यदुवंशी समाज की वार्षिक कलश यात्रा निकली,समाज का ध्वज और डमरू बजाते युवकों का समूह बना आकर्षण
कोरोना के चलते पूरे दो साल बाद सावन के पहले सोमवार पर यदुवंशियों ने बाबा विश्वनाथ सहित विभिन्न शिवमंदिरों में पूरे ठसक और उत्साह के साथ जलाभिषेक की वर्षों पुरानी परम्परा निभाई।
चंद्रवंशी गोप सेवा समिति के बैनर तले जुटे हजारों यादव बंधुओं ने श्री गौरी केदारेश्वर महादेव का जलाभिषेक कर यात्रा शुरू की। जो अपने पारंपरिक मार्गों से होते हुए तिलभाण्डेश्वर महादेव, शीतला माता अहिल्येश्वर महादेव का जलाभिषेक किया। इसके उपरांत यदुवंशी मानमंदिर घाट से जल लेकर डेढ़सीपुल, साक्षी विधायक, ढुंढिराज गणेश, अन्नपूर्णा मंदिर होते काशी विश्वनाथ दरबार में पहुंचे और बाबा का जलाभिषेक किया। इसके बाद विश्वनाथ धाम से ललिता घाट से जल लेकर यात्रा के छठे पड़ाव महामृत्युंजय मंदिर की ओर रवाना हुए। इस दौरान यादव समाज का ध्वज और डमरू बजाते युवकों का दल लोगों में आकर्षण का केन्द्र बना रहा। बाबा दरबार से यादव बंधु महामृत्युंजय, त्रिलोचन महादेव, ओमकारेश्वर महादेव, लाट भैरव का जलाभिषेक कर यात्रा का समापन करेंगे।
सावन के पहले सोमवार पर बाबा के जलाभिषेक की ये परंपरा लगभग 90 साल से चली आ रही है। पहली बार यादव समाज की ये परंपरा 1932 में शुरू हुई जो अब तक निर्बाद रूप से जारी है। यहां तक कि पिछले दो साल जब कोरोना संक्रमण के चलते सारी परंपराएं भी टूट गईं। तब भी चंद्रवंशी गोप सेवा समिति ने सांकेतिक रूप से परंपरा को जीवित रखा और सीमित संख्या में ही बाबा का जलाभिषेक किया था।
चंद्रवंशी गोप सेवा समिति के प्रदेश अध्यक्ष लालजी यादव का कहना है कि सन 1932 में पड़े अकाल के समय बाबा विश्वनाथ के जलाभिषेक की परम्परा शुरू हुई थी। तब से अब तक इस परम्परा का निर्वहन निरंतरत जारी है। इस परंपरा की शुरुआत पांच यदुवंशियों ने की थी। काशी के शीतला गली निवासी भोला सरदार, कृष्णा सरदार, बच्चा सरदार तथा ब्रह्मनाल निवासी चुन्नी सरदार और रामजी सरदार घनिष्ठ मित्र थे।
इन यदुवंशियों ने लोगों को अकाल से बचाने के लिए सावन माह के पहले सोमवार को बाबा विश्वनाथ का जलाभिषेक किया था। काशीवासियों को अकाल से जूझते देख इन सभी ने संकल्प लिया कि यदि उनके जलाभिषेक के बाद वर्षा हो गई, तो अगले वर्ष से संपूर्ण यदुवंशी समाज के साथ मिलकर हमेशा बाबा का अभिषेक करेंगे।
आशा खबर / शिखा यादव