बीएनए के थ्रस्ट सभागार में सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ की प्रस्तुति
खराब से खराब परिस्थतियों में आदमी जीने के रास्ते खोज ही लेता है। जीने के लिए सबसे जरूरी चीज है एक दूसरे का साथ, एक दूसरे को समझना सम्मान करना और आपस में प्यार। यही संदेश सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ की परिकल्पना व निर्देशन में नाटक मुन्तजिर ने दिया। नाटक का मंचन भारतेंदु नाटक अकादमी के थ्रस्ट सभागार में किया गया।
कहानी में दिखाया गया कि ईराक में आतंकी संगठन द्वारा बंधक बनाये गये तीनों कैदी जिन्दगी और मौत की अनिश्चित्ता अकेलेपन और उब से जूझते हुए समय काटने की तरह तरह के तरीके खोजतें हैं और आपस में लड़ते झगड़ते हुए जीने की कला सीख लेते हैं। इन तीनों में से एक अमरीकी है दूसरा पाकिस्तानी और तीसरा हिन्दुस्तानी है। व्यक्तिगत और राष्ट्रीय अस्मिताओं के कारण उनमें टकराव होता है, लेकिन मानवीय संवेदनाएं तीनों की सामान्य होती है।
धार्मिक कट्टरपन, पूंजीवाद आर्थिक साम्राज्यवाद आतंकवाद और बाजारवाद को बेनकाब करते हुए इनके कारण इंसानी रिश्तों और कोमल भावनाओं पर पढऩे वाले दुष्प्रभावों को भी ये नाटक रेखांकित करता है। नाटक में महिन्दर पाल सिंह, नितीश भारद्वाज, विनय कुमार मिश्रा और शुभम तिवारी ने अभिनय किया।
आशा खबर / शिखा यादव