राज्य उपभोक्ता आयोग ने एलडीए के गोमतीनगर और गोमतीनगर विस्तार योजना में किसी भी भूखंड के आवंटन, पंजीकरण, हस्तांतरण और नीलामी पर रोक लगा दी है। आयोग ने 39 साल बाद भी गोमतीनगर योजना में आवंटित भूखंड पर आवंटी को कब्जा नहीं देने पर शुक्रवार को यह आदेश दिया। आयोग ने इस मामले में वर्ष 2015 में ही भूखंड पर कब्जा दिलाने का आदेश दिया था। एलडीए राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग पहुंचा मगर उसे राहत नहीं मिली। अगली सुनवाई 16 अगस्त को होगी।
राज्य उपभोक्ता आयोग के चेयरमैन जस्टिस अशोक कुमार और सदस्य राजेंद्र सिंह ने एलडीए वीसी डॉ. इंद्रमणि त्रिपाठी को अगली तारीख पर खुद उपस्थित होकर यह बताने को कहा है कि चार साल से आयोग के पूर्व आदेशों का अनुपालन आखिर क्यों नहीं कराया जा सका? आयोग ने एलडीए वीसी को समुचित जांच व संबंधित अफसरों के स्पष्टीकरण के साथ उपस्थित होने को कहा है।
‘एलडीए वीसी को बताना होगा कि राज्य व राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के आदेश के बाद भी अनुपालन नहीं किए जाने के चलते एलडीए के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई व हर्जाना क्यों न लगाया जाए?’
– राज्य उपभोक्ता आयोग
एलडीए की कारस्तानी… 39 सालबाद भी नहीं दे पाया भूखंड
आवंटी के वकील ने आयोग को बताया कि उसे गोमतीनगर की जगह शारदानगर विस्तार योजना में भूखंड देने का प्रस्ताव दिया गया, मगर वह आवंटी को उपयुक्त नहीं लगा। हालांकि जिला उपभोक्ता आयोग के ही आदेश पर एक और मामले में एलडीए ने आवंटी ओएन सिंह को गोमतीनगर के विराटखंड में 2/271 भूखंड आवंटित किया है।
आयोग के सामने तथ्य रखा गया कि गोमतीनगर योजना में रिक्त कई भूखंडों को माफिया संग सांठगांठ कर जाली दस्तावेज से रजिस्ट्री कर बेच दिया गया। एलडीए सचिव की ओर से ऐसे 13 भूखंड भवन की रजिस्ट्री निरस्त कराने के लिए वाद दायर किए जाने की जानकारी आयोग को दी गई। हालांकि, एलडीए ने तर्क दिया कि फ्रॉड कर निबंधन करा दिए जाने का मतलब यह नहीं कि भूखंड रिक्त हैं। इनका आवंटन किसी और को भी हो सकता है।
आयोग को 50 और भूखंड रिक्त होने और कब्जा मुक्त कराए जाने की जानकारी मिली। आवंटी ने एक आरटीआई के हवाले से आयोग को बताया कि गोमतीनगर विस्तार में भी 353 भूखंड रिक्त हैं। इसको आधार मानते हुए आयोग ने गोमतीनगर और गोमतीनगर विस्तार योजना के भूखंडों की बिक्री पर रोक लगा दी है।
पैसा लौटाने का दावा, लेकिन सुबूत नहीं
एलडीए ने आयोग को बताया कि आवंटी का रिफंड वर्ष 2010 में किया जा चुका है, लेकिन, उसने रिफंड वाउचर उपलब्ध कराए जाने से मना कर दिया। एलडीए भी रिफंड देने का सुबूत नहीं दे सका। आयोग ने अब नए आदेश में हर्जाने की रकम 10 हजार से बढ़ाकर 50 हजार रुपये कर दिया है। साथ ही एलडीए को उपभोक्ता विधि सहायता कोष में भी 50 हजार जमा कराने को कहा है।
जवाब देने तक नहीं पहुंचे अधिकारी
आयोग ने आपत्ति जताई कि एलडीए अधिकारी जैसे सचिव, अपर सचिव और खुद वीसी भी जवाब देने के लिए मौजूद नहीं हुए। इसके उलट व्यस्त होने का तर्कदेकर सुनवाई से छूट मांगी जाती रही।