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भूल गए आज सुंदर सिंह भंडारी आएंगे, बेल दबी तो याद आया, घर में आलू न था, खुद खोदकर लाए

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पंडित केशरी नाथ त्रिपाठी के जीवन के पन्ने पलटेंगे तो बहुत सी कहानियां आपको मिलेंगी। भारतीय जनता पार्टी, संगठन और अपने करियर के प्रति वो समर्पित और कर्तव्यनिष्ठ थे।

संगठन, कार्यकर्ता और उनका करियर ये तीनों साथ साथ चलते थे। इलाहाबाद हाईकोर्ट के नामचीन एडवोकेट्स में पंडित केशरी नाथ त्रिपाठी गिने जाते हैं। उन्होंने भाजपा में रहते हुए मुलायम सिंह यादव का भी केस लड़ा तो वहीं माफिया अतीक अहमद के भी वकील रहे। आइये ऐसे की कुछ रोचक पर संदेश देने वाला संस्मरण आपको पढ़वाते हैं।

विहिप के काशी प्रांत के पूर्व प्रांत उपायक्ष रहे पुनीत वर्मा ने पंडित जी से जुडे कई संस्मरण सुनाए।
विहिप के काशी प्रांत के पूर्व प्रांत उपायक्ष रहे पुनीत वर्मा ने पंडित जी से जुडे कई संस्मरण सुनाए।

घर की बेल बजी तब याद आया कि आज सुंदर सिंह भंडारी आने वाले थे

यह संस्मरण जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक रहे सुंदर सिंह भंडारी से जुड़ा हुआ है। एक बार जनसंघ के संस्थापक सदस्य रहे सुंदर सिंह भंडारी ने पंडित केशरी नाथ त्रिपाठी को सुबह-सुबह फोन किया।

कहा कि मैं आज प्रयागराज (तब इलाहाबाद) आऊंगा। आपके घर ही रुकुंगा। पंडित केशरी नाथ त्रिपठी स्नान-ध्यान के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट चले गए। उस दिन कोई बड़ा फैसला आना था।

दिनभर की आपाधापी और हाईकोर्ट की व्यस्तता के बाद वो देर शाम घर लौटे। सर्दी की रात थी। घर लौटने के बाद कुछ कार्यकर्ताओं से मिले उनके साथ चाय-नाश्ता किया और फिर काम में लग गए।

काम करने के दौरान उनकी पत्नी सुधा ने नॉक किया। बोलीं भोजन तैयार है आ जाइये। पंडित जी परिवार के साथ गए और भोजन किया। इसके बाद परिवार के अन्य सदस्य सो गए और पंडित जी अपने चैंबर में फाइलाें में उलझ गए।

सब तो मैं मैनेज कर लूंगी लेकिन किचन में आलू नहीं है

अचानक रात को 11 बजे पंडित केशरी नाथ त्रिपाठी के आवास की घंटी बजी। कोहरा था और ठंड काफी थी। पंडितजी ने पूछा कौन? उधर से जवाब मिला मैं सुंदर सिंह भंडारी। तब पंडित जी को याद अया कि अरे भंडारी जी ने मुझसे कहा था कि में आऊंगा मेरे दिमाग से ही उतर गया।

दरवाजा खुला सुंदर सिंह भंडारी के साथ 10 और लोग भी संगठन के थे। सभी को अंदर ले जाकर बैठाया गया। सेवक ने चाय ऑफर किया। पंडित केशरी नाथ त्रिपाठी अंदर गए और पत्नी सुधा को जगाया।

बताया कि सुंदर सिंह भंडारी जी आए हैं और उनके साथ 10 कार्यकर्ता और हैं। बिना बताए? अरे, क्या बताऊं मैं ही भूल गया। सुबह बताए थे कि मैं आ रहा हूं।

पत्नी सुधा ने कहा कि और सब तो मैं मैनेज कर लूंगी लेकिन किचन में आलू नहीं है। पंडित जी ने कहा अच्छा ठीक है आप की जनसभा लो मैं आलू लेकर आता हूं। खुदा लुटाई और घर के पीछे बनी किचन गार्डन में लगी आलू खोदने चले गए।

