बता दें कि राहुल के साथ 137 यात्री पैदल चल रहे हैं। इनके रोज ढाई सौ से ज्यादा कपड़े और बेडशीट धुलने के लिए आती हैं। कपड़े धोने वाली टीम का जिम्मा छह लोगों के पास है। जो बड़ा वॅाशर, प्रेस और कपड़े सुखाने की मशीन एक कटेंनर में रखकर चल रही है। ढाई हजार लीटर पानी भी इनको रोज चाहिए होता है। भारत जोड़ो यात्रा में शामिल लोग होटलों में नहीं ठहरते। इनके लिए सुविधाएं सड़क किनारे किसी मैदान, किसी स्कूल परिसर में जुटाई जा रही है। यात्रा के साथ हाउस कीपिंग की पूरी टीम साथ चलती है। इसमें 65 लोग शामिल हैं। मुंबई की एक एजेंसी को इसका काम दिया गया है। 250 लोगों के कपड़े धुलाई के लिए आते हैं, कभी-कभी इससे ज्यादा भी आ जाते हैं।
कंटेनर रुकते ही बांध देते हैं रस्सियां…
कपड़े धोने वाली टीम का जिम्मा वेंकटेश मारिमुथु संभालते हैं। वेंकटेश के अनुसार, सात लोगों की टीम कपड़ों की धुलाई और प्रेस का काम देखती है। 33 लोग हाउस कीपिंग का काम संभालते हैं। कपड़े मशीनों में ही धुलते हैं, लेकिन सुखाने के लिए तो धूप जरूरी है। हर दिन जहां भी रात्रि विश्राम होता है, हम सबसे पहले लकड़ियां गाड़कर रस्सियां लगा देते हैं। राहुल गांधी की टी-शर्ट प्रेस करते हुए सहयोगी बाबूराव बताते हैं कि राहुल के कपड़े सबके साथ धुलते हैं। उनके लिए अलग से कोई दूसरा स्टॅाफ नहीं रखा। राहुल की टी-शर्ट रुमाल, मोजे रोज धुलने आते हैं।
एक बार में धुलते है 50 कपड़े…
घरों में इस्तेमाल होने वाली वाशिंग मशीन की तुलना में यहां कई गुना ज्यादा क्षमता की मशीने हैं। इनमें एक बार में 50 कपड़े धुल जाते हैं। सुखाने के लिए अलग मशीन है। फिर भी धूप में भी कपड़े सुखाते हैं। एक कंटेनर में कपड़ों को प्रेस करने के लिए विशेष मशीन है, जिसमें वैक्यूम का इस्तेमाल होता है। जिससे कपड़ा फिसलता नहीं है और जल्दी काम हो जाता है।
MP का किंगमेकर है मालवा-निमाड़…
दरअसल, प्रदेश की सत्ता के लिए मालवा-निमाड़ सबसे अहम होता है। क्योंकि ये वो इलाका है, जहां से राजधानी भोपाल का रास्ता तय होता है। यानी मालवा-निमाड़ को प्रदेश की सत्ता की चाबी कहा जाता है। क्योंकि छत्तीसगढ़ के अलग होने के बाद से ही मालवा-निमाड़ मध्यप्रदेश का एक तरह से किंगमेकर बनकर उभरा है। इस जोन में जिस पार्टी को यहां कामयाबी मिलती है, प्रदेश की सत्ता पर उसी का राजतिलक होता है, पिछले पांच विधानसभा चुनावों के नतीजे तो यही कहते हैं।
मालवा-निमाड़ में विधानसभा की 66 सीटें…
मालवा-निमाड़ में विधानसभा की 66 सीटें आती हैं। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार की सबