उत्तराखंड में नियुक्तियों का मामला शांत होने का नाम नहीं ले रहा है। वर्तमान विधानसभा में भी जिस तरह नेताओं के परिजनों को नियुक्ति दी गईं, उससे कांग्रेस के नेता जहां भाजपा पर ताबड़तोड़ हमले कर रही है वहीं भाजपा भी पलटवार कर कांग्रेस शासन की घपलेबाजी को उजागर करने से पीछे नहीं हट रही है लेकिन भाजपा सरकार में भर्तियों को लेकर बरती गई अनियमितता के कारण वह कठघरे में खड़ी हो गई है। संसदीय कार्य मंत्री पर जो तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष थे, पर भी सवाल उठाये जा रहे हैं।
उत्तराखंड विधानसभा बनने के बाद उत्तर प्रदेश से कुछ कर्मचारी आये थे लेकिन छोटी विधानसभा होने के कारण यहां पर कर्मचारी और अधिकारी अधिक हैं। आंकड़ों में देखा जाए तो राज्य गठन 2000 से 2022 तक 600 से अधिक कर्मचारियों को विधानसभा में सेवायोजित किया गया। जबकि विधानसभा न के बराबर चलती है। केवल औपचारिक आवश्यकताओं को छोड़ दिया जाए तो 600 से ज्यादा कर्मचारियों का बोझ उत्तराखंड विधानसभा ढो रही है। इसके विपरीत मंत्री या तो अपने आवास से कार्यालय चलाते हैं या फिर विभागों में बैठकर कामकाज निपटाते हैं। उन्हें 600 से ज्यादा कर्मचारियों का उपयोग नहीं है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने विधानसभा में हुई नियुक्तियों की जांच बात कहकर भाजपा सरकार की छवि खराब होने से बचा ली है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस इस मामले को बड़े स्तर पर उठाना चाहती है लेकिन कांग्रेस गोविंद सिंह कुंजवाल द्वारा की गई भर्ती पर चुप है।
यूकेएसएसएससी पेपर लीक मामले में सीएम धामी से मिले चयनित अभ्यर्थियों की भेंट को लेकर कांग्रेस भाजपा सरकार के खिलाफ वातावरण बना रही है जबकि भाजपा नेता रटा रटाया जवाब दे रही है। भाजपा महामंत्री आदित्य कोठारी का कहना है कि मुख्यमंत्री धामी ने इस पूरे मामले की जांच की बता कहकर सरकार और अपना पक्ष रख दिया है।
2000 से 2022 तक जिस तरह खास लोगों को नियुक्ति दी गईं और यह धंधा चलता रहा, वह शायद ही उचित ठहराया जाएगा। इसी संदर्भ में कांग्रेस नेता सुरेन्द्र कुमार का कहना है कि भाजपा ने अपने चहेतों को भरकर नियमों का उल्लंघन किया गया है, इसकी जांच होनी चाहिए लेकिन वह कांग्रेस विधानसभा द्वारा की गई भर्ती पर कोई जवाब नहीं दे सके।