विज्ञान हो या ज्योतिष सूर्य सहित नौ ग्रहों का जीवन पर पड़ने वाला व्यापक प्रभाव दोनों स्वीकार करते हैं। नौ ग्रहों के दर्शन एक साथ हो और वो भी उनकी पत्नी के साथ तो इसे ग्रहों में आस्था रखने वालों के लिए बड़ी खुशखबरी ही कहा जाएगा। MP के ग्वालियर जिले की डबरा तहसील में मप्र का सबसे बड़ा नवग्रह मंदिर बन रहा है। काम 90 फीसदी पूरा हो चुका है। इस मंदिर को विज्ञान और ज्योतिष दोनों की मान्यताओं को ध्यान में रखकर डिजाइन किया गया है।
तो आइए मकर संक्रांति पर बताते हैं 12 एकड़ के इस मंदिर में क्या है खास
डबरा शहर के पश्चिमी ओर जहां कभी शुगर मिल थी उसी के पास अब 12 एकड़ में नवग्रह मंदिर बन रहा है। पहले डबरा की पहचान शकर के लिए होती थी। अब मिल बंद है। डबरा की नई पहचान अब यहां बनने वाले नवग्रह मंदिर से होने की उम्मीद है। मंदिर ट्रस्ट का दावा है कि ये मप्र का सबसे भव्य नवग्रह मंदिर होने जा रहा है। जहां सभी नौ ग्रह अपनी पत्नियों के साथ विराजेंगे।
मंदिर निर्माण में द्रविड़ ,फ़ारस और मिश्रित शैली का उपयोग किया गया है तो संपूर्ण मंदिर का निर्माण गोलाकार रूप में किया गया है। यहां वास्तु और विज्ञान दोनों का ध्यान रखा क्या है क्योंकि वास्तु में गोलाकार वस्तु पर अशुभ प्रभाव नहीं पड़ता तो साइंस के अनुसार ग्रह वृत्ताकार कक्षाओं में ही भ्रमण करते हैं।
मंदिर के पास एक विशाल तालाब बनाया गया है जिसमें प्रवाहित जल मंदिर की परिक्रमा करते हुए वापस तालाब में पहुंचेगा और परिक्रमा का यह सिलसिला लगातार जारी रहेगा। इसके पीछे का तर्क भी ज्योतिष के अनुसार लिया गया है क्योंकि जब सूर्य देव को पृथ्वी पर विराजित किया जाता है तो उनके तेज को या कहें ऊर्जा को नियंत्रित करने के लिए जल की आवश्यकता पड़ती है। इस साल के अंत या अगले साल के प्रारंभ में इसका काम पूरा होने की उम्मीद है। फिलहाल इसका 90% काम पूरा हो चुका है। मंदिर निर्माण से डबरा क्षेत्र में पर्यटन को काफी बढ़ावा मिलेगा।
भगवान परशुराम लोक न्यास ने मंदिर का निर्माण वर्ष 2012 में शुरु किया गया था। मंदिर और इसके परिसर को मिलाकर निर्माण कार्य करीब 12 एकड़ जमीन पर किया जा रहा है। आर्किटेक्ट और इंजीनियर अनिल शर्मा ने बताया कि अब मंदिर में स्थापित की जाने वाली देव प्रतिमाओं के साथ ही तालाब और अन्य सौर्दर्यीकरण का काम अंतिम दौर में पहुंच चुका है। मंदिर निर्माण में ज्योतिष और वास्तु का विशेष ध्यान रखा गया है। यह मंदिर अपनी विशेषताओं के चलते मप्र का सबसे बड़ा नवग्रह मंदिर होगा।
द्रविड़, फारस और मिश्रित शैली में बना है मंदिर
40 हजार स्क्वेयर फीट में बना मंदिर और एक लाख स्क्वेयर फिट में प्लेटफार्म एरिया को बनाने में द्रविड़,फ़ारस और मिश्रित शैली का उपयोग किया गया है। मंदिर का बाहरी स्वरूप मिश्रित शैली में है तो सूर्य मंदिर द्रविड़ शैली में है। पूरा स्वरूप रथ के आकार में है। जिसमें चार चक्र 7 घोड़े तो सारथी के रूप में वरुण देव दर्शाए हैं जो सभी घोड़ों की लगाम अपने हाथों में लिए हुए हैं।
ग्रह और उनकी पत्नियों के नाम
(1)सूर्य-संध्या, छाया देवी
(2)चन्द्र-रोहिणीदेवी
(3मंगल-शकितदेवी
(4)बुध-इलादेवी
(5)बृहस्पति-तारादेवी
(6)शुक्र-सुकीर्ति-उजस्वतीदेवी
(7)शनि-नीला देवी
(8)राहु-सीम्हीदेवी
(9)केतु-चित्रलेखादेवी
यह होगा मंदिर में खास:-
