इलाहाबाद हाईकोर्ट में ज्ञानवापी मस्जिद और विश्वेश्वरनाथ मंदिर विवाद मामले में मंगलवार को मस्जिद पक्ष (याची) की ओर से बहस की गई। सुन्नी वक्फ बोर्ड और अंजुमने इंतजामिया मस्जिद कमेटी दोनों पक्षों ने इस बात पर जोर दिया कि क्योंकि मंदिर पक्ष यह स्वीकार कर रहा है कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई है। मस्जिद 15 अगस्त 1947 को अस्तित्व में रही है। लिहाजा, प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट-1991 के तहत मस्जिद के स्वरूप में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता है। मंदिर पक्ष की ओर से निचली अदालत में दाखिल मुकदमा पोषणीय नहीं है। उस पर सुनवाई नहीं की जा सकती है।
सुन्नी वक्फ बोर्ड और अंजुमने इंतजामिया मस्जिद कमेटी की ओर से दाखिल याचिकाओं पर न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया की खंडपीठ सुनवाई कर रही थी। मंगलवार को सुनवाई के दौरान मंदिर पक्ष की ओर से कोई बहस नहीं की गई। याची पक्षों ने ही अपने तर्क और रिकॉर्ड प्रस्तुत किए और उनके आग्रह पर कोर्ट ने मामले में पहले से पारित अंतरिम आदेश को 31 अगस्त तक केलिए बढ़ा दिया। इसके साथ ही अगली सुनवाई की तारीख तीन अगस्त निश्चित कर दी।
इसकेपहले सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सैयद फरमान अहमद नकवी ने कोर्ट केसामने सुप्रीम कोर्ट के विट्ठलभाई, मंजू रानी, मो. असलम सहित आधा दर्जन से अधिक केसों का हवाला दिया। कहा कि जो कुछ हुआ 17वीं शताब्दी में हुआ। 15 अगस्त 1947 से पहले हुआ। 1991 में जब प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट लागू हुआ तो मस्जिद अपने अस्तित्व में थी।
एक्ट की धारा चार के तहत इसके स्वरूप में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि निचली अदालत (वाराणसी की जिला अदालत) में चल रहे मुकदमे में मंदिर पक्ष की ओर से यह आरोप नहीं है कि हिंदुओं को पूजा करने से रोका गया हो या रोका गया है। मस्जिद कमेटी और मंदिर पूजा कमेटियों के बीच संबंध व्यावहारिक हैं। विवाद होने पर दोनों पक्ष आपस में उसे हल करते हैं। अब कुछ बाहरी लोग हैं जो इस तरह का मुकदमा कर लोगों को गुमराह कर रहे हैं।
यूपी सरकार ने अपने गजट में मस्जिद को घोषित किया है वक्फ संपत्ति
अंजुमने इंतजामिया मस्जिद कमेटी की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता पुनीत कुमार गुप्ता ने तर्क दिया कि उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने 26 फरवरी 1944 के गजट में ज्ञानवापी मस्जिद को वक्फ संपत्ति घोषित किया है। 15 अगस्त 1947 को मस्जिद अपने अस्तित्व में थी। मंदिर पक्ष यह कह रहा है कि विश्वेश्वर नाथ मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई। इसलिए प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट के तहत उसके स्वरूप में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता है।
इसके अलावा उन्होंने अंग्रेजों केसमय में चलाया गया दीन मोहम्मद के मुकदमे का जिक्र किया। कहा कि इस मुकदमे में 1936 में यह आदेश पारित हुआ कि मस्जिद के दायरे के बाहर मुसलमान नमाज नहीं पढ़ेंगे यानी मस्जिद के भीतर मुसलमान नमाज पढ़ सकता है। गजट के बाद वह वक्फ संपत्ति है। इसलिए उसके स्वरूप केसाथ छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है। उन्होंने इन तर्कों के हवाले से निचली अदालत में चलाए जा रहे मुकदमे को गैर पोषणीय बताया। कहा कि इस पर सुनवाई नहीं हो सकती है।
आशा खबर / शिखा यादव