अकेले रहने वाले लोग दुनिया को अलग नजरिये से देखते हैं। वह अकेले न रहने वाले लोगों की तुलना में कम भावनात्मक ढंग से सोचते हैंं। इतना ही नहीं ऐसे लोगों के दिमाग के काम करने का तरीका आपस में भी अलग-अलग होता है।
अकेले रहने वाले लोग दुनिया को अलग नजरिये से देखते हैं। वह अकेले न रहने वाले लोगों की तुलना में कम भावनात्मक ढंग से सोचते हैंं। इतना ही नहीं ऐसे लोगों के दिमाग के काम करने का तरीका आपस में भी अलग-अलग होता है।हाल में मस्तिष्क पर हुए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है। इसमें अकेलेपन से संबंधित कुछ भ्रांतियां भी मिली हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में हुए अध्ययन में 66 युवाओं के न्यूरोइमेजिंग परीक्षण (दिमागी संरचना की छाप) में अकेले रहने वाले लोगों के साथियों की तुलना में उनके दिमाग का काम करने के तरीका बहुत ही अलग पाया गया है।
साइकोलॉजिकल साइंस जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में अकेले लोगों और उनके दूसरे साथियों के बीच तंत्रिका प्रतिक्रियाओं का अंतर डिफॉल्ट मोड नेटवर्क (मन भटकने के क्षेत्रों) में स्पष्ट तौर पर दिखाई दिया। हर अकेले रहने वाले व्यक्ति का व्यक्तित्व भी अलग
मनोवैज्ञानिक एलिसा बेयक के मुताबिक, यह वाकई चौंकाने वाली बात है कि अकेले रहने वाले लोग भी एक दूसरे से काफी अलग पाए गए। अकेलापन कोई दुर्लभ या कुछ लोगों को ही होने वाला अहसास नहीं है। सभी इन्सानों में यह एक ऐसी भावनात्मक अवस्था है जब व्यक्ति की इच्छाओं और वास्तविक संबंधों में अंतर आ जाता है।
खास एमआरआई तकनीक का इस्तेमाल
शोधकर्ताओं ने 18 से 21 साल की उम्र की बीच के कॉलेज के पहले साल के 66 छात्रों पर विशेष एमआरआई तकनीक का इस्तेमाल किया। उन्होंने छात्रों को 14 वीडियो क्लिप दिखाते हुए उनके मस्तिष्क की गतिविधियों की फंक्शनल मैग्नेटिक रेजोनेन्स इमेजिंग लेकर उसका अध्ययन किया। वीडियो में ऐसी विषयवस्तु थी जिससे उनके दिमाग को भटकने का कम से कम अवसर मिले। इनमें भावात्मक संगीत वीडियो से लेकर पार्टी और खेल की गतिविधियां थीं।
ऐसे किया गया अध्ययन
प्रतिभागियों को नतीजों के आधार पर अकेले और गैर अकेले (जो अकेलापन महसूस नहीं करते थे) के समूहों में बांटा गया। फिर हर प्रतिभागी के दिमाग के उन 214 इलाकों का विश्लेषण किया गया, जिन्होंने वीडियो में उत्तेजन कारकों की वजह से प्रतिक्रिया दी