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पहली बार 93 फीसदी आबादी में कोरोना एंटीबॉडी, देश में हुए सीरो अध्ययन में सामने आए परिणाम

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यह अध्ययन दिल्ली, भुवनेश्वर व गोरखपुर एम्स के अलावा आईसीएमआर, डब्ल्यूएचओ, जेआईपीएमईआर और अगरतला मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों ने किया है। इसलिए तीन अलग-अलग चरणों में रक्त के नमूने लेकर छह महीने तक उनका विश्लेषण किया गया।

पहली बार 93 फीसदी आबादी में कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडी का मजबूत स्तर मिला है, जो छह महीने तक सुरक्षा दे सकता है। जिन लोगों ने कोरोना रोधी टीके की दोनों खुराक ली हैं, उनमें यह स्तर और अधिक प्रभावी है। दिल्ली, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, पुडुचेरी और त्रिपुरा के 10 हजार से ज्यादा लोगों पर हुए सीरो अध्ययन में यह निष्कर्ष सामने आए हैं। इसमें यह भी पता चला है कि शहर, गांव और आदिवासी क्षेत्र में रहने वाले लोगों में एंटीबॉडी एक जैसी हैं।
यह अध्ययन दिल्ली, भुवनेश्वर व गोरखपुर एम्स के अलावा आईसीएमआर, डब्ल्यूएचओ, जेआईपीएमईआर और अगरतला मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों ने किया है। इसलिए तीन अलग-अलग चरणों में रक्त के नमूने लेकर छह महीने तक उनका विश्लेषण किया गया। मेडिकल जर्नल मेडरेक्सिव में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, मार्च से अगस्त 2021 के बीच 10110 लोगों के रक्त नमूने लिए गए। इनमें से 73.90 फीसदी लोगों में एंटीबॉडी पाई गईं। दूसरा चरण मई से दिसंबर 2021 के बीच चलाया गया जिसमें 6503 लोगों के नमूने लिए गए। यह वही लोग हैं जो पहले चरण में शामिल थे। इस दौरान 90.70 फीसदी लोगों में एंटीबॉडी मिला। इसके बाद तीसरा चरण अगस्त 2021 से जनवरी 2022 के बीच हुआ जिसमें 92.90 फीसदी लोगों में एंटीबॉडी मिले हैं।
67 फीसदी आबादी में साक्ष्य
अध्ययन के अनुसार, देश की 67 फीसदी आबादी में कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडी विकसित होने के साक्ष्य मौजूद हैं। आईसीएमआर के चौथे सीरो सर्वे में भी इसी तरह का निष्कर्ष सामने आया, लेकिन जून 2021 से अब तक स्थिति में क्या बदलाव आया है? इस पर कोई साक्ष्य नहीं है। यही कारण है कि देश के शीर्ष अलग अलग संस्थान ने मिलकर यह अध्ययन किया है। दिल्ली एम्स के वरिष्ठ डॉ. पुनीत मिश्रा के मुताबिक, एंटीबॉडी को लेकर एक और अध्ययन होना चाहिए ताकि यह पता चले कि एंटीबॉडी का स्तर लंबे समय तक कितना रहता है?

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