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17 साल पहले 25 बॉक्स से शुरू किया था रोजगार, 275 बॉक्स के हैं मालिक

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“कौन कहता है कि आसमा में सुराख नहीं होता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो” कवि दुष्यंत की इन-पंक्तियों को प्रयागराज के संजय मौर्या से सच करके दिखाया है। वह इनदिनों में कौशांबी जिले के कनवार गांव के वीराने में डेरा जमाये हुए हैं। संजय अगले 10 दिनों तक कौशांबी के अलग अलग हिस्से में रहकर बी-कीपिंग करेंगे। उसके पास मौजूदा समय में एक ट्रक मक्खियां है। जिसने वह सालाना 4 लाख रुपये कमाते हैं।

प्रयागराज हड़िया के छोटे से गांव मुलनापुर में रहने वाले संजय कुमार मौर्या बी-कीपिंग किसान है। संजय ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से मास्टर ऑफ़ आर्ट्स हिंदी विषय से किया है। शुरुआती दौर में आम बेरोजगार युवाओं की तरह उन्होंने सरकारी नौकरी के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाया, लेकिन नौकरी हाथ नहीं आई।

4 लाख रुपये सालाना कमा रहे
संजय मौर्या ने बताया, नौकरी की झंझावात से दूर होकर उन्होंने खुद के रोजगार की सोची। पिता रूप नारायण से 50 हज़ार रुपये लेकर 25 बॉक्स खरीद कर मधुमक्खी पालन (बी-कीपिंग) शुरू किया। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज उनके पास एक ट्रक मक्खियां है। जिनसे वह 4 लाख रुपये सालाना कमाते हैं।

इन बॉक्सों को खुले में रखा जाता है।
इन बॉक्सों को खुले में रखा जाता है।

गांव के 4 अन्य युवाओं को दे रहे रोजगार
बी-कीपिंग फार्मर संजय मौर्या परिवार में सबसे बड़े है। उनसे छोटा एक भाई है जो निजी व्यवसाय करता है। संजय मौर्या परिवार संयुक्त है। घर में माता-पिता के अलावा पत्नी पुष्पा मौर्या एवं 2 बेटे अंकित मौर्या, अमन मौर्या एवं बेटी अंजलि मौर्या है। संजय मौर्या के पिता छोटे किसान है। जो परंपरागत खेती कर उन्हें और उनके भाई को बीए एमए तक की पढ़ाई कराई। मुश्किल दौर में उन्होंने खुद को सभाल कर रोजगार कर परिवार के अलावा गांव के 4 अन्य युवाओ को रोजगार दे रहे हैं।

बड़े बेटा अंकित मौर्या कर रहा बीटेक की पढ़ाई
संजय मौर्या के मुताबिक उन्होंने बी-कीपिंग के जरिए अपने बड़े बेटे अंकित मौर्या को बीटेक की पढ़ाई करा रहे हैं। वह दिल्ली में रहता है। बेटी अंजलि बीएससी (सेकेंड) की छात्रा है और सबसे छोटा बेटा 9 की पढाई कर रहा है। यह सबकुछ वह मधुमक्खी पालन कर अपनी मेहनत से कर सके हैं। वह सालाना इस मक्खियों से 4 लाख रुपये कमा लेते हैं।

मधुमक्खी इन्हीं बाक्सों में रहती है।
मधुमक्खी इन्हीं बाक्सों में रहती है।

2005 में बी-कीपिंग 50 हज़ार रुपये से की थी शुरू
संजय कुमार मौर्या ने बताया, वह भी आम बेरोजगार जैसे नौकरी न मिलने पर कुंठित हो रहे थे। फिर उनके एक रिस्तेदार ने उन्हें बी-कीपिंग के बारे में जानकारी दी। साल 2005 में उन्होंने बी-कीपिंग 50 हज़ार रुपये से शुरू की। 25 बॉक्स से शुरू हुआ रोजगार आज 275 बॉक्स तक पहुंच गया है। या यूं कहे कि उनके पास एक ट्रक इटेलियन मक्खिया मौजूदा समय में है। जिसके लिए भोजन एकत्रित कराने के लिए वह यूपी एमपी समेत कई जिलों में 7-8 महीने घर से बाहर रहते है। मार्च के बाद फसलों की कटाई होने पर वह मार्च से सितम्बर माह तक घर में रहते है। इन मक्खियों से वह वर्ष भर में 4 लाख रुपये तक की शहद निकल कर ब्रिक्री कर लेते हैं।

अपने परिवार के साथ संजय कुमार मौर्या।
अपने परिवार के साथ संजय कुमार मौर्या।

क्या है बी-कीपिंग
बी-कीपिंग यानी मधुमक्खी पालन। जिसे बेहद कम खर्च में साधारण से साधारण व्यक्ति कुछ जरुरी सावधानियों के साथ शुरू कर सकता है। जिसके लिए किसी विशेष ट्रेनिंग की आवश्यकता नहीं होती। उद्यान अधिकारी सुरेंद्र राम भास्कर ने बताया, बी-कीपिंग के लिए भारत सरकार प्रधानमंत्री 2017 में मीठी क्रांति को हरीझंडी दिखाई थी। जिसके तहत नेशनल बी-कीपिंग एंड हनी मिशन की शुरुआत की गई। जिसके तहत प्रधानमंत्री हनी मिशन योजना के तहत 10 बॉक्स इच्छुक लाभार्थी को दिए जाते हैं। जिले में हनी मिशन योजना का कोई भी लाभार्थी नहीं है। हार्टिकल्चर मिशन के तहत 16 लाभार्थी जिले में बी-कीपिंग कर रहे हैं।

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