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जीएसटी कर व्यवस्था वर्तमान में अपने मूल उद्देश्य के विपरीत: कैट

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कारोबारी संगठन कैट के लोगो का फाइल फोटो 

–कैट ने कहा, भारत में औपनिवेशिक कर प्रणाली बन गई है जीएसटी

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की वर्तमान व्यवस्था अपने मूल उद्देश्य से पूरी तरह भटक गई है। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने तंज कसते कसते हुए कहा कि यह एक औपनिवेशिक कर प्रणाली मात्र बन कर रह गई है, जो जीएसटी के मूल घोषित उद्देश्य ‘गुड एंड सिंपल’ टैक्स के ठीक विपरीत है।

कारोबारी संगठन कैट ने कहा कि वर्तमान में जीएसटी कर व्यवस्था भारत में हो रहे व्यापार की जमीनी हकीकत से काफी हद तक दूर है। जीएसटी के तहत 1100 से ज्यादा संशोधनों और नियमों की शुरुआत ने इस कर प्रणाली को बेहद जटिल बना दिया है, जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इज ऑफ डूइंग बिज़नेस की मूल धारणा के खिलाफ है।

कैट के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने सोमवार को सूरत में सधर्न गुजरात चैंबर ऑफ कामर्स द्वारा आयोजित व्यापारियों के एक सम्मेलन तथा सूरत टैक्स बार एसोसिएशन के वकीलों की बैठक को संबोधित करते हुए जीएसटी की खामियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने जीएसटी कर ढांचे की नए सिरे से समीक्षा कर उसे सरल बनाने की मांग की।

खंडेलवाल ने जीएसटी के वर्तमान स्वरूप की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि भारत में जीएसटी लागू होने के लगभग 4 साल बाद भी जीएसटी पोर्टल अभी भी कई चुनौतियों से जूझ रहा है। इसके नियमों में कई संशोधन किया गया है, लेकिन ये पोर्टल उक्त संशोधनों के साथ समय पर अद्यतन करने में विफल रहा है, जबकि अभी तक किसी भी राष्ट्रीय अपीलीय न्यायाधिकरण का गठन नहीं किया गया है।

उन्होंने कहा कि जीएसटी कर व्यवस्था में ‘वन नेशन-वन टैक्स’ के मूल सिद्धांतों को अपने तरीके से कानून की व्याख्या करने के लिए राज्यों को खुली छूट दी गई है। कोई केंद्रीय अग्रिम शासक प्राधिकरण का गठन नहीं किया गया है। जीएसटी अधिकारी ई-सिस्टम के तहत कर प्रणाली का पालन तो कराना चाहते हैं लेकिन देश में व्यापारियों के बड़े हिस्से को अपने मौजूदा व्यवसाय में कंप्यूटरीकृत व्यवस्था को अपनाना अभी बाकी है।

कैट महामंत्री ने कहा कि इस विषय पर कभी नहीं सोचा गया और व्यापारियों को कंप्यूटर से लैस करने के लिए कोई कदम भी नहीं उठाया गया। हाल ही में जीएसटी के तहत एक नियम लागू कर अधिकारियों को किसी भी व्यापारी के जीएसटी पंजीकरण को रद्द करने का मनमाना अधिकार दिया गया है, जिसमें व्यापारियों को कोई नोटिस और सुनवाई का मौका भी नहीं दिया जाएगा। यह व्यवस्था न्याय के प्राकृतिक सिद्धांत के विरुद्ध है। खंडेलवाल ने कहा कि अधिकारियों को मनमाने अधिकार भी दिए जा रहे हैं, जिससे निश्चित तौर पर भ्रष्टाचार को और बढ़ावा मिलेगा।

उन्होंने कहा कि जीएसटी कानून को विकृत किया गया है, जो इस तथ्य से स्पष्ट है कि 31 दिसंबर, 2020 तक जीएसटी लागू होने के बाद से कुल 927 अधिसूचनाएं जारी की गई हैं, जिसमें 2017 में 298, 2018 में 256, 2019 में 239 और 2020 में 137 सूचनाएं शामिल हैं। ऐसी स्थिति में हम व्यापारियों से कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वे कराधान प्रणाली का समय पर अनुपालन करें। खंडेलवाल ने कहा कि वे वित्त मंत्री के साथ बातचीत के जरिए इन मुद्दों को हल करना चाहते हैं। वह आधार को विस्तृत करने, राजस्व में वृद्धि करने में सरकार का साथ देने चाहते हैं लेकिन कर ढांचे के सरलीकरण और युक्तिसंगत बनाना पहले जरूरी है।

आशा खबर / उर्वशी विश्वकर्मा

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