भाजपा का दावा है कि इस बार वह एनडीए सहयोगियों के साथ पूरे देश में 50 फीसदी से ज्यादा वोट शेयर हासिल कर दो तिहाई सीटों की मजबूती से सरकार बनाएगी…
लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए और कांग्रेस की अगुवाई वाले ‘इंडिया’ में कड़ा मुकाबला हो सकता है। कई राज्यों में भाजपा के लिए चुनौतियां बढ़ी हैं, तो कुछ राज्यों में उसके सहयोगी दलों में बिखराव हुआ है। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए जीत की हैट्रिक लगाना आसान नहीं होगा। हालांकि, भाजपा का दावा है कि इस बार वह एनडीए सहयोगियों के साथ पूरे देश में 50 फीसदी से ज्यादा वोट शेयर हासिल कर दो तिहाई सीटों की मजबूती से सरकार बनाएगी। एक नजर डालते हैं देश के प्रमुख राज्यों में भाजपा के पिछले प्रदर्शन और वर्तमान समीकरणों पर…
2014 में भाजपा ने 282 सीटों पर जीत हासिल की थी। 2019 में यह आंकड़ा बढ़कर 303 हो गया था। अकेले भाजपा के सांसदों की संख्या लोकसभा में 55.80 फीसदी हो गई थी, जो उसके दमदार प्रदर्शन को दिखाता है। भाजपा का वोट शेयर भी 31.34 प्रतिशत से बढ़कर 37.36 प्रतिशत हो गया था। भाजपा के सहयोगी दलों के प्रदर्शन में भी सुधार हुआ था। एनडीए ने 2014 में 38 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया था जो 2019 में 45 प्रतिशत हो गया। पीएम नरेंद्र मोदी का दावा है कि इस बार एनडीए 50 प्रतिशत वोट शेयर का आंकड़ा पार करेगा।
यहां हर सीट भाजपा ने जीती
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गढ़ गुजरात में भाजपा ने 62.21 प्रतिशत वोटों के साथ राज्य की सभी 26 सीटों पर जीत हासिल की थी। राजस्थान में भी एनडीए ने 60 प्रतिशत से ज्यादा वोटों के साथ सभी 25 सीटों पर जीत हासिल की थी। हरियाणा में 58 प्रतिशत वोटों के साथ राज्य की सभी दस सीटों पर और 69.11 प्रतिशत वोट के साथ हिमाचल प्रदेश की सभी चारों सीटों पर उसे जीत मिली थी। भाजपा ने देश की राजधानी दिल्ली की सभी सातों सीटों पर 50 प्रतिशत से ज्यादा वोटों के साथ जीत हासिल की थी। पूरी दिल्ली में उसका वोट प्रतिशत 56.56 प्रतिशत रहा था। भाजपा ने 61 प्रतिशत वोट शेयर के साथ उत्तराखंड की सभी पांच सीटों पर जीत हासिल की थी। अरुणाचल प्रदेश में 58.22 प्रतिशत वोट के साथ दोनों सीटों पर जीत हासिल की थी।
क्या हो सकता है?- गुजरात-उत्तराखंड में भाजपा की पकड़ बरकरार है, लेकिन अशोक गहलोत सरकार की लोकप्रिय योजनाओं के कारण राजस्थान में इस बार भाजपा को कड़ी चुनौती मिल सकती है। हरियाणा में भी कांग्रेस मजबूत हुई है। यदि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी साथ आते हैं, तो भाजपा को हरियाणा और दिल्ली में भी नुकसान हो सकता है।
यूपी का गणित मायावती पर निर्भर
देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में एनडीए ने 2014 में 73 सीटों पर और 2019 में 64 सीटों पर जीत हासिल की थी। सपा-बसपा के मजबूत गठबंधन के बाद भी 2019 में भाजपा 49.56 प्रतिशत वोट हासिल करने में सफल रही थी। उसकी सहयोगी पार्टी अपना दल ने भी दो सीटों पर सफलता हासिल की थी। इस बार अभी तक उत्तर प्रदेश में गठबंधन की स्थिति साफ नहीं है।
क्या हो सकता है?- यदि बसपा-कांग्रेस और सपा साथ आकर चुनाव लड़ती हैं, तो चुनाव की परिस्थितियां बिल्कुल अलग हो सकती हैं। लेकिन बसपा ने अकेले चुनाव लड़ने का एलान किया है। ऐसे में चुनाव परिणाम 2014 और 2019 से बहुत ज्यादा अलग होंगे, यह दावा नहीं किया जा सकता।
छत्तीसगढ़ का किला किसका
