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बिहार में ईंट भट्ठा अनिश्चितकाल के लिए बंद, दस लाख से अधिक मजदूर करेंगे पलायन

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बंदी का बैनर एवं मजदूर

सरकार बिहार से श्रमिकों का पलायन रोकने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। मनरेगा सहित अन्य योजनाओं के माध्यम से स्थानीय स्तर पर काम उपलब्ध कराने के दावे किए जा रहे हैं लेकिन सभी प्रयास के बावजूद बेगूसराय सहित बिहार के सभी जिलों से दस लाख से अधिक श्रमिकों के पलायन की प्रक्रिया शुरू हो गई है।

यह पलायन बिहार ईंट निर्माता संघ द्वारा राज्य के सभी जिलों में ईंट चिमनी भट्ठा के अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले जाने के कारण हुआ है। ईंट चिमनी भट्ठा संचालन में होने वाली परेशानी को देखते हुए अखिल भारतीय एवं बिहार ईंट निर्माता संघ के आह्वान पर पूरे बिहार में करीब छह हजार भट्ठा संचालन आज से बंद कर दिया गया है। जिसके कारण यहां से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े 50 लाख से अधिक लोगों के समक्ष भुखमरी की समस्या उत्पन्न हो गई है। अपने परिवार की जीवन रक्षा के लिए स्थानीय स्तर पर काम नहीं मिलने के कारण अब इन चिमनी पर काम करने वाले दस लाख से अधिक श्रमिक पलायन की तैयारी में जुट गए हैं।

बेगूसराय में आयोजित प्रेस वार्ता में बिहार ईंट निर्माता संघ के प्रदेश अध्यक्ष मुरारी कुमार मन्नू ने बताया की कोरोना काल से पीड़ित भट्ठे वाले को बिना कोई सरकारी सहायता के भट्ठे का संचालन करना पड़ा है। पिछले वर्ष सीजन के शुरुआत से असमय बारिश में कच्चे ईंटों के गलने से कच्चे ईंटों कि कमी हुई, कोयला की अनुपलब्धता एवं पूंजी के अभाव में बार-बार भट्ठे कि आग बुझ जा रही थी। बिहार माइनिंग कार्पोरेशन द्वारा पर्याप्त मात्रा में कोयला आवंटित नहीं किए जाने से भट्ठा चलाना मुश्किल हो गया। ढाई गुना अधिक दाम पर निम्न क्वालिटी का कोयला मिलने से खपत भी अधिक हो रहा है। उत्पादन में होने वाली परेशानी और हानि के मद्देनजर मजबूर होकर उत्पादन बंद करना पड़ रहा है, मजदूरों को हटाना पड़ रहा है।

बेगूसराय ईंट निर्माता संघ के अध्यक्ष अरविन्द कुमार, सचिव बबलू कुमार, कोषाध्यक्ष सुधीर कुमार एवं पप्पू कुमार ने बताया कि सरकारी कार्यों में लाल ईंट का प्रतिबंध, इसके मुख्य ग्राहक निम्न एवं मध्यमवर्गीय लोग लाल बालू की कमी तथा आर्थिक संकट के कारण ईंट खरीद कर घर बनाने में असहजता महसूस कर रहे है। जिससे आर्थिक संकट से जूझ रहे ईंट निर्माताओं को अपने लागत पूंजी से टैक्स देना पड़ रहा है। ईंट निर्माण में उत्पादन लागत चार गुणी बढ़ गई, लेकिन सात वर्षों में ईंटों के सरकारी दर में वृद्धि नहीं होने के कारण भट्ठा मालिक दो-तीन वर्षों से कर्ज में डूब चुके हैं।

लाल ईंट निर्माण का कार्य ग्रामीण क्षेत्रों के लिए पूंजीगत व्यवस्था का वरदान है। जहां पर बेरोजगार मजदूर को ग्रामीण क्षेत्रों के मनरेगा कार्य से पांच गुणा अधिक मजदूरी मिलता है। भट्ठा मजदूर अपने इस रोजगार के साधन को बंद होते देख चिंतित हैं और भट्ठे के गैर सीजन में अग्रिम राशि लेकर अपना जीवकोपार्जन करने वाले असहज हैं। सरकार जीएसटी के पुराने दर एवं कोयला सस्ते दर पर उपलब्ध कराना सुनिश्चित करे, लाल ईंट का सरकारी मूल्य पुनः निर्धारित करे। नदियों एवं नहरों के गाद और पोखर उड़ाही की मट्टी ईंट निर्माताओं को सहज उपलब्ध कराए, कोयला का कोटा बढ़ा कर उपलब्धता हो, बैंकों से सस्ते दर पर ऋण उपलब्ध कराए तो ग्रामीण क्षेत्रों के मजदूरों के चेहरे पर फिर से मुस्कान आ जाएगी। फिलहाल अनिश्चितकाल के लिए ईंट उत्पादन बंद कर दिए जाने से काम कर रहे मजदूरों में हड़कंप मचा हुआ है तथा वे लोग परदेस पलायन करने की तैयारी में जुट गए हैं।

आशा खबर / शिखा यादव 

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