कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर की तरफ से शुक्रवार को जारी एक बयान में कहा कि सभी हितधारकों के प्रयासों से धान की पराली जलाने की घटनाओं में लगातार कमी देखी जा रही है। हालांकि, पराली जलाने का संबंध केवल प्रदूषण से नहीं है, बल्कि यह कृषि भूमि पर भी हानिकारक प्रभाव डाल रहा है।
पराली जलाने की घटनाएं हर साल दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रों में वायु प्रदूषण का एक बड़ा कारण बन जाती है। केंद्र सरकार ने इस बार इन घटनाओं को शून्य पर लाने के लिए कमर कस ली है। इस संबंध में बृहस्पतिवार को एक अंतर-मंत्रालयी बैठक हुई जिसमें पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की तैयारियों की समीक्षा की गई। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र तोमर और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव की सह-अध्यक्षता में हुई बैठक में मौजूदा मौसम में धान की पराली जलाने से रोकने को लेकर विचार-विमर्श हुआ।
कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर की तरफ से शुक्रवार को जारी एक बयान में कहा कि सभी हितधारकों के प्रयासों से धान की पराली जलाने की घटनाओं में लगातार कमी देखी जा रही है। हालांकि, पराली जलाने का संबंध केवल प्रदूषण से नहीं है, बल्कि यह कृषि भूमि पर भी हानिकारक प्रभाव डाल रहा है। इसलिए,मौजूदा मौसम में पराली जलाने के मामलों को शून्य के स्तर पर लाने की दिशा में काम करना हमारा लक्ष्य है। भारत सरकार चार राज्यों को सीआरएम योजना के अंतर्गत पर्याप्त धनराशि प्रदान कर रही है और इन राज्यों को समय पर किसानों को मशीन प्रदान करके उसका समुचित इस्तेमाल सुनिश्चित करना चाहिए।
बैठक के दौरान राज्यों ने मौजूदा मौसम में पराली जलाने से रोकने के लिए अपनी कार्य योजना और रणनीतियां प्रस्तुत कीं। राज्यों को किसानों के बीच धान की पराली जलाने से रोकने के बारे में जागरूकता लाने के लिए फसल अवशेष प्रबंधन के लिए प्रदान की गई धनराशि का उपयोग करने, फसल अवशेष प्रबंधन (सीआरएम) मशीनरी को कटाई के मौसम से पहले ही उपलब्ध कराने, आईसीएआर और अन्य हितधारकों के सहयोग से सूचना, शिक्षा और संचार (आईईसी) गतिविधियां करने की सलाह दी गई। बैठक में उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही, पंजाब के कृषि मंत्री गुरुमीत सिंह खुडियन, हरियाणा के कृषि मंत्री जय प्रकाश दलाल और दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय उपस्थित थे।
नरेंद्र तोमर, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री का कहना है कि पराली जलाने से वायु प्रदूषण तो फैलता ही है, मिट्टी की गुणवत्ता और उर्वरता क्षमता पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है। पांच सालों से इसे रोकने के प्रयासों के अच्छे नतीजे सामने आ रहे हैं।