मोहब्बत की दुकान (Mohabbat Ki Dukan) का नारा ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान सबसे पहले सुनाई पड़ा था। माना गया था कि इसके जरिए कांग्रेस उसी अल्पसंख्यक मुसलमान समुदाय को साधने की रणनीति बना रही थी, जो कभी उसका सबसे बड़ा समर्थक वोटर वर्ग हुआ करता था।
राहुल गांधी इन दिनों विदेशों में ‘मोहब्बत की दुकान’ लगा रहे हैं। इन कार्यक्रमों में वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘भगवान से भी ज्यादा जानकार’ होने और देश की संस्थाओं पर सरकार का कब्जा होने जैसे आरोप लगा रहे हैं। भाजपा उनके इन बयानों पर हमलावर है और उन पर देश की छवि खराब करने का आरोप लगा रही है। उसके दर्जनों बड़े नेता और केंद्रीय मंत्री राहुल के मामले पर बयानबाजी कर चुके हैं।
इन नेताओं की आक्रामक प्रतिक्रिया बता रही है कि भाजपा राहुल के बयानों को लेकर काफी गंभीर है और वह बिना चूके उन सवालों का पूरा जवाब देना चाह रही है, जिसे राहुल अपने कार्यक्रमों में उठाने की कोशिश कर रहे हैं। बड़ा प्रश्न है कि कल तक राहुल गांधी को ‘पप्पू’ बताने वाली भाजपा आज उनके बयानों को लेकर इतनी गंभीर क्यों हो गई है? राहुल के बयानों पर भाजपा की आक्रामकता का कारण क्या है?
मोहब्बत की दुकान की पंच लाइन
मोहब्बत की दुकान (Mohabbat Ki Dukan) का नारा ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान सबसे पहले सुनाई पड़ा था। माना गया था कि इसके जरिए कांग्रेस उसी अल्पसंख्यक मुसलमान समुदाय को साधने की रणनीति बना रही थी, जो कभी उसका सबसे बड़ा समर्थक वोटर वर्ग हुआ करता था। क्षेत्रीय दलों के उभार के बाद यह वर्ग अलग-अलग दलों में बंट गया, लेकिन दुबारा खड़ी होने की पुरजोर कोशिश में जुटी कांग्रेस अब पूरी शिद्दत के साथ इस वोट बैंक को दुबारा अपने साथ लाने का प्रयास कर रही है।
आंकड़ों में छुपा है आक्रामकता का राज
2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 37.36 प्रतिशत वोटों के साथ 303 सीटों पर सफलता मिली थी, जबकि इसी चुनाव में कांग्रेस को 19.49 प्रतिशत वोटों के साथ 52 सीटों पर जीत मिली थी। भाजपा और कांग्रेस के वोटों में अंतर लगभग 18 फीसदी वोटों का था। यह अंतर उस समय था जब कांग्रेस सबसे कमजोर पिच पर थी, तो पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक कर भाजपा अपनी लोकप्रियता के सर्वोच्च शिखर पर थी।
केंद्र की मुश्किल कांग्रेस की मजबूती
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि हाल के दिनों में कई ऐसे बदलाव हुए हैं जिसके कारण कांग्रेस एक बार फिर मजबूत होती दिखाई पड़ रही है। वहीं भाजपा कई अलग-अलग मोर्चों पर फंसती दिखाई दे रही है। महंगाई, बेरोजगारी, दस साल का एंटी इनकमबेंसी फैक्टर, महिला खिलाड़ियों के सम्मान सहित कई ऐसे मुद्दे हैं जो भाजपा को परेशान कर रहे हैं और ये लोकसभा चुनाव को भी प्रभावित कर सकते हैं। अंतिम दिनों में चुनाव की कैसी परिस्थितियां बनती हैं, इस पर अभी कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन इस समय जो मोटी-मोटी तस्वीर बन रही है, उससे केंद्र को परेशानी होती दिखाई पड़ रही है।
यहां कांग्रेस मजबूत
