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नाग पंचमी पर नागों को दूध पिलाने से होती है अक्षय पुण्य की प्राप्ति

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नाग पंचमी पर नागों को दूध पिलाने की है परम्परा, शिव की भी होती है पूजा

श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को नागों की पूजा का विधान है। मान्यता है कि इस दिन सर्पों की पूजा कर उन्हें दूध पिलाने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति की होती है। ये परंपरा सदियों से चली आ रही है। इस बार दो अगस्त यानि की मंगलवार को नाग पंचमी का यह त्योहार पूरे विधि विधान से मनाया जाएगा। इस दिन प्रदेश के अलग-अलग शिव मंदिर और शिवालयों पर मेला भी लगता है।

लखनपुरी में नाग पंचमी खूब उत्साह और उल्लास से मनाई जाती है। यहां पर भक्त सुबह से शिवालयों में दर्शन के लिए जाते है। डालीगंज स्थित श्रीमनकामेश्वर मंदिर, चौक कोनेश्वर महादेव मंदिर, रानीकटरा के बड़ा शिवालय, नादान महल रोड श्री सिद्धनाथ मंदिर सहित शहर के अन्य शिव मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ती है। काॅलोनियों और मोहल्लों मे भी लोग नागों को दूध पिलाते देखे जाते हैं। इसके अलावा शाम को बच्चे रंग-बिरंगी छड़ियों से चौराहों पर गुड़ियां पीटी जाती है। यहां इंदिरा नगर में बी-ब्लाक स्थित शिव मंदिर पार्क, निशातगंज की चौथी गली के पार्क, पेपर मिल कॉलोनी के अलावा नरही, पुराने शहर के त्योहार की रौनक देखते ही बनती है। हुसैनगंज में सावन का मेला भी लगता है।

आसुरी प्रवृत्तियों के नाश के लिए परम्परा बनी

लोक साहित्यकार पद्मश्री डॉ. विद्या बिन्दु सिंह बताती है कि अवध क्षेत्र की लोक परम्परा में इस तिथि में विशेष तौर पर नागों को दूध पिलाने के परम्परा है। इस दिन खास तौर पर भीगे चने की घुघरी बनाकर खाई जाती है। पकवान भी बनते हैं। इस दिन कपड़ों की बनायी गई गुड़ियां पिटने की भी परंपरा है। इसके पीछे भी भोलेनाथ से जुड़ी एक कथा भी प्रचलित है। वे बताती है कि कपड़ों से बनी गुड़ियां पूतना राक्षसी का प्रतीक और लड़के बाल कृष्ण की कथा से भी जुड़ी है। आसुरी प्रवृत्तियों के नाश के लिए यह परम्परा बनी हुई है।

पितरों की भी होती है पूजा

लोक साहित्यकार डॉ. राम बहादुर मिश्र बताते हैं कि यह त्योहार का जहां एक ओर धार्मिक और पौराणिक महत्व है। वहीं, यह त्योहार जीवों के प्रति प्रेम का संदेश भी देता है। पर्यावरण संरक्षण और वनसम्पदा के बचाव में भी नागों की महत्वपूर्ण भूमिका बताई गई है। उन्होंने बताया कि त्योहार के दिन काजल पारकर दीवारों पर नाग-नागिन बनाए जाते हैं। उसके बाद उन पर दूध, धान का लावा, अक्षत, फूल इत्यादि चढ़ाए जाते हैं। वह इस दिन पितरों की पूजा भी की जाती है।

बताते हैं कि इस त्योहार का संबंध परिवार के लड़कियों से हैं। इस तिथि में बहन-बेटियां मायके आती हैं फिर हर्षोल्लास और परम्परा से त्योहार मनाया जाता है। शाम को बेल के डंडे से लड़के गुड़ियां पीटते हैं।

आशा खबर / शिखा यादव 

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