रिपोर्ट के मुताबिक, 21वीं सदी के अंत तक भारत में ग्रीष्म (अप्रैल-जून) लू का प्रकोप तीन से चार गुना तक बढ़ेगा। सतह के तापमान और आर्द्रता में वृद्धि हो रही है, जिसकी वजह से पूरे देश में विशेष रूप से सिंधु-गंगा और सिंधु नदी घाटियों पर गर्मी का सबसे गंभीर स्वरूप देखने को मिलेगा।
21वीं सदी के अंत तक भारत में लू का प्रकोप मौजूदा स्थिति से चार गुना ज्यादा होगा। जलवायु परिवर्तन के चलते ग्लेशियर से लेकर धरती और समुद्र तक का तापमान बढ़ रहा है, जिसका असर अगले 70 से 75 साल बाद देश के लगभग सभी राज्यों पर पड़ सकता है। यह जानकारी देश के मौसम और पृथ्वी विज्ञान विशेषज्ञों ने बीते 150 सालों में आए बदलावों के आधार पर तैयार रिपोर्ट में सामने आई है।
अध्ययन को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी साझा किया
रिपोर्ट के मुताबिक, 21वीं सदी के अंत तक भारत में ग्रीष्म (अप्रैल-जून) लू का प्रकोप तीन से चार गुना तक बढ़ेगा। सतह के तापमान और आर्द्रता में वृद्धि हो रही है, जिसकी वजह से पूरे देश में विशेष रूप से सिंधु-गंगा और सिंधु नदी घाटियों पर गर्मी का सबसे गंभीर स्वरूप देखने को मिलेगा। केंद्र के पृथ्वी मंत्रालय के वैज्ञानिकों ने 1976 से 2005 के बीच गर्मी में वृद्धि के आधार पर यह पूर्वानुमान लगाया है। मेडिकल जर्नल स्प्रिंगर में प्रकाशित इस अध्ययन को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी साझा किया है, जिसमें कहा है कि 21वीं सदी के अंत तक 24 घंटे के तापमान में 4.4 डिग्री सेल्सियस तक की बढ़ोतरी होगी। इसके अलावा, साल 2100 के बाद दिन मौजूदा समय से 50 फीसदी ज्यादा गर्म होंगे और रात का तापमान 70 फीसदी अधिक होगा।
जलवायु परिवर्तन से वैश्विक तापमान बढ़ा
पृथ्वी मंत्रालय के अलावा बंगलूरू स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान और अमेरिका व यूके के शोधकर्ताओं ने मिलकर यह अध्ययन किया है। भारतीय विज्ञान संस्थान के दिवेचा जलवायु परिवर्तन केंद्र के विशेषज्ञ जे श्रीनिवास का कहना है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से वैश्विक औसत तापमान में लगभग एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। यह लगातार जारी है, क्योंकि ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन (जीएचजी), एरोसोल और औद्योगिक अवधि के दौरान भूमि उपयोग में परिवर्तन ग्रहों की ऊर्जा में काफी बदलाव कर रहा है। इसकी वजह से जलवायु परिवर्तन हो रहा है और उसकी वजह से ही गर्मी हो रही है।