यह संशोधन नेपाल के नागरिक से शादी करने वाली विदेशी महिलाओं को राजनीतिक अधिकारों के साथ तुरंत नागरिकता प्रदान करता है। अब तक इसके लिए उन्हें सात साल का इंतजार करना होता था।
यह संशोधन नेपाल के नागरिक से शादी करने वाली विदेशी महिलाओं को राजनीतिक अधिकारों के साथ तुरंत नागरिकता प्रदान करता है। अब तक इसके लिए उन्हें सात साल का इंतजार करना होता था। जानकारों का मानना है कि चीन इस कानून के पक्ष में नहीं है। यह वही संशोधन है जिसे पिछले साल 14 जुलाई को गतिरोध के बीच संसद में पारित कर दिया गया था। लेकिन, तब राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने संसद के दूसरी बार वापस भेजे जाने के बाद भी इसे सहमति देने से इन्कार कर दिया था। इस विधेयक में किसी व्यक्ति को केवल एक मां के नाम से नागरिकता की अनुमति मिलती है। इतना ही नहीं, इस विधेयक ने सार्क देश के बाहर रहने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए अनिवासी नागरिकता का मार्ग भी प्रशस्त किया है।
तिब्बती शरणार्थियों की नागरिकता चीन को नागवार
नेपाल का नया नागरिकता कानून उसे दुनिया के सबसे उदार कानूनों में से एक बनाता है। इसका लाभ तिब्बती महिलाओं को भी मिलेगा और उन्हें नेपाली कानून का पूरा सहारा मिलेगा। इसलिए चीन पहले भी इस कानून को लेकर चेताता रहा है। उसे डर है कि यह कानून तिब्बती शरणार्थियों के वंशजों को नागरिकता व संपत्ति का अधिकार देगा।
भारत को क्या फायदा होगा
भारत और नेपाल के बीच रोटी-बेटी का संबंध है। दोनों देशों के बीच सदियों से धार्मिक और सामाजिक संबंध रहे हैं। भारत के उत्तर प्रदेश और बिहार राज्यों से बड़ी संख्या में लड़कियों की शादी नेपाल में हुई है। नए संशोधन से इन लोगों को अब आसानी होगी।
विवाद का एक कारण यह भी
दरअसल, भारत के बाद नेपाल दुनिया में सबसे ज्यादा तिब्बती शरणार्थियों का घर है। नेपाल ने तिब्बती नागरिकों से जुड़ा कोई दस्तावेजीकरण नहीं कराया है जिससे सटीक संख्या का अनुमान लगाना मुश्किल है।