कांग्रेस के लिए ऐसा कर पाना आसान नहीं है तो बहुत मुश्किल भी नहीं है। इसका बड़ा कारण है कि ये लोकसभा सीटें मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और कर्नाटक जैसे राज्यों में हैं। कांग्रेस इन राज्यों में न केवल मजबूत स्थिति में है, बल्कि वह राजस्थान और छत्तीसगढ़ में दुबारा वापसी करने की मजबूत दावेदारी भी पेश कर रही है। वहीं, भाजपा शासित मध्य प्रदेश में एक बार फिर वह चुनाव में बढ़त बना सकती है। यदि इन समीकरणों के बीच राहुल गांधी का दांव चला तो इसका लोकसभा चुनाव पर भी पड़ सकता है।
गैर-भाजपाई वोटरों का एकजुट होना परेशानी का बड़ा कारण
कर्नाटक और उसके पहले हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों में यह बात सामने आई है कि अब गैर भाजपाई वोटर एकजुट होकर सरकार परिवर्तन के लिए वोट कर रहे हैं। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यदि राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस विपक्ष के अन्य दलों को अपने साथ लेकर चुनाव में उतरी तो और इसका परिणाम 2014 और 2019 से बहुत अलग हो सकता है। राहुल गांधी की मोहब्बत की दुकान इस दिशा की ओर बढ़ाया जा रहा एक मजबूत कदम साबित हो सकता है।
मुसलमानों के साथ दलितों-सिखों को साधने में जुटे राहुल
जानकारों के मुताबिक कांग्रेस जानती है कि वह केवल मुसलमान मतदाताओं के बल पर भाजपा को 2024 की लड़ाई में बड़ी चुनौती नहीं पेश कर सकती। यही कारण है कि राहुल गांधी ने अमेरिका में मुसलमानों के साथ-साथ दलितों और सिखों का मुद्दा भी उठाना शुरू कर दिया है। दलित और सिख मतदाता भी कांग्रेस के परंपरागत वोटर रहे हैं। कर्नाटक चुनाव परिणाम ने यह भी बता दिया है कि कांग्रेस का मल्लिकार्जुन खरगे पर खेला गया दांव अपना असर दिखा रहा है और दलित मतदाता उसकी ओर आ रहे हैं।
खरगे फैक्टर
राहुल गांधी दलितों के मुद्दे को उठाकर यही कर्नाटक इफेक्ट उत्तर भारत के राज्यों तक भी पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। राहुल के द्वारा जातीय जनगणना के मुद्दे को मजबूती से उठाना उनकी इस कोशिश को और मजबूती दे सकता है। यही कारण है कि माना जा रहा है कि आने वाले समय में कांग्रेस इस मुहिम को और तेज कर सकती है। इन कारणों से यदि कांग्रेस दलित-पिछड़े वर्ग वर्ग का एक हिस्सा भी अपने साथ जोड़ने में कामयाब रही तो मुसलमान मतदाताओं के साथ उसका यह जोड़ 2024 की लड़ाई को दिलचस्प बना सकती है।
200 सीटों पर आमने-सामने की चुनौती
राजनीतिक विश्लेषक सुनील पांडेय ने अमर उजाला से कहा कि 2014 में कांग्रेस ने 464 सीटों पर और 2019 में 421 सीटों पर अपनी किस्मत आजमाई। 2019 में उसे 52 सीटों पर सफलता मिली थी, लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण बात है कि 2019 में भाजपा को जिन 303 सीटों पर सफलता मिली थी, उनमें 190 लोकसभा सीटों पर उसकी लड़ाई कांग्रेस से थी। 185 सीटों पर उसे अन्य क्षेत्रीय दलों का सामना करना पड़ा था, जिसमें उसने 128 सीटों पर सफलता हासिल की थी।
उन्होंने कहा कि इस प्रकार लगभग 200 लोकसभा सीटों पर भाजपा और कांग्रेस में आमने-सामने की लड़ाई है। यदि कांग्रेस अपनी लोकप्रिय योजनाओं और सामाजिक समीकरणों के सहारे इन 190 सीटों पर भाजपा को घेरने में कामयाब रहती है तो भाजपा के लिए सत्ता की राह कठिन हो सकती है।
मोदी फैक्टर अभी भी लोकप्रिय
वहीं, राजनीतिक विश्लेषक शांतनु कुमार का मानना है कि अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि लोकसभा चुनाव में भी कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश जैसा परिणाम दिखाई पड़ सकता है। यह सही है कि इन राज्यों में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आक्रामक चुनाव प्रचार किया, लेकिन ये चुनाव विधानसभा के लिए थे। जनता को पता था कि वह मुख्यमंत्री का चुनाव कर रही है, प्रधानमंत्री का नहीं।
