दिल्ली नगर निगम यानी एमसीडी के चुनाव नतीजों की तस्वीर साफ हो चुकी है। 15 साल बाद एमसीडी भाजपा के हाथ से फिसल गई है। 250 में से आधी से ज्यादा सीटें आम आदमी पार्टी को मिलती दिख रही हैं। भाजपा और कांग्रेस ने इस चुनाव में अपनी जमीन खोई है। आइए जानते हैं कि यह चुनाव चर्चा में क्यों रहा और नतीजों के मायने क्या हैं…
1# सबसे पहले जानते हैं कि इन नतीजों की इतनी चर्चा क्यों है?
इसके तीन कारण हैं। स्वाभाविक तौर पर पहला कारण यह है कि यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आता है। दूसरा- दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है, जो 2013 के बाद से यहां काफी मजबूत हुई है। तीसरा- दिल्ली नगर निगम आकार में बड़ा है। 2022-23 के लिए इसका बजट 15,276 करोड़ रुपये का है। क्षेत्रफल की बात करें तो एमसीडी का दायरा बृह्नमुंबई नगर निगम के मुकाबले तीन गुना ज्यादा है।
2# पार्षद पांच साल के लिए, महापौर एक साल के लिए
3# नतीजे किस तरह सामने आए?
3# चौंकाने वाली स्थिति कहां रही?
- वार्ड नंबर 203 लक्ष्मी नगर। यानी दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया जहां रहते हैं। यहां आम आदमी पार्टी नहीं जीत पाई। भाजपा की अल्का राघव ने आप की मीनाक्षी शर्मा को हरा दिया।
- वार्ड नंबर 189 जाकिर नगर। यह दिल्ली वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष और आप विधायक अमानतुल्लाह खान यहां रहते हैं। यहां न आप को जीत मिली, न भाजपा जीत सकी। कांग्रेस की नाजिया दानिश ने दोनों पार्टियों के उम्मीदवारों को यहां हरा दिया।
- वार्ड नंबर 74 चांदनी चौक। इसी इलाके में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का घर है। इस वार्ड से सुबह आए रुझानों में आम आदमी पार्टी पिछड़ रही थी। यहां चौंकाने वाले नतीजे आ सकते थे। हालांकि, आखिर में आप के पुनर्दीप सिंह जीत गए।
- वार्ड 58 सरस्वती विहार, वार्ड 59 पश्चिम विहार और वार्ड 60 रानी बाग। ये तीनों वार्ड मंत्री सत्येंद्र जैन की विधानसभा में आते हैं। तीनों वार्ड में भाजपा को जीत मिली है।
5# एमसीडी के चुनाव नतीजे किसके लिए अच्छी खबर, किसके लिए झटका?
- जाहिर तौर पर इस चुनाव में आम आदमी पार्टी को फायदा और भाजपा को नुकसान हुआ है। भाजपा यहां 2007 से लगातार जीत रही थी। यानी 15 साल से एमसीडी पर उसका राज था। 2002 में यहां कांग्रेस जीती थी, लेकिन उससे पहले 1997 में भी यहां भाजपा को जीत मिली थी। इस चुनाव में दिल्ली के मतदाताओं ने भाजपा को बहुमत हासिल करने से रोक दिया।
- आम आदमी पार्टी के लिए यह अच्छी खबर इसलिए है क्योंकि अब तक वह सिर्फ विधानसभा में मजबूत थी। तीन बार से एमसीडी और दो बार से लोकसभा चुनाव में भाजपा ही मजबूत नजर आती थी। अब 15 साल बाद एमसीडी भाजपा के हाथ से फिसल गया है।
6# वोट शेयर से जानिए, कौन हुआ मजबूत और कौन कमजोर?
- पिछली बार तीन अलग-अलग नगर निगम के लिए 272 पार्षद चुने गए थे। तीनों में भाजपा के पास औसत 35 फीसदी का वोट शेयर था। वहीं, आम आदमी पार्टी के पास औसत 25 फीसदी वोट शेयर था।
- तीनों निगमों के एकीकरण के बाद 250 सीटों पर चुनाव हुए। अब आम आदमी पार्टी का मत प्रतिशत 42 फीसदी के आसपास है। भाजपा के पास 39 फीसदी का वोट शेयर है।
- सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को हुआ है, जिसके पास पिछली बार तो औसत 20 फीसदी वोट शेयर था, लेकिन इस बार घटकर यह 12 फीसदी के आसपास रह गया है। माना जा सकता है कि आम आम पार्टी ने कांग्रेस और निर्दलीयों के वोटों में सेंध लगाई है।
7# क्या लोकसभा चुनाव पर कुछ असर दिखेगा?
2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के पास 56 फीसदी वोट शेयर था और उसने सभी सात सीटें जीती थीं। कांग्रेस के पास 22 फीसदी और आम आदमी पार्टी के पास 18 फीसदी वोटर शेयर था। इसके बाद 2020 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 53 फीसदी वोट हासिल कर 62 सीटें जीती थीं। भाजपा ने महज आठ सीटें जीती थीं, लेकिन उसका वोट शेयर 38 फीसदी रहा। एमसीडी चुनाव में आम आदमी पार्टी के वोट प्रतिशत में बड़ी उछाल के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली में मुकाबला दिलचस्प हो सकता है।