हमारे शरीर में नमक के सहारे माइक्रोप्लास्टिक पहुंच रहा है। इसमें पॉलीइथाइलीन, पॉलिएस्टर और पॉलीविनाइल क्लोराइड जैसे पॉलिमर हैं, जो गैर संचारी रोगों को बढ़ावा दे रहे हैं।
प्लास्टिक हमारे खून तक पहुंच रहा है क्योंकि प्रकृति इसे वापस लौटा रही है। वैज्ञानिक अध्ययनों में यह पता चला है कि हमारे नमक में माइक्रोप्लास्टिक मिल रहा है। हम हर दिन हजारों टन प्लास्टिक कचरा पैदा कर रहे हैं। इसलिए गंगा से लेकर समुद्र तक में प्लास्टिक का कचरा बढ़ रहा है।
- वैज्ञानिकों का दावा…प्लास्टिक की एक बॉल जब बैट से हिट करती है तो कई माइक्रोप्लास्टिक पैदा होते हैं।
नदियों के जरिये गंगा में पहुंच रहा
नेशनल प्रॉडक्टिविटी काउंसिल (एनपीसी) ने यूनाइटेड नेशन्स एनवायरनमेंट प्रोग्राम (यूनेप) के साथ मिलकर गंगा तट पर बसे हरिद्वार, आगरा और प्रयागराज के किनारे प्लास्टिक प्रदूषण के स्रोत की पड़ताल की।
- रिपोर्ट के मुताबिक, 25 फीसदी प्लास्टिक कचरा न रिसाइकल होता है न ही उसका सही तरीके से निपटारा होता है।
हमारे रक्त में प्लास्टिक
हमारे शरीर में नमक के सहारे माइक्रोप्लास्टिक पहुंच रहा है। इसमें पॉलीइथाइलीन, पॉलिएस्टर और पॉलीविनाइल क्लोराइड जैसे पॉलिमर हैं, जो गैर संचारी रोगों को बढ़ावा दे रहे हैं।
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- अध्ययन में शामिल मुंबई स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के पर्यावरण विशेषज्ञ प्रो. चंदन कृष्ण सेठ ने बताया कि मुंबई के बाजारों से लिए आठ नमूनों के विश्लेषण में पता चला कि एक किलो समुद्री नमक में माइक्रोप्लास्टिक के 35 से लेकर 575 तक कण मिले हैं। यह नमक गुजरात, केरल और महाराष्ट्र में बना था।
सरकार की पहल
पृथ्वी मंत्रालय ने जानकारी दी है कि प्लास्टिक के खिलाफ 2019 में एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक को खत्म करने का संकल्प लिया। प्लास्टिक कचरे के पृथक्करण, संग्रहण और निपटान के लिए बुनियादी ढांचा मजबूत किया जा रहा है।
- यह कचरा शहर के प्रमुख स्थानों पर फेंका जाता है, जो कि बारिश के साथ बहकर नदियों में जा मिलता है।
- नदियां, इन कचरों को बहाकर समुद्र तक ले जाती हैं। इसमें प्लास्टिक के पैकेट, बोतल, चम्मच, नायलॉन के बोरे और पॉलिथीन बैग वगैरह शामिल हैं।
लाल रक्त कोशिकाओं की झिल्लियों से चिपक सकता है
नई दिल्ली स्थित एम्स के डॉ. संजय राय ने बताया-
- माइक्रोप्लास्टिक पांच मिलीमीटर से कम व्यास वाले प्लास्टिक कण होते हैं, जो कि प्रायः गहनों में इस्तेमाल होने वाले मानक मोती की तुलना में भी छोटे होते हैं।
- यह हमारे शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं की बाहरी झिल्लियों से चिपक सकता है और ऑक्सीजन के परिवहन की उनकी क्षमता को सीमित कर सकता है।
- ये कण गर्भवती महिलाओं के प्लेसेंटा में भी मिले हैं। बच्चों में इन कणों को लेकर जोखिम काफी है।
पांच बार लपेट लो पूरी धरती
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, हर वर्ष दुनियाभर में 500 अरब प्लास्टिक बैग उपयोग होते हैं, जो सभी प्रकार के अपशिष्टों का 10 फीसदी है। प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि पूरे विश्व में इतना प्लास्टिक हो गया है कि इससे पृथ्वी को पांच बार लपेटा जा सकता है।
- 15000 टन प्लास्टिक अपशिष्ट प्रतिदिन निकलता है भारत में, जिसकी मात्रा निरंतर बढ़ती जा रही है।
- 80 लाख टन प्लास्टिक समुद्र में बहा दिया जाता है, यानी प्रति मिनट एक ट्रक कचरा समुद्र में डाला जा रहा है।
- यह स्थिति पृथ्वी के वातावरण के लिए बेहद हानिकारक हो सकती है, क्योंकि प्लास्टिक को अपघटित होने में 450 से 1000 वर्ष लग जाते हैं।