2019 के लोकसभा चुनाव के पहले भी प्रधानमंत्री मोदी के प्रचार के बाद भी भाजपा को राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में करारी हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन जब लोकसभा चुनाव हुए तो भाजपा ने इन सभी राज्यों में लगभग क्लीन स्वीप कर दिया।
ब्रांड मोदी की लोकप्रियता बरकरार
शांतनु कुमार ने कहा कि भाजपा का पूरा चुनावी अभियान ब्रांड मोदी की सफलता पर निर्भर करता है। लेकिन तमाम सर्वे बताते हैें कि ब्रांड मोदी की लोकप्रियता आम जनता के बीच अभी भी कायम है। यही कारण है कि भाजपा-कांग्रेस की आमने-सामने वाली सीटों पर ही नहीं, बल्कि दूसरी सीटों पर भी भाजपा मजबूती के साथ चुनावी लड़ाई में दिखाई पड़ेगी। साथ ही, भाजपा अपने अंतिम चुनावी वर्ष में कुछ और लोकप्रिय दांव खेलकर मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर सकती है। इन सबका समेकित परिणाम भाजपा के पक्ष में आ सकता है।
अपने गढ़ में भाजपा अब भी मजबूत
उन्होंने कहा कि 2024 की लड़ाई भी कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के लिए आसान नहीं होने वाली है। इसका बड़ा कारण है कि भाजपा अपने गढ़ उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, बिहार, झारखंड और पूर्वोत्तर के राज्यों में अभी भी मजबूत है जहां विपक्षी दल पूरी एकता के बाद भी उसे चुनौती देने की स्थिति में नहीं हैं। विपक्षी दलों में अभी भी एकता के नाम पर सीटों पर तालमेल स्पष्ट नहीं है। यदि एकता बनी तो विपक्ष अवश्य मजबूत होगा, लेकिन इससे जनता के बीच भी अलग समीकरण पैदा होंगे। लेकिन यह अवश्य है कि कांग्रेस के मजबूत होने के दौर में 2024 की लड़ाई एकतरफा नहीं होने वाली है।
भाजपा हुई आक्रामक
भाजपा बदलती परिस्थितियों में कांग्रेस की इस चाल को बखूबी समझ रही है। यही कारण है कि राहुल गांधी की इस मुहिम को पंचर करने के लिए उसने अपने दिग्गज नेताओं की फौज उतार दी। केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल, अनुराग ठाकुर, गिरिराज ठाकुर, पूर्व केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद, मुख्तार अब्बास नकवी सहित अनेक नेता राहुल गांधी को घेरने में जुट गए। रवि शंकर प्रसाद ने बृहस्पतिवार को आरोप लगाया कि राहुल गांधी मोहब्बत की दुकान के नाम पर नफरत फैला रहे हैं। वे विदेश में जाकर देश को बदनाम करने का काम कर रहे हैं। इसके पहले भी वे अपनी विदेश यात्राओं में यही काम कर रहे थे और इस बार भी वे यही काम कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि GDP के आंकड़े यह बताने के लिए पर्याप्त है कि देश बेहतरीन गति से आगे प्रगति कर रहा है। मनमोहन सिंह सरकार के समय भारत फ्रैजाइल फाइव की श्रेणी में आता था, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काल में देश दुनिया के पांच सबसे अच्छे पांच देशों में शामिल हो गया है और कांग्रेस को यही बात पसंद नहीं आ रही है।
प्रसाद ने कहा कि भारत को दुनिया में विकास के इंजन के तौर पर देखा जा रहा है। 90 हजार करोड़ रुपये का मोबाइल एक्सपोर्ट इस बाजार में भारत की शक्ति दिखाने के लिए पर्याप्त है। स्पॉन्सर्ड एक्सपर्ट गलत सिद्ध हो रहे हैं और देश तेज गति से विकास कर रहा है, लेकिन कांग्रेस की आंखों से यह दिखाई नहीं पड़ रहा ह