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‘जल्द लागू करें क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट’; केंद्र ने दिल्ली सरकार को दी सलाह

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दिल्ली के स्वास्थ्य सचिव डॉ. एस बी दीपक कुमार को लिखे पत्र में संयुक्त सचिव ने कहा है कि दिल्ली सरकार का यह नियम केवल एलोपैथी के अस्पताल और नर्सिंग होम को लेकर हस्तक्षेप कर सकता है। दिल्ली में ऐसे सैंकड़ों जांच केंद्र, लैब, क्लीनिक और आयुष केंद्र हैं जो सरकारी हस्तक्षेप से बाहर हैं। इसलिए दिल्ली सरकार को जल्द से जल्द क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट 2010 को अपनाना चाहिए।

दिल्ली में चिकित्सा संस्थानों को नियमों के दायरे में लाने के लिए केंद्र सरकार का कहना है कि राष्ट्रीय राजधानी में बड़ी संख्या में नैदानिक प्रतिष्ठान अभी भी नियमों से बाहर हैं। लैब, पैथोलॉजी, इमेजिंग सेंटर, क्लीनिक, फैमिली फिजिशियन और आयुष अस्पताल अनियमित हैं। इसका सबसे बड़ा नुकसान यह है कि नियमों की अनदेखी करने वाले संस्थान आसानी से कानूनी कार्रवाई में बच सकते हैं। मरीजों के हितों का हवाला देते केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने दिल्ली सरकार को पत्र लिख क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट लागू करने की सलाह दी है। इस पत्र पर दिल्ली स्वास्थ्य विभाग से प्रतिक्रिया नहीं मिली है।

मंत्रालय की संयुक्त सचिव आराधना पटनायक ने अपने पत्र में लिखा है कि मार्च 2012 में केंद्र सरकार ने क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट 2010 को लागू किया लेकिन राज्य सरकार ने यह कहते हुए इस पर विचार नहीं किया कि राष्ट्रीय राजधानी में दिल्ली नर्सिंग होम रजिस्ट्रेशन एक्ट 1953 लागू है जो चिकित्सा संस्थानों की निगरानी करता है।

दिल्ली के स्वास्थ्य सचिव डॉ. एस बी दीपक कुमार को लिखे पत्र में संयुक्त सचिव ने कहा है कि दिल्ली सरकार का यह नियम केवल एलोपैथी के अस्पताल और नर्सिंग होम को लेकर हस्तक्षेप कर सकता है। दिल्ली में ऐसे सैंकड़ों जांच केंद्र, लैब, क्लीनिक और आयुष केंद्र हैं जो सरकारी हस्तक्षेप से बाहर हैं। इसलिए दिल्ली सरकार को जल्द से जल्द क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट 2010 को अपनाना चाहिए।

मरीजों का क्या होगा फायदा
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के तहत सभी तरह के चिकित्सा संस्थान नियमों के दायरे में आते हैं फिर चाहे वह अस्पताल हो या क्लीनिक। इसके चलते सभी इकाइयां सरकार के नियंत्रण में रहती हैं और नियमों की अनदेखी करने वालों के खिलाफ सरकार जुर्माना लगा सकती है। नियमों का उल्लंघन करने और बिना पंजीकरण संचालन कानूनी रूप से अपराध की श्रेणी में आता है। इन पर जुर्माना के अलावा कानूनी मुकदमा तक दर्ज किया जा सकता है।

  • हर मरीज का इलेक्ट्रॉनिक और मेडिकल हेल्थ रिकॉर्ड सुरक्षित रखना अनिवार्य है।
  • प्रत्येक मरीज को डॉक्टर की पर्ची मिलना अनिवार्य है जो क्लीनिक और फैमिली फिजिशियन अक्सर नहीं देते हैं।
  • मेटरनिटी होम्स, डिस्पेंसरी क्लिनिक्स, नर्सिंग होम्स, एलोपैथी, होम्योपैथी और आयुर्वेदिक से जुड़ी स्वास्थ्य सेवाओं पर समान रूप से लागू होता है।
  • प्रत्येक स्वास्थ्य सुविधा देने वाले संस्थान का यह कर्तव्य बनता है कि किसी रोगी के इमरजेंसी में पहुंचने पर उसको तुरंत स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया करवाएं, जिससे रोगी को स्थिर किया जा सके।

छह साल से केंद्र लिख रहा पत्र
स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों ने जानकारी दी है कि चिकित्सा संस्थानों को नियमों में बांधने के लिए केंद्र काफी समय से राज्य सरकार को पत्र लिख रहा है। दस्तावेजों के अनुसार, तीन फरवरी 2017 को भी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसी तरह का पत्र लिख राज्य सरकार से नियमों में संशोधन की सलाह दी ताकि मरीजों के साथ किसी भी तरह की गलत घटनाओं के खिलाफ सख्त एक्शन लिया जा सके। तब से लेकर अब तक कई बार पत्र लिखा गया है।

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