छत्तीसगढ़ में 50 प्रतिशत से ज्यादा वोटों के साथ भाजपा ने नौ सीटों पर जीत हासिल की थी। कांग्रेस लगभग 41 प्रतिशत वोटों के साथ दो सीटों पर जीत दर्ज कर सकी थी। हालांकि, इस बार छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की संभावनाएं काफी मजबूत बताई जा रही हैं। लेकिन यहां भी भूपेश बघेल की सरकार ने भाजपा को कड़ी चुनौती दी है। कांग्रेस की मजबूती और उसकी लोकलुभावन घोषणाएं 2014-19 के चुनाव परिणाम को पलटकर रख दें तो आश्चर्य नहीं होगा।
50 प्रतिशत के साथ मिली जीत
चंडीगढ़ सीट भी भाजपा ने 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट शेयर के साथ जीती थी। गोवा में भी भाजपा को 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले थे। लेकिन वह केवल एक सीट पर जीत हासिल कर सकी थी, जबकि दूसरी सीट पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी। त्रिपुरा में 49 प्रतिशत वोटों के साथ भाजपा ने दोनों सीटों पर जीत हासिल की थी। झारखंड की 14 सीटों में से भाजपा को 11 सीटों पर जीत मिली थी। हालांकि, यहां उसे लगभग 51 प्रतिशत वोट मिले थे। कर्नाटक की 28 सीटों में से 25 सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी। हालांकि, यहां भी उसे 51.38 प्रतिशत वोट मिले थे।
संगठन का गढ़ मध्यप्रदेश
मध्यप्रदेश भाजपा के संगठन के तौर पर सबसे मजबूत राज्य माना जाता है। 2019 के चुनाव में भाजपा ने 58 प्रतिशत वोटों के साथ राज्य की 28 सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि एक सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार विजयी रहा था। हालांकि, कांग्रेस ने इस कमजोर प्रदर्शन में भी 34.50 प्रतिशत वोट हासिल करने में सफल रही थी।
क्या हो सकता है?- भाजपा को मध्यप्रदेश में भी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। इसी साल के अंत में हो रहे विधानसभा चुनाव में कांग्रेस भाजपा की कड़ी टक्कर देती दिख रही है। चुनाव परिणाम जो भी हो, इसका असर लोकसभा पर भी पड़ सकता है। शिवराज सिंह चौहान की एंटी इनकमबेंसी फैक्टर लोकसभा चुनाव में ट्रांसफर हुआ तो भाजपा को नुकसान हो सकता है।
इन राज्यों में स्थिति मजबूत
असम में एनडीए-यूपीए में कड़ी टक्कर देखने को मिली थी। भाजपा ने राज्य की 14 में से नौ सीटों पर जीत हासिल की थी। उसे 36 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले थे। कांग्रेस को 35.44 प्रतिशत वोट मिले थे, इसके बाद भी वह केवल तीन सीटों पर जीत हासिल कर पाई थी। लेकिन वोट शेयर में थोड़ा-बहुत बदलाव भी परिणाम इधर से उधर कर सकता है। गठबंधन की स्थिति में कांग्रेस यहां लाभ उठा सकती है। इसलिए कांग्रेस को असम से इस बार बहुत उम्मीदें हैं।
21 सीटों वाले ओडिशा में भाजपा की सीधी टक्कर बीजू जनता दल से थी। नवीन पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल ने यहां की 12 सीटों पर और भाजपा ने 38 प्रतिशत वोटों के साथ आठ सीटों पर जीत हासिल की थी। कांग्रेस को यहां केवल एक सीट पर सफलता मिली थी। उसे 13.8 प्रतिशत वोट मिले थे। जम्मू-कश्मीर क्षेत्र की छह सीटों में से भाजपा को तीन पर जीत मिली थी। उसे यहां 46.39 प्रतिशत वोट मिले थे। अंडमान निकोबार की एक सीट पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी। उसने बेहद कड़े मुकाबले में भाजपा से यह सीट छीनी थी। भाजपा ने लगभग 34 फीसदी वोटों के साथ मणिपुर की एक सीट पर सफलता पाई थी, जबकि दूसरी सीट नगा पीपुल्स फ्रंट को गई थी।
महाराष्ट्र में क्या होगा
