महिला निर्देशकों की खासियत यह होती है कि जब वह महिलाओं के इर्द गिर्द कोई कहानी बुनती हैं तो वह महिलाओं के भावनात्मक पहलू को पर्दे पर सही तरीके से पेश करती है। एक महिला होने के नाते महिलाओं के जीवन में आने वाली कठिनाइयों और सुख दुख को सही तरह से समझ सकती है। लेकिन, फिल्म ‘सुखी’ में महिलाओं की भावनाओं का कोई ऐसा पहलू नहीं है जो सिर्फ एक महिला लेखक या महिला निर्देशक के ही बूते की बात हो। नवोदित निर्देशक सोनल जोशी ने महिलाओं की आम समस्याओं पर फिल्म का निर्माण किया है। और, इस फिल्म को भावनात्मक तौर पर पर्दे पर सही तरीके से पेश नहीं कर
फिल्म ‘सुखी’ की मुख्य कड़ी सुखप्रीत कालरा की भूमिका निभाने वाली अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी है। लेकिन फिल्म में सबसे ज्यादा निराशाजनक अभिनय उनका ही रहा। फिल्म के भावनात्मक दृश्यों में वह बहुत ही कमजोर दिखीं। वह सुखप्रीत कम शिल्पा शेट्टी ज्यादा दिखती हैं। टीवी शो ‘कहीं तो होगा’ के जरिए अपनी अच्छी पहचान बना चुके अभिनेता चैतन्य चौधरी ने शिल्पा शेट्टी के पति गुरु की भूमिका निभाई हैं। काफी हद तक वह अपनी भूमिका निभाने में सफल रहे। अमित साध के अभिनय में अब बमन ईरानी की झलक दिखने लगी है। फिल्म में कुशा कपिला का काम कमाल है। वह न सिर्फ शिल्पा शेट्टी से ज्यादा आकर्षक दिखी हैं, बल्कि अपनी परफॉर्मेंस से सबका ध्यान भी आकर्षित करती हैं। फिल्म के बाकी कलाकारों का अभिनय सामान्य है। फिल्म की सिनेमैटोग्राफी अच्छी है, फिल्म के सिनेमैटोग्राफर आर डी ने दिल्ली को फिल्म में बहुत खूबसूरती के साथ पेश किया है। फिल्म का संकलन और बैक ग्राउंड म्यूजिक सामान्य है।