उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र सियासी दृष्टि से सबसे अहम है। बीते चुनाव में राजग ने राज्य की 48 सीटों में से 42 सीटें जीती थीं। इनमें भाजपा 23, शिवेसना 18 और दोनों दल समर्थित एक निर्दलीय प्रत्याशी जीते थे। शिवसेना के अलग होने के बाद भाजपा को हिंदुत्व वोटों में बिखराव का डर सता रहा था।
इस बगावत के बाद विपक्षी एकता के शिल्पकार माने जाने वाले शरद पवार को अब अपनी पार्टी बचाने की मुहिम को प्राथमिकता देनी होगी। ऐसे में अगर पवार पार्टी बचाने की मुहिम में जुटते हैं तो इससे विपक्षी एकता की मुहिम कमजोर होगी। दूसरी ओर, महाराष्ट्र में भाजपा को पहली बार हिंदुत्व के इतर मराठा और ग्रामीण क्षेत्र में राजग की स्थिति को मजबूत करने का अवसर मिलेगा।
भाजपा को लाभ
उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र सियासी दृष्टि से सबसे अहम है। बीते चुनाव में राजग ने राज्य की 48 सीटों में से 42 सीटें जीती थीं। इनमें भाजपा 23, शिवेसना 18 और दोनों दल समर्थित एक निर्दलीय प्रत्याशी जीते थे। शिवसेना के अलग होने के बाद भाजपा को हिंदुत्व वोटों में बिखराव का डर सता रहा था। एकनाथ शिंदे की बगावत के कारण शिवसेना में हुई टूट से इस बिखराव में कमी आने की संभावना बनी थी। अब अजित की बगावत के बाद भाजपा को उन वर्गों का वोट भी मिलने की उम्मीद है, जिससे हिंदुत्व वोटों में थोड़े बिखराव की कमी पूरी की जा सके। दरअसल, अजित एनसीपी में शरद पवार के साथ संगठन का कामकाज देखते थे। ऐसे में पार्टी संगठन में अजित की गहरी पैठ है, जिसका फायदा मिलेगा।
इन सवालों के जवाब आने बाकी
पहला सवाल है कि विपक्षी एकता का क्या होगा? यह सवाल इसलिए कि विपक्षी एकता के शरद पवार ही मुख्य सूत्रधार थे। अब जबकि खुद पवार पार्टी को बचाने की मुहिम में जुटेंगे तब विपक्षी एकता का क्या होगा? दूसरा सवाल एनसीपी पर दावेदारी का है। यह मामला ठीक शिवसेना की तरह ही है। शिंदे की बगावत के बाद इस मामले में अब तक कोई फैसला नहीं हो पाया है। शिवसेना को लोकसभा में नए गुट के रूप में मान्यता मिली है। सवाल यह है कि क्या एनसीपी में बगावत मामले में ऐसा ही होगा? एनसीपी पर आखिर किसे अधिकार मिलेगा?
तीसरा सवाल महाविकास अघाड़ी का है। अजित की बगावत के बाद राज्य विपक्ष में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है। ऐसे में नेता प्रतिपक्ष पर उसका दावा बनता है। दूसरी बात लोकसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे को ले कर है। क्या कांग्रेस वर्तमान स्थिति के आधार पर सबसे अधिक सीट मांगेगी? और क्या एनसीपी और शिवसेना इसे स्वीकार करेगी?
चौथा सवाल बेहद अहम है। अब इस बगावत के बाद शरद पवार क्या करेंगे? पवार राजनीति के कुशल योद्धा हैं। ऐसे में उनके हथियार डालने की संभावना नहीं है। फिर अपने भतीजे को पटखनी देने के लिए पवार कौन सा रास्ता अपनाएंगे? पांचवां सवाल अजित पवार के भावी रुख से जुड़ा है। साल 2019 में बगावत के बाद अजित वापस पवार के पास आ गए थे। अब सवाल है कि क्या अजित की एनसीपी में वापसी की कोई गुंजाइश बची है?
सोनिया, खरगे, राहुल, ममता ने की शरद पवार से बात, जताया समर्थन
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, पूर्व और पूर्व पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने रविवार को एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार से बातकर उन्हें अपना समर्थन जताया। प. बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने भी शरद पवार का समर्थन किया है।