इस बार लोकसभा चुनावों में सबसे ज्यादा नजर महाराष्ट्र पर रहेगी। भाजपा-शिवसेना के गठबंधन ने पिछले चुनाव में राज्य की 48 सीटों में से 41 सीटों पर जीत हासिल की थी। इस बार शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस का एक-एक धड़ा एनडीए-भाजपा के साथ है, जबकि उद्धव ठाकरे और शरद पवार के साथ उनकी मूल पार्टी इंडिया गठबंधन के छतरी तले एक साथ चुनाव लड़ सकती हैं। कांग्रेस भी उन्हें मजबूती देगी। ऐसे में चुनाव परिणाम में बड़ा फेरबदल देखने को मिल सकता है।
बिहार में जीत किसकी
बिहार उन राज्यों में है, जहां इस बार सबसे ज्यादा उलटफेर के अनुमान लगाए जा रहे हैं। पिछली बार जदयू और लोजपा के साथ उतरने के बाद एनडीए ने राज्य की 40 में से 39 सीटों पर जीत हासिल की थी। लेकिन इस बार जदयू के छिटकने से परिणाम में बहुत परिवर्तन देखने को मिल सकता है।
पश्चिम बंगाल पर टिकी रहेगी निगाह
इंडिया गठबंधन की संभावनाओं के चलते इस बार सबसे बड़ा उलटफेर पश्चिम बंगाल में होने का अनुमान लगाया जा रहा है। पिछली बार भाजपा ने 40 प्रतिशत से ज्यादा वोटों के साथ प. बंगाल की 18 सीटों पर जीत हासिल की थी। इस बार अभी गठबंधन की घोषणा नहीं की गई है। लेकिन अनुमान है कि यहां तृणमूल कांग्रेस वाम दलों से गठबंधन करने को तैयार नहीं होगी। लेकिन कांग्रेस के साथ उसका तालमेल हो सकता है। ऐसे में सीटों पर असर दिखाई पड़ सकता है।
पंजाब भी कठिन
पंजाब भी उन राज्यों में शामिल है जहां भाजपा को पिछली बार ज्यादा सीटों पर जीत नहीं मिली थी। अकाली दल के साथ चुनाव में उतरने पर उसे केवल 9.6 प्रतिशत वोट और दो सीटों पर जीत मिली थी। उसके सहयोगी अकाली दल को 27 प्रतिशत वोटों के साथ दो सीटों पर जीत मिली थी। कांग्रेस ने 40 प्रतिशत वोटों के साथ आठ सीटों पर जीत हासिल की थी। आम आदमी पार्टी केवल एक सीट पर जीत हासिल करने में सफल रही थी।
क्या हो सकता है?- पंजाब में अभी कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में गठबंधन होगा या नहीं, अभी स्थिति साफ नहीं है। लेकिन यदि समझौता हुआ, तो मामला इंडिया गठबंधन के पक्ष में जाना तय है। अभी अकाली दल ने भी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। यदि अकाली एक बार फिर एनडीए खेमे में जाने की घोषणा करते हैं तो एनडीए को कुछ लाभ मिल सकता है।
यहां भाजपा को आज भी बड़ी उम्मीद नहीं
आंध्र प्रदेश की 25 लोकसभा सीटों में जगनमोहन रेड्डी की पार्टी YSRCP ने 49 प्रतिशत से ज्यादा वोटों के साथ 22 सीटों पर सफलता हासिल की थी। चंद्रबाबू नायडू की तेलगुदेशम पार्टी ने लगभग 40 प्रतिशत वोट शेयर हासिल करने के बाद भी केवल तीन सीटों पर जीत हासिल कर सकी। अभी इन दोनों ही दलों ने एनडीए या इंडिया गठबंधन का हिस्सा बनने को लेकर अपनी रणनीति का खुलासा नहीं किया है। भाजपा का आंध्र प्रदेश में कोई विशेष जनाधार नहीं है। पिछले चुनाव में वह एक प्रतिशत वोट हासिल करने में भी नाकाम रही थी।
केरल में लोकसभा की 20 सीटें हैं। लेकिन यहां भाजपा पारंपरिक तौर पर कमजोर रही है। पिछले चुनाव में भी उसे केवल 13 प्रतिशत वोट ही मिले थे और उसे किसी सीट पर सफलता नहीं मिली थी। जबकि कांग्रेस ने यहां 37 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 15 सीटों पर जीत हासिल की थी।
39 लोकसभा सीटों वाले तमिलनाडु में भी भाजपा अभी तक अपनी स्थिति मजबूत नहीं बना पाई है। लेकिन सहयोगी एआईएडीएमके और पीएमके के साथ इस बार वह यहां बेहतर परिणाम पाने की उम्मीद कर रही है। तेलंगाना में लगभग 20 प्रतिशत वोटों के साथ भाजपा चार लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करने में सफल रही थी।