शोधकर्ताओं के अनुसार बांस के जरिए बायोएथेनॉल, बायोगैस और अन्य बायोएनर्जी उत्पाद बनाए जा सकते हैं। बांस में काफी मात्रा में सेल्युलोज और हेमीसेल्युलोज होता है, जिसे चीनी के घटक के रूप में बदला जा सकता है। यह बांस को ऊर्जा पैदा करने का एक आदर्श घटक बनाता है।
बांस की मदद से बायोएनर्जी पैदा की जा सकती है, जो आने वाले समय में जीवाश्म ईंधन की जगह ले सकती है। यह पर्यावरण अनुकूल होने के साथ-साथ अक्षय ऊर्जा का साफ-सुथरा स्रोत है। जर्नल जीसीबी बायोएनर्जी में प्रकाशित शोध के अनुसार बांस, घास की ऐसी प्रजाति है जो बहुत ही जीवट होती है। यह खराब और बंजर जमीन पर भी बहुत कम मेहनत से उग सकती है। यह वातावरण से कार्बन डाईऑक्साइड सोख लेती है और बदले में बहुत सारी ऑक्सीजन छोड़ती है।
चीनी के घटक के रूप में भी बदल सकते हैं
शोधकर्ताओं के अनुसार बांस के जरिए बायोएथेनॉल, बायोगैस और अन्य बायोएनर्जी उत्पाद बनाए जा सकते हैं। बांस में काफी मात्रा में सेल्युलोज और हेमीसेल्युलोज होता है, जिसे चीनी के घटक के रूप में बदला जा सकता है। यह बांस को ऊर्जा पैदा करने का एक आदर्श घटक बनाता है। अध्ययन में शोधकर्ताओं ने किण्वन (फर्मेंटेशन) और पायरोलिसिस जैसी विभिन्न विधियों की व्याख्या की है, जिनका उपयोग बांस से प्राप्त कच्चे माल को बायोएथेनॉल, बायोगैस और अन्य बायोएनर्जी उत्पादों में बदलने के लिए किया जा सकता है।
मध्य प्रदेश में सर्वाधिक उत्पादन
भारत में कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में बांस प्राकृतिक रूप से पाए जाते हैं। मध्य प्रदेश में सर्वाधिक 2 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में बांस का उत्पादन होता है। दुनियाभर में इसकी 1662 प्रजातियां हैं, जिनमें से 130 प्रजातियां भारत में पाई जाती हैं। बांस उत्पादन में भारत द्वितीय स्थान पर है। भारतीय बांस उद्योग प्रतिवर्ष अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 2,040 करोड़ और देश में 4,463 करोड़ का व्यापार करता है। निर्माण संबंधी कार्यों के साथ इसकी मदद से दैनिक उपयोग की कई चीजें बनाई जाती हैं