इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कई ऐतिहासिक फैसलों का जिक्र करते हुए कहा कि अंतरिम आदेश केमाध्यम से बर्खास्तगी आदि के आदेश को अदालत में लंबित कार्यवाही केदौरान रोका नहीं जाना चाहिए। कोर्ट ने मामले में एकल पीठ के बर्खास्तगी पर रोक लगाने के आदेश को रद्द कर दिया।
कहा कि याची का मामला विचाराधीन मामले के अधीन होगा। यह आदेश न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ ने मेरठ के वाइस चेयरमैन एब्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी बनाम यूपी राज्य और 4 अन्य की विशेष अपील पर सुनवाई करते हुए दिया है।
कोर्ट ने कहा कि क्योंकि याची अब अपने दायित्वों का निर्वहन पहले से ही कर रहा है तो उसे रोका नहीं जाएगा और उसे वेतन का भुगतान किया जाएगा। लेकिन उसकी बर्खास्तगी का आदेश विचाराधीन मामले के अधीन होगा। मामले में याची की ओर से अधिवक्ता अनूप त्रिवेदी और विभु राय ने बहस की। उनका तर्क था कि चेयरमैन ने छह अप्रैल 2021 को बर्खास्त कर दिया था।
मामला कोर्ट में विचाराधीन है। बीच में प्रतिवादी की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए एकल पीठ ने एक अंतरिम आदेश पारित कर बर्खास्तगी पर रोक लगा दी और उसे सेवा के लिए बहाल करते हुए वेतन के भुगतान का आदेश दे दिया। इससे विचाराधीन मामले का कोई औचित्य ही नहीं रह गया। इस पर चेयरमैन ने याचिका दाखिल की। याचिका में कहा गया कि एकल पीठ द्वारा इस तरह का अंतरिम आदेश पारित नहीं किया जाना चाहिए था।
इस तरह के आदेश से विचाराधीन मामले में निर्णय लेने के लिए कुछ भी शेष नहीं रहेगा। खंडपीठ ने याचिका को स्वीकार करते हुए एकल पीठ के आदेश पर रोक लगाते हुए कहा कि कर्मचारी की बर्खास्तगी का आदेश विचाराधीन मामले के अधीन होगा।
आशा खबर / शिखा यादव