सालासर में अपना जन्मदिन मनाने के बाद से वसुंधरा फ्रंटपुट की पारी खेलने के लिए हर संभव कोशिश कर रही हैं। वह अमित शाह और जेपी नड्डा से मिल चुकी हैं और मिलने की कोशिश करती रहती हैं। प्रधानमंत्री के सीकर के कार्यक्रम में भी उपस्थित थीं…
राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने पार्टी का फिर उपाध्यक्ष बनाया है। लेकिन वसुंधरा का खेमा इस पर कोई कान नहीं दे रहा है। वसुंधरा लगातार केन्द्रीय नेतृत्व से अपनी भूमिका को लेकर स्थिति स्पष्ट करने की मांग कर रही हैं। वसुंधरा का मामला दिलचस्प है। केंद्रीय नेतृत्व द्वारा उचित भूमिका न मिलने के बावजूद राजस्थान के भाजपा नेताओं में उनकी सबसे अधिक लोकप्रियता बनी हुई है। भाजपा के राष्ट्रीय नेता संकेत करते हैं कि राजस्थान के प्रस्तावित विधानसभा चुनाव में पार्टी की कोशिश बिना मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किए और प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे और काम पर सत्ता में लौटने की है। कवायद जारी है।
प्रधानमंत्री ने इस साल अभी तक सात बार से अधिक राजस्थान का दौरा किया है। अगले महीनों में उनका और केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह का दौरा बढ़ने वाला है। अभी केंद्रीय गृहमंत्री मध्यप्रदेश को ठीक करने में व्यस्त हैं। माना जा रहा है कि मध्यप्रदेश में भाजपा को सत्ता में वापसी की उम्मीदें दिखाई दे रही हैं। राजस्थान को स्विंग स्टेट मानकर रणनीतिकारों को लग रहा है कि मध्यप्रदेश की तुलना में राजस्थान में कम मेहनत से ही सरकार बनाने का बहुमत मिल सकता है। इसके समानांतर वसुंधरा राजे के समर्थक कहते हैं कि बूटी पिलाकर आप नेता नहीं बना सकते? वह कहते हैं कि ऐसा होता तो पिछले पांच साल में वसुंधरा राजे के स्थान पर भाजपा को राजस्थान से एक मजबूत नेता मिल गया होता। फिर तो वसुंधरा की जरूरत ही क्या थी?
सतीश पूनिया की उपलब्धि पूछ लीजिए?
वसुंधरा के विरोध को लेकर उनके समर्थक कहते हैं कि पिछले पांच साल में पार्टी ने जानबूझकर पैर पर कुल्हाड़ी मारी है। जयपुर में विधायक को भाजपा का बहुत करीबी माना जाता है। अमर उजाला से विशेष बातचीत में नाम न छापने की शर्त पर सूत्र का कहना है कि विधानसभा में उपनेता और भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया की उपलब्धि पूछ लीजिए। सूत्र का कहना है कि पूनिया भी यही बताएंगे कि उन्होंने अपने कार्यकाल में वसुंधरा राजे को किनारे रखा। भाजपा के वर्तमान अध्यक्ष सीपी जोशी हैं। राजनीति और सामाजिक पकड़ में समझदार माने जाते हैं। सीपी जोशी के हाथ में कमान आने के बाद से वसुंधरा थोड़ा कार्यक्रमों में आने जाने लगी हैं। सतीश पूनिया के सचिवालय के सदस्य भी बताते हैं कि वसुंधरा राजे पूनिया के दौर में भाजपा के अधिकारिक कार्यक्रम से दूरी बनाकर रख रही थीं। वसुंधरा राजे की 2013-2018 की सरकार में मंत्री रहे सूत्र का कहना है कि राजस्थान एक परंपराओं वाला राज्य है। कुछ बोलना उचित नहीं है। बस इतना समझ लीजिए की पार्टी के तमाम नेता चाहकर भी केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को वसुंधरा राजे के खिलाफ खड़ा नहीं कर पाए। अर्जुन राम मेघवाल, राज्य वर्धन सिंह राठोर समेत अन्य की बात छोड़ दीजिए। एक अन्य सूत्र का कहना है कि गुलाब चंद कटारिया के राज्यपाल बनकर जाने के बाद पार्टी को विधानसभा में सदन का चेहरा चुनना था। मौजूदा सदन के नेता राजेंद्र सिंह राठौर को ओहदा मिलना बिना वसुंधरा राजे की सहमति के संभव नहीं था।
आजकल क्या कर रही हैं वसुंधरा राजे?
सालासर में अपना जन्मदिन मनाने के बाद से वसुंधरा फ्रंटपुट की पारी खेलने के लिए हर संभव कोशिश कर रही हैं। वह अमित शाह और जेपी नड्डा से मिल चुकी हैं और मिलने की कोशिश करती रहती हैं। प्रधानमंत्री के सीकर के कार्यक्रम में भी उपस्थित थीं। पूरे राजस्थान में अपने कार्यक्रम की योजना बना रही हैं। लोगों से मिल रही हैं। प्रधानमंत्री के दौरे के समय वसुंधरा वहां जाती हैं। उन्हें प्रधानमंत्री की मौजूदगी में मंच से अपनी बात रखने के लिए समय पाने की भी कोशिश करनी पड़ती है। सफलता मिलने के चांस कम रहते हैं। लेकिन प्रधानमंत्री के कार्यक्रम के बाद वह टैग करते हुए ट्वीट करने की जिम्मेदारी निभाती हैं। आज 29 जुलाई को भी वसुंधरा राजे ने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के जयपुर आगमन का स्वागत किया है। चुरू के सालासर बालाजी मंदिर में पूर्व मुख्यमंत्री की आस्था है। वह वहां जाकर दर्शन करना, आशीर्वाद लेना नहीं भूलतीं। उन्होंने एक दिन पहले सीकर में प्रधानमंत्री द्वारा अशोक गहलोत की सरकार पर हमला बोलने, लाल डायरी का मुद्दा उठाने के बाद राज्य सरकार पर हमला बोला। ट्विटर के माध्यम से अपनी बात रखी। लोगों को बताया कि वह सीकर में कार्यक्रम में मौजूद थीं। वसुंधरा राजे का सीकर रैली में मौजूद रहने का संदेश देना बताता है कि उनकी पार्टी अपनी पूर्व मुख्यमंत्री, राज्य की पूर्व भाजपा अध्यक्ष और अशोक गहलोत के सामानांतर लोकप्रिय नेता को कितना महत्वपूर्ण स्थान दे रही है। ट्विटर पर वसुंधरा राजे के कोई 49 लाख फालोवर हैं।
देखना है आगे क्या होता है? वसुंधरा या फिर कोई और
यह सवाल राजस्थान, भाजपा के लिए अहम है। राजस्थान भाजपा के नेता भी मानते हैं कि पार्टी में कई खेमे नहीं हैं। बस दो हैं। एक वसुंधरा राजे के समर्थक और दूसरे भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व की मंशा के अनुरुप काम करने वाले सिपाही। वसुंधरा समर्थक खेमे को भरोसा है कि चुनाव के नजदीक आने तक सब ठीक हो जाएगा। यानी वसुंधरा को महत्वपूर्ण भूमिका मिलेगी। दूसरे खेमों के सूत्र कहते हैं कि वसुंधरा को पहले राज्य में पार्टी को मजबूत बनाने में योगदान देना चाहिए। बाकी चीजें दिल्ली या फिर चुनाव के बाद विधायक तय करेंगे। हालांकि दोनों की निगाह इसी पर टिकी है कि वसुंधरा की भावी भूमिका क्या रहती है।