इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महाधिवक्ता कार्यालय में आग से जली फाइलों का एक माह बाद भी पुनर्निर्माण न हो पाने को दुखद बताया है। कोर्ट ने कहा कि केस की सुनवाई स्थगित होने के कारण वादकारियों के हितों का नुकसान हो रहा है।
कोर्ट ने कहा सरकारी वकील को दो से तीन हफ्ते का समय दिया गया। कोई जानकारी उपलब्ध नहीं हो सकी। अनिश्चितकाल के लिए इसे जारी नहीं रखा जा सकता। कनिष्ठ अधिवक्ताओं पर पत्रावली की फोटो कापी शासकीय अधिवक्ता कार्यालय को उपलब्ध कराने का अतिरिक्त खर्च डालना उचित नहीं है।
कोर्ट ने कहा सरकार का कर्तव्य है वह फोटोस्टेट मशीन या अन्य माध्यमों से फाइल की कापी की व्यवस्था करे और विभाग सरकारी वकीलों को केस की जानकारी दे ताकि केस की सुनवाई हो सके। यह आदेश न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने विक्रम सिंह की अपील की सुनवाई करते हुए दिया है।
कोर्ट ने कहा कि सरकारी वकील व कोर्ट को इसकी कोई जानकारी नहीं है कि सरकार फाइल के पुनर्निर्माण के लिए क्या प्रयास कर रही है। कोर्ट ने प्रमुख सचिव विधि एवं न्याय को दो दिन में उठाए गए कदमों की जानकारी के साथ हलफनामा दाखिल करने अथवा अगली सुनवाई की तिथि 18 अगस्त को हाजिर होने का निर्देश दिया है।
अपर शासकीय अधिवक्ता ने कहा कि अपीलार्थी अधिवक्ता ने आग में रिकॉर्ड जलने की जानकारी के बावजूद फाइल की छाया प्रति नहीं दी। फाइल नहीं है और विभाग से कोई जानकारी भी उपलब्ध नहीं है। इसलिए सुनवाई स्थगित की जाए। यह भी बताया कि 329 नए केस सूचीबद्ध हैं, जिनमें से 289 केस की फाइल नहीं है। अतिरिक्त वाद सूची के 74 केस में से 73 की फाइल उपलब्ध नहीं है।
अपीलार्थी अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि उसने शासकीय अधिवक्ता कार्यालय को पत्रावली की छाया प्रति 27 जुलाई 22 को दे दी थी। सरकार कोई ठोस उपाय नहीं कर रही है। ऐसी ही स्थिति अन्य कोर्टों की भी है। केस की सुनवाई नहीं हो पा रही है। इस पर कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि यह स्थिति राज्य के लिए दुखद है। आग लगने के एक माह बीत जाने के बाद भी फाइलों के पुनर्निर्माण की ठोस व्यवस्था नहीं हो सकी।
आशा खबर / शिखा यादव