं, ऐसे स्थानों का चयन करके वहां आधिकारिक रूप से उत्खनन किया गया था। बीबीलाल साहब ने अयोध्या आकर उत्खनन किया था। तीन गुंबद वाले ढांचे के दक्षिण व पश्चिम में उत्खनन किया गया था। उत्खनन में जो मिला था, ठीक वैसी ही आकृति वर्ष 2003 में शासन के निर्देश पर हुए उत्खनन में मिली थी।

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