तीन मंजिला बनाया गया है मंदिर का भवन।
• 40 हजार वर्गफीट में बन रहा नवग्रह मंदिर का मुख्य हिस्सा।
• 108 पिलर पर खड़ा किया गया है मंदिर का ढांचा।
• 108 ॐ की नक्काशी की गई है सभी नौ मंदिरों की मार्बल की दीवार पर।
• प्रथम तल पर सत्संग व धार्मिक आयोजन के लिए 80×80 फीट का हॉल तैयार किया गया है।
• दूसरे तल पर सारे ग्रह सपत्नीक जिनमें शुक्र, चंद्र, मंगल, राहु, केतु, शनि, बृहस्पति, बुध और उनके आदि देवता दुर्गा, शिव, गणेश, सर्प, हनुमान, राधाकृष्ण और राम की अष्ट धातु और मार्बल प्रतिमाएं स्थापित होंगी।
• मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं के रुकने के लिए 150 कमरे, हॉल, पुस्तकालय, व्यायाम शाला, किचन।
• 9 हजार वर्ग फीट में नक्षत्र वन, जिसमें प्रत्येक वृक्ष की परिक्रमा की व्यवस्था
• मंदिर में फव्वारा,मंदिर के सामने शिव जी की प्रतिमा यहां से भगवान शिव की प्रतिमा से गंगा का पानी तालाब में जाएगा।
• मंदिर के 300 कॉलम पर हिंदू धर्म के सभी देवी देवता,चौंसठ योगिनियां, और सप्तऋषियों के साथ अन्य ऋषियों की प्रतिमाएं उकेरी गई हैं।
• डेढ़ सौ रूम ,किचन , हॉल, डायनिंग हॉल, पुस्तकालय, परकोटे में हिंदू धर्मा देवी, चौंसठ योगिनियां और सप्तऋषि के साथ 300 कॉलम , फप्वारा, मंदिर के सामने शिव जी की प्रतिमा, गंगा के रुप में जल तालाब में पहुंचेगा। गार्डन, चार मुख्य द्वार परकोटे के,इनमें भी सारे गेटों की अलग विशेषता रहेगी। मुख्य दरवाजा श्रद्धालुओं के लिए तो दूसरे से वाहन प्रवेश करेंगे।
• तालाब :-मंदिर के आकार का ही तालाब है। उसे भी काफ़ी सुंदर बनाया जा रहा है। घूमने के लिए रास्ता तो सौंदर्य देखने के लिए झरोखे बनाए जा रहे हैं। मंदिर के चारों कोणों पर बारादरी का निर्माण कर कृत्रिम झरना बनाया गया है
मूर्तियां ऐसे लगेंगी ताकि एक ग्रह की दृष्टि दूसरे पर ना पड़े
मंदिर में अष्ट धातु और मार्बल की आदम कद प्रतिमाएं स्थापित की जा रही हैं सारे ग्रहों की मूर्तियां ज्योतिष के अनुसार बनाई और स्थापित होंगी। जिनमें उनकी हाथों की मुद्राएं वस्त्रों की ऊंचाई का भी ध्यान रखा गया है और सभी मूर्तियों की ऊंचाई सूर्यदेव की मूर्ति की ऊंचाई के अनुरूप स्थापित की गई है ताकि एक ग्रह की दृष्टि दूसरे ग्रह पर ना पड़े।
नवग्रह पीठ डबरा में दिशा के अनुसार ग्रहों की स्थिति
सूर्य – मध्य में
शुक्र – पूर्व
चन्द्र – दक्षिण पूर्व
मंगल – दक्षिण
राहू – दक्षिण पश्चिम
शनि – पश्चिम
केतु – उत्तर पश्चिम
गुरु – उत्तर
बुध – उत्तर पूर्व
सभी ग्रहों की शांति के लिए एक ही स्थान पर पूजा-पाठ
परशुराम लोक न्यास द्वारा बनाए जा रहे इस मंदिर के संरक्षक और समाजसेवी श्रीमन नारायण मिश्र का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण सभी चीजों को ध्यान में रखकर कराया जा रहा है चाहे वह ज्योतिष हो वास्तु हो या फिर विज्ञान। यह मप्र का पहला मंदिर होगा जिसमें लोग एक साथ सभी ग्रहों की शांति के लिए पूजा पाठ करेंगे। इस मंदिर को बनाने का ख्याल इसलिए आया कि आमतौर पर लोग ग्रह शांति के लिए अलग-अलग स्थानों पर जाते हैं। अभी तक सभी जगह हर ग्रह के अलग-अलग मंदिर हैं और लोगों को अलग-अलग जगह जाना पड़ता है। इस मंदिर के निर्माण से व्यक्ति एक स्थान पर आकर अपने ग्रह शांति के लिए पूजा पाठ कर सकेगा।