लाल और सिंदूरी रंग की आभा वाले देश के सबसे महंगे रेड ग्रेनाइट में शामिल लखा ग्रेनाइट आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है। फर्श, फुटपाथ और पुल के निर्माण के लिए जैसलमेरी येलो सैंड स्टोन के साथ अब रेड ग्रेनाइट भी जैसलमेर की पहचान बन गया है। येलो के साथ अब जैसलमेर जिले के ग्राम लखा का रेड ग्रेनाइट भी जिले की प्रसिद्धि को शिखर पर ले जा रहा है। लखा ग्रेनाइट पत्थर ने अब सेंट्रल विस्टा की खूबसूरती में भी चार चांद लगाए हैं।
एक अनुमान के मुताबिक, देश की राजधानी नई दिल्ली में बने सेंट्रल विस्टा में लगभग दस लाख वर्ग फुट लखा ग्रेनाइट का उपयोग किया गया है। जैसलमेर से अब तक सप्लाई किये गए इस ग्रेनाइट को तराशने का काम राजस्थान के ही जालोर जिले में होता है।
स्थानीय जानकारों ने बताया कि जैसलमेर में इस ग्रेनाइट की खदानें तो हैं, पर बड़े पैमाने पर इसे तराशने के लिए औद्योगिक इकाइयों का अभाव है जो स्थानीय आवश्यकता को पूरी कर सकते हैं। पत्थरों को बड़े पैमाने पर तराशने का कार्य जालोर जिले में ही होता है। लखा ग्रेनाइट के कारोबारियों ने बताया कि हाल ही में जालोर की कई इकाइयों ने बड़े पैमाने पर सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट में ग्रेनाइट का उपयोग पैदल मार्ग, फर्श और कॉलम के निर्माण में किया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की महत्वाकांक्षी परियोजना सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट में जब से ग्रेनाइट के इस्तेमाल का निर्णय लिया गया है तब से ग्रेनाइट की मांग बढ़ी है।
जैसलमेर से 120 किलोमीटर दूर फतेहगढ़ तहसील के लखा गांव में लाल ग्रेनाइट निकलता है। ऐसा दावा किया जाता है कि यह देश का सबसे महंगा ग्रेनाइट है, जिसकी कीमत करीब 450 रुपये वर्ग फीट से भी ज्यादा है, जो मांग एवं आपूर्ति के हिसाब से घटती बढ़ती है।
दिल्ली में इंडिया गेट के पास निर्मित नेशनल वार मेमोरियल में सबसे ज्यादा लखा ग्रेनाइट का उपयोग किया गया। वार मेमोरियल को देश को समर्पित करते वक्त प्रधानमंत्री मोदी और तत्कालीन रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण को इस लाल पत्थर की खूबसूरती ने प्रभावित किया था। सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत संसद के नया भवन के अलावा कई सरकारी भवन, कर्तव्यपथ और इंडिया गेट के आस-पास भी इसका उपयोग देखा जा सकता है।
ग्राम लखा में ग्रेनाइट पत्थर के कारोबारी हरीश बताते हैं कि दिल्ली में बने कई जगहों में इसी लाल ग्रेनाइट का इस्तेमाल किया गया है। यह लाल ग्रेनाइट अपनी अनूठी लाल छाया के लिए प्रतिष्ठित है। इसकी एक चिकनी बनावट है। लाल रंग पर बहुरंगी माइक्रोपार्टिकल्स की तरंगें इस पत्थर को बहुत ही आकर्षक बनाती हैं। इसकी खूबसूरती इसके रंग में है। लाल और सिंदूरी रंग इसकी सबसे बड़ी पहचान है। इसी रंग की वजह से यह प्रसिद्ध है।
ऐसा दावा किया जाता है कि ऐसे रंग का अनूठा ग्रेनाइट दुनिया में और कहीं नहीं मिलता है। अधिकांश खदान मालिकों का कहना है कि कोरोना काल और मंंदी की मार के चलते लखा के खदान मालिकों पर भी असर पड़ा था। वर्त्तमान में इसी वजह से 65 में से केवल 20 खदान ही काम कर पा रही हैं। सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट से इनकी मांग बढ़ी हैै। इसे कई देशों में भी निर्यात किया जाता है। यहां 1990 में खनन की शुरुआत हुई थी। खदान मालिक कमल सिंह ने बताया कि लाल रंग की इस गुणवत्ता का लखा ग्रेनाइट दुनिया में कहीं और उपलब्ध नहीं है।