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सम्पादकाचार्य विष्णु राव पराड़कर के जीवन पर बने धारावाहिक को दूरदर्शन पर दिखाने की अपील

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सम्पादकाचार्य विष्णु राव पराड़कर

—जागृति फाउंडेशन के सदस्य प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय कार्यालय में ज्ञापन देंगे

हिन्दी पत्रकारिता के भीष्म पितामह, सम्पादकाचार्य विष्णु राव पराड़कर के जीवन पर आधारित धारावाहिक ‘क्रांति लेखा’ को दूरदर्शन पर दिखाने के लिए जागृति फाउंडेशन ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से अपील की है।

फाउंडेशन के महासचिव रामयश मिश्र ने बुधवार को बताया कि प्रधानमंत्री के गुरूधाम जवाहर नगर स्थित संसदीय कार्यालय में ज्ञापन देकर भी मांग किया जायेगा। बताया कि वर्तमान समय में अतरंगी टीवी चैनल पर प्रसारित टीवी श्रृंखला परशुराम के निर्माता दिलीप सोनकर का अगला अति महत्वाकांक्षी धारावाहिक क्रान्ति लेखा के निर्माण की योजना पिछले वर्ष बनाई जा चुकी है। इस धारावाहिक को दूरदर्शन के ज़रिए पूरे देश के लोगों तक चहुंचाने का प्रयास हो रहा है।

मिश्र ने बताया कि धारावाहिक को प्रसारित करने के लिए दूरदर्शन महानिदेशालय, नई दिल्ली से अनुमति मांगी गई है। टीवी श्रृंखला क्रान्ति लेखा में बाबू राव विष्णु पराड़कर को जीवन्त किया जाएगा। मिश्र ने बताया कि धारावाहिक के निर्माण और प्रसारण में हो रही देरी का कारण दूरदर्शन के उच्चाधिकारियों की उदासीनता है। धारावाहिक के निर्माण की सारी तैयारियां प्राय: प्रोडक्शन हाउस ने पूरी कर ली हैं। दूरदर्शन पर इसे प्रसारण के लिए पिछले साल ही आवदेन किया गया था। इस धारावाहिक निर्माण के लिए कई बार केंद्रीय सूचना, प्रसारण मंत्रालय को अवगत भी कराया जा चुका गया है।

उन्होंने बताया कि इस टीवी श्रृंखला में बाबूराव विष्णु पराड़कर के जीवन और उनके आंदोलनों को केंद्रित किया गया है। पराड़कर जी के ऐतिहासिक योगदान को देखते हुए इस टीवी श्रृंखला का नाम क्रान्ति लेखा रखा गया है। धारावाहिक के निर्माता काशी निवासी दिलीप सोनकर ने भी वाराणसी के सांसद एवं देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील की है कि दूरदर्शन पर इसके लिए जगह दिलाये।

उल्लेखनीय है कि बाबूराव विष्णु पराड़कर हिन्दी के जाने-माने पत्रकार, साहित्यकार एवं हिन्दी सेवी थे। उन्होंने हिन्दी दैनिक ‘आज’ का सम्पादन किया था। भारत की आज़ादी के आंदोलन में अख़बार को बाबूराव विष्णु पराड़कर ने दोधारी तलवार की तरह उपयोग किया। पराड़कर जी ने जो मिसाल कायम की थी, उसका देश के अखबारों ने आपातकाल के दौरान इस्तेमाल किया और कई दिनों तक अपने संपादकीय स्थान खाली छोड़े। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सख्ती के कारण संपादकीय छापने पड़े, लेकिन संपादकों ने किसी मंत्री-संत्री का नाम लिखना ही बंद कर दिया, केवल पद लिख कर संकेत कर दिया जाता था। इस तरह सम्पादकाचार्य पराड़कर जी के सत्ता के प्रति विरोध के इस तरीके का इस्तेमाल ४५ साल बाद १९७५ में संपादकों की नई पीढ़ी ने किया। अंग्रेजों के जमाने में प्रेस पर पाबंदी के विरोध में जिस तरह पराड़करजी ‘रणभेरी’ नामक पत्र सायक्लोस्टाइल पर निकाल कर घर-घर बांटते रहे, उसी तरह का प्रयोग आपातकाल के दौरान भी सफलतापूर्वक दुहराया गया।

आशा खबर / शिखा यादव 

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