सुप्रीम कोर्ट ने स्टूडेंट्स फॉर फेयर एडमिशन्स द्वारा उठाए गए दो मामलों पर फैसला करते हुए सकारात्मक विभेद पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया। एक मामला हावर्ड की एडमिशन नीति का है, जिसमें दावा किया गया कि हावर्ड में एडमिशन के दौरान एशियाई अमेरिकी नागरिकों के साथ गैरकानूनी भेदभाव किया जाता है।
क्या है सकारात्मक विभेद की नीति (Affirmative Action)
साल 1978 में अदालत ने अमेरिका के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में आवेदकों की जाति, नस्ल पर विचार की अनुमति दी थी। यह नीति समाज के वंचित और भेदभाव के शिकार वर्ग को लाभ पहुंचाने के लिए शुरू की गई थी। सकारात्मक विभेद नीति अमेरिका में अश्वेत, हिस्पैनिक और अन्य अल्पसंख्यक छात्रों को ज्यादा से ज्यादा उच्च शिक्षा में मौके देने के लिए शुरू की गई थी। सकारात्मक विभेद नीति के तहत छात्रों के ग्रेड, टेस्ट स्कोर और पाठ्यक्रम की गतिविधियों सहित हर पहलू का ध्यान रखा जाता था।
सकारात्मक विभेद कानून को लेकर हुआ विरोध
सुप्रीम कोर्ट ने स्टूडेंट्स फॉर फेयर एडमिशन्स द्वारा उठाए गए दो मामलों पर फैसला करते हुए सकारात्मक विभेद पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया। एक मामला हावर्ड की एडमिशन नीति का है, जिसमें दावा किया गया कि हावर्ड में एडमिशन के दौरान एशियाई अमेरिकी नागरिकों के साथ गैरकानूनी भेदभाव किया जाता है। वहीं दूसरा मामला नॉर्थ कैरोलिना यूनिवर्सिटी का है। आरोप है कि नॉर्थ कैरोलिना यूनिवर्सिटी में श्वेत और एशियाई अमेरिकी आवेदकों के बीच गैरकानूनी भेदभाव किया जाता है। बता दें कि स्टूडेंट्स फॉर फेयर एडमिशन्स सकारात्मक विभेद नीति का विरोधी है और इस समूह की स्थापना रूढिवादी कार्यकर्ता एडवर्ड ब्लम ने की थी और इस समूह के 22 हजार से ज्यादा सदस्य बताए जाते हैं।
अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जॉन रॉबर्ट ने बहुमत के आधार पर लिए फैसले में लिखा कि सकारात्मक विभेद सही नीयत के साथ लागू किया गया था लेकिन यह हमेशा नहीं चल सकता क्योंकि यह अन्य छात्रों के साथ असंवैधानिक भेदभाव है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि छात्रों को उनके अनुभव और काबिलियत के आधार पर मौके मिलने चाहिए ना कि नस्ल के आधार पर। कोर्ट ने कहा कि आवेदक श्वेत है या अश्वेत या किस नस्ल का है, इस आधार पर एडमिशन देना अपने आप में भेदभावपूर्ण और नस्लीय है।
भारतीयों को मिल सकता है फायदा
अमेरिका के सकारात्मक विभेद कानून का विरोध करने वालों में बड़ी संख्या में भारतीय मूल के लोग भी शामिल हैं। मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि जिस स्टूडेंट्स फॉर फेयर एडमिशन्स समूह ने सकारात्मक विभेद नीति के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, उसके कई सदस्य भारतीय मूल के युवा भी हैं। भारतीय मूल के युवाओं का मानना है कि सकारात्मक विभेद नीति के तहत उन्हें उच्च शिक्षण संस्थानों में एडमिशन मिलने के मौके कम मिलते हैं क्योंकि शिक्षण संस्थान एडमिशन में सकारात्मक विभेद नीति के तहत भेदभाव करते हैं।