थोड़ी देर में एक दौरी भरकर आलू खोद कर ले आए। पत्नी ने बिना जलाए बिना कुछ कहे कहा कि जाइए अब तो आपने जो करना था कर दिया अब मैं संभाल लूंगी आप उन सब के पास जाकर बैठी हो हमसे बात करिए।

मुश्किल से आधे घंटे बीते होंगे और सभी ने चाय खत्म की ही थी अंदर से आवाज आई पंडित जी भोजन तैयार है। पंडित केशरीनाथ त्रिपाठी की पत्नी सुधा का 2016 में निधन हो गया है।

विश्व हिंदू परिषद काशी प्रांत के पूर्व प्रांत उपाध्यक्ष रहे पुनीत वर्मा को यह संस्मरण पंडित जी ने अपने पिछले बर्थडे पर बताते हुए यह संदेश देने की कोशिश की थी कि संगठन में कई मौकों पर आपको अपनी पर्सनल लाइफ से भी कंप्रोमाइज करना पड़ता है।

उनका कहना था कि अगर परिवार ने उनका कदम कदम पर साथ न दिया होता तो शायद वो वकालत, राजनीति और निजी जिंदगी में इतना आगे न बढ़ पाते।

अपने पिछले जन्मदिन पर पंडित केशरी नाथ त्रिपाठी ने अमित मालवीय को जख्मों के शबाब किताब भेंट की थी।
अपने पिछले जन्मदिन पर पंडित केशरी नाथ त्रिपाठी ने अमित मालवीय को जख्मों के शबाब किताब भेंट की थी।

राज्यपाल रहते हर फोन खुद उठाते थे

भारतीय जनता पार्टी के युवा मोर्चा के नेता रहे व वर्तमान में सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता फौजदारी, अमित मालवीय ने बताया कि हमारा राजभवन देखने का मन हुआ। उस समय पंडित केशरी नाथ त्रिपाठी पश्चिम बंगाल के राज्यपाल हुआ करते थे।

हमने उनके मोबाइल नंबर पर फोन मिलाया। फोन नहीं उठा तो हमने टेक्स्ट मैसेज डाला। करीब 3 घंटे बाद पंडित केसरीनाथ त्रिपाठी का कॉल बैक आया और पूछा अमित कैसे हो? कैसे फोन किया? घर में सब ठीक है न? हमने कहा हां सब ठीक है।

हम राजभवन आना चाहते हैं, लेकिन हमारी कुछ शर्तें हैं।हंसे, बोले बताओ। तुम शर्त कब से लगाने लगे? मैंने कहा मैं सर्किट हाउस में नहीं रुकूंगा। मैं राजभवन में ही रहूंगा। बोले ठीक है इस समय कुछ भीड़ ज्यादा है तुम कुछ दिन बाद नहीं आ सकते?

मैंने कहा नहीं मैं अभी आऊंगा। तुम बहुत जिद्दी हो। आ जाओ। कैसे आओगे? मैंने कहा बाय रोड। पंडित जी ने मुझे डांटा। इतनी दूर बाय रोड आने की क्या जरूरत है। ट्रेन से आओ। मैं पश्चिम बंगाल राजभवन पहुंचा तो गेट पर सुरक्षा गार्ड ने हमें रोक लिया।

कहां जाना है? राज्यपाल महोदय से मिलना है। कोई अपॉइंटमेंट है? मैंने कहा देखी गेट पर कोई संदेश दर्ज होगा। बोला नहीं मेरे पास कोई मैसेज नहीं है। मैंने वहीं से पंडित जी को फोन मिलाया। कॉल रिसीव हुई और पंडित जी ने कहा कहां हो अमित।

हमने कहा गेट पर हैं लेकिन यह में अंदर नहीं आने दे रहे हैं। बोले तुम फोन रखो। मैंने फोन रखा कुछ सेकंड बाद ही गेट पर घंटी बजी और जो सुरक्षा गार्ड मुझे रोक रहे थे वह सा सम्मान अंदर लेकर गए। हम राजभवन में 4 दिन रहे।

मैं पंडित जी के करीब 2012 के विधानसभा चुनाव में आया था। शहर दक्षिणी से केशरी नाथ त्रिपाठी विधायिकी का चुनाव लड़ रहे थे। उस समय में युवा मोर्चा में था, लेकिन शहर दक्षिणी में मेरा मकान होने के कारण उन्होंने मुझे चुनाव का मीडिया प्रभारी बनाया था।

2012 के 5 साल बाद में 2017 में पंडित केशरीनाथ त्रिपाठी से मिलने पश्चिम बंगाल गया था। 5 साल बीतने के बाद भी एक अदने से कार्यकर्ता के साथ उनका बर्ताव और लहजा तनिक भी नहीं बदला था।

जैसे 2012 में हमसे वह मिलते थे हमसे चुनाव पर चर्चा और मंत्रणा करते थे वैसे ही 4 दिन रहने के दौरान उन्होंने हमसे बात की। लगा ही नहीं कि जिस व्यक्ति को मैं इतने करीब से जानता हूं उनके साथ उठना, बैठना, खाना, पीना है वह व्यक्ति राज्यपाल होने के बाद भी इतना सहज हो सकता है।

वह हमारे नेता ही नहीं थे हमारे अभिभावक भी थे। कोई भी समस्या या बात होती थी तो हम पंडित जी के पास बेझिझक पहुंच जाते थे। किसी को फोन करना हो किसी से कोई सिफारिश करनी हो पंडित जी यह कभी नहीं हिचकते थे।

कार्यकर्ताओं के लिए वह एक अभिभावक के तौर पर हमेशा रहे। उनके निधन से एक बहुत बड़ी क्षति हुई है जिसकी भरपाई शायद कभी नहीं हो पाएगी।

डॉ. धनंजय चोपड़ा सेंटर ऑफ मीडिया स्टडीज, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कोआर्डिनेटर हैं।
डॉ. धनंजय चोपड़ा सेंटर ऑफ मीडिया स्टडीज, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कोआर्डिनेटर हैं।

हर बार उनका यह पूछना कि – ‘और नया का लिख रहे हो’, मुझे बहुत भाता था

पंडित केशरी नाथ त्रिपाठी सौम्यता के प्रतीक थे। वे मेरे निवास क्षेत्र यानी शहर दक्षिणी के विधायक भी रहे। यह वही दौर था जब मैं उनके संपर्क में आया। यूं तो कई रोचक किस्से उनसे हुई मुलाकातों के हैं, लेकिन हर बार उनका यह पूछना कि – ‘और नया का लिख रहे हो’, मुझे बहुत भाता था।

दरअसल, वे स्वयं एक बेहतरीन रचनाकार थे। उनकी रुचि यह जानने में रहती थी कि नई पीढ़ी के लोग क्या रच रहे हैं। कभी कभी भी शिकायती अंदाज में यह कहने से नहीं चूकते कि – ‘लग रहा है आजकल मामला सन्नाटे में है, कुछ नया पढ़ने को नहीं मिल रहा है।’

जब वे विधानसभा अध्यक्ष हो गए और उनकी व्यस्तता बढ़ गई। उन दिनों हम उनसे मिलने जब भी लखनऊ गए, वे तत्काल मिलने को आतुर हो जाते। एक बार त्रिपाठी जी से हमने शिकायत की कि – बहुत दिन हुआ आप क्षेत्र में आए नहीं, तो वे हंस कर बोले- तुम लोग बुलाए भी तो नहीं।

उनके इसी अंदाज के सभी कायल रहते थे। वे कवि हृदय होने के कारण बहुत ही संवेदनशील नेता थे। हर किसी की सहायता करने, उसे संबल देने और कुछ बेहतर करने को प्रेरित करना उनका प्रिय शगल रहता था। उनका जाना एक और रचनाधर्मी और संवेदनशील राजनीतिज्ञ जाना है, जिनकी इस समय हमें बहुत जरूरत है।

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