लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने 1990 के दशक में कश्मीर में दरिंदगी का शिकार हुईं दो महिलाओं के इंसाफ की बात की। साथ ही उन्होंने लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता स्नेहलता रेड्डी द्वारा आपातकाल के दौरान जेल में झेली गई भयावह यातनाओं का भी वर्णन किया।
लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा जारी है। बुधवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी के सदन में दिए गए संबोधन को लेकर जबरदस्त हंगामा हुआ। राहुल के तुरंत बाद उन्हें 2019 के लोकसभा चुनाव में अमेठी में हराने वालीं केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने भाषण शुरू किया। इस दौरान उन्होंने 1990 के दशक में कश्मीर में दरिंदगी का शिकार हुईं दो महिलाओं के इंसाफ की बात की। केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने अपने भाषण में जिन दो कश्मीरी महिलाओं का जिक्र किया उनमें सरला भट्ट और गिरिजा टिक्कू भी शामिल थीं। इसके साथ ही उन्होंने लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता स्नेहलता द्वारा आपातकाल के दौरान जेल में झेली गई यातनाओं का भी उल्लेख किया। आइए जानते हैं कौन थीं शीला भट्ट, गिरिजा टिक्कू और स्नेहलता रेड्डी?
केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने अपने भाषण में जिन दो कश्मीरी महिलाओं का जिक्र किया उनमें सरला भट्ट भी शामिल थीं। अनंतनाग की रहने वाली सरला एक नर्स थीं। सरला श्रीनगर के सौरा में स्थित शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में काम करती थीं। सरला को 14 अप्रैल 1990 को उनके मेडिकल इंस्टीट्यूट से जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के आतंकियों ने अगवा कर लिया था। अगवा करने के बाद कई दिन तक सरला के साथ बेरहमी से सामूहिक दुष्कर्म किया गया। इसके बाद बेहद क्रूरता के साथ उनके शरीर के टुकड़े कर दिए गए। अगवा करने के पांच दिन में 19 अप्रैल 1990 को सरला के शरीर के टुकड़े श्रीनगर के डाउनटाउन में फेंक दिए गए थे।
गिरिजा टिक्कू कश्मीर के एक सरकारी स्कूल में लाइब्रेरियन का काम करती थीं। उनकी शादी बांदीपोरा के एक कश्मीरी पंडित से हुई थी। घाटी में जारी आंतकी घटनाओं के चलते गिरिजा का परिवार जम्मू चला गया था। गिरिजा की भतीजी सिद्धि रैना के मुताबिक 11 जून 1990 को गिरिजा अपना वेतन लेने घाटी गईं थीं। वापस लौटते समय जिस बस से वह यात्रा कर रही थीं, उसे रोक दिया गया। बस से उतारकर गिरिजा कोएक टैक्सी में फेंक दिया गया। टैक्सी में में 5 आदमी थे (उनमें से एक उनका सहकर्मी था)। उन्हें प्रताड़ित किया, उनका बलात्कार किया और फिर आरी से उन्हें जिंदा काटकर उनकी बेरहमी से हत्या कर दी गई।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून, 1975 की आधी रात को आपातकाल लगाया। आपातकाल की भयावहता और भावी पीढ़ियों के लिए इससे मिलने वाले सबक को व्यक्त करने के लिए कई लेखकों ने अपनी कलम का इस्तेमाल किया। लेखिका, कार्यकर्ता, निर्माता और अभिनेत्री स्नेहलता रेड्डी भी उन लोगों में से थीं जिन्होंने अपनी सैद्धांतिक असहमति के लिए अंतिम कीमत चुकाई।
1932 में आंध्र प्रदेश में जन्मी स्नेहलता अपने शुरुआती वर्षों में ही स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ गई थीं। उनकी बेटी नंदना रेड्डी बताती हैं, ‘मेरी मां को अंग्रेजों और औपनिवेशिक शासन से जुड़ी हर चीज से नफरत थी, इसलिए जब वह कॉलेज गईं, तो उन्होंने अपना भारतीय नाम वापस ले लिया, केवल भारतीय कपड़े पहना। उन्होंने प्रसिद्ध श्री किट्टप्पा पिल्लई से भरतनाट्यम सीखा और एक बहुत ही कुशल नृत्यांगना बन गईं।
स्नेहलता की शादी कवि, गणितज्ञ और निर्देशक पट्टाभि राम रेड्डी से हुई जो प्रसिद्ध कार्यकर्ता और स्वतंत्रता सेनानी डॉ. राममनोहर लोहिया के लिए समर्पित समर्पित समाजवादी थे। कहा जाता है कि स्नेहलता ने चेन्नई में थिएटर की पूरी तस्वीर बदल दी थी। वह प्रसिद्ध ‘मद्रास प्लेयर्स’ नामक एक शौकिया समूह की सह-स्थापक भी थीं। मद्रास प्लेयर्स थिएटर ग्रुप आज भी चेन्नई के दर्शकों का मनोरंजन कर रहा है।
उत्तर की ओर बेंगलुरु की ओर बढ़ते हुए उन्होंने वंचितों के लिए कई मुद्दे उठाए। इसके साथ ही रेड्डी ने साथी कलाकार अशोक मंदाना के साथ प्रसिद्ध थिएटर समूह अभिनय की सह-स्थापना भी की।
स्नेहलता यूआर अनंतमूर्ति द्वारा लिखित और पति पट्टाभि राम रेड्डी द्वारा निर्देशित कन्नड़ फिल्म ‘संस्कार’ में एक अभिनेत्री के रूप में राष्ट्रीय सुर्खियों में आईं। स्नेहलता अभिनीत यह फिल्म कर्नाटक के पश्चिमी घाट के दुर्वासापुरा नामक एक गांव की जातियों पर बनी थी।
स्नेहलता ने फिल्म की मुख्य नायिका एक वेश्या की भूमिका निभाई। शुरू में मद्रास सेंसर बोर्ड द्वारा प्रतिबंधित किए जाने के बाद स्नेहलता और उनके पति पट्टाभि दोनों ने फिल्म की रिलीज के लिए कड़ा संघर्ष किया और अंततः सूचना और प्रसारण मंत्रालय से प्रतिबंध हटवा दिया। 1970 में रिलीज हुई इस फिल्म ने 18वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का पुरस्कार जीता। इस फिल्म ने कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी जीते।
लोहिया के सिद्धांतों को माने वाले स्नेहा और पट्टाभि दोनों ने अत्याचारी इंदिरा गांधी शासन और आपातकाल की घोषणा के खिलाफ आवाज बुलंद की। वे पूर्व ट्रेड यूनियनवादी असंतुष्ट जॉर्ज फर्नांडीस द्वारा शुरू किए गए भूमिगत आंदोलन का हिस्सा थे। दो मई 1976 को पुलिस ने उन्हें उठा लिया और उन पर क्रूर मीसा (आंतरिक सुरक्षा रखरखाव अधिनियम) के तहत मामला दर्ज किया गया। उन्हें बड़ौदा डायनामाइट मामले में फर्नांडीस के साथ गिरफ्तार किया गया था। उन्हें आठ महीने तक बेंगलुरु सेंट्रल जेल में अमानवीय परिस्थितियों और नियमित यातना सहते हुए बिना किसी मुकदमे के रखा गया था। क्रोनिक अस्थमा से पीड़ित होने के बावजूद, उन्हें नियमित चिकित्सा उपचार नहीं मिला।
जेल की भयावहता के बावजूद स्नेहलता ने कभी अपना हौसला नहीं डिगने दिया। वह अपने साथी कैदियों को संगठित करती थीं। उन्हें खेल, गाने सिखाती थी और जेल में नाटक प्रस्तुत करती थीं। उन्होंने कैदियों के अधिकारों के लिए भी लड़ाई लड़ी। एकांत कारावास के कारण उनका कमजोर स्वास्थ्य और खराब हो गया। स्वास्थ्य खराब होने के कारण, स्नेहलता को अंततः 15 जनवरी 1977 को पैरोल पर रिहा कर दिया गया। क्रोनिक अस्थमा और दुर्बल करने वाले फेफड़ों के संक्रमण के चलते उनकी रिहाई के केवल पांच दिन बाद 20 जनवरी 1977 को उनकी मृत्यु हो गई। वह आपातकाल के पहले शहीदों में से एक हैं।