पृथ्वी के 14 दिन बीतने के बाद चंद्रमा पर अगले 14 पृथ्वी दिवस के बराबर घनी अंधियारी रात आएगी। इस अवधि में यान के कई उपकरण स्लीप मोड में जाएंगे, लेकिन तापमान माइनस 180 से माइनस 250 डिग्री तक गिर सकता है, यान सौर ऊर्जा भी नहीं ले पाएगा।
अंतरिक्ष उपयोग केंद्र अहमदाबाद के निदेशक निलेश एम देसाई ने कहा कि चंद्रयान-3 अभियान के 3 हिस्से हैं। यान की सॉफ्ट लैंडिंग, रोवर प्रज्ञान को लैंडर विक्रम से निकाल कर चंद्र सतह पर चलाना और मिशन में शामिल सात उपकरणों से काम लेना। अब तीसरे हिस्से के तहत असली काम जारी है। इसमें उपकरणों से विभिन्न प्रयोग हो रहे हैं, विश्लेषण व डाटा जुटाया जा रहा है। इसीलिए रोवर को जितना हो सके चंद्र सतह पर घुमाया जाना है, ताकि ज्यादा से ज्यादा प्रयोग कर हम बहुमूल्य डाटा जुटा सकें। मिशन के आखिरी 10 दिनों में अधिक काम करने के लिए वैज्ञानिक भी समय के साथ दौड़ लगा रहे हैं।
आएगी लंबी रात, फिर जागने की भी उम्मीद
पृथ्वी के 14 दिन बीतने के बाद चंद्रमा पर अगले 14 पृथ्वी दिवस के बराबर घनी अंधियारी रात आएगी। इस अवधि में यान के कई उपकरण स्लीप मोड में जाएंगे, लेकिन तापमान माइनस 180 से माइनस 250 डिग्री तक गिर सकता है, यान सौर ऊर्जा भी नहीं ले पाएगा। इन कठोर हालात के बावजूद अगर नसीब ने साथ दिया तो लंबी रात बीतने के बाद चंद्रयान-3 के उपकरण रिवाइव हो सकते हैं। ऐसा हुआ तो हमें दक्षिणी ध्रुव का और डाटा मिल सकेगा।
भूकंप की वजहों का विश्लेषण
देसाई के मुताबिक, सभी उपकरणों व प्रयोगों का डाटा लैंडर के जरिये पृथ्वी पर भेजने के साथ इन प्रयोगों को दोहराया भी जाएगा। इस दौरान चास्टे उपकरण से जहां पहली बार मानव द्वारा चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव का तापमान मापा जा रहा है, वहीं इल्सा उपकरण मून-क्वेक यानी चंद्रमा के भूकंप दर्ज कर रहा है। पृथ्वी की तरह ही चंद्रमा पर भूकंप आते हैं। ऐसे कई रहस्य सुलझाने में चंद्रयान-3 के उपकरणों से मिली जानकारियां मदद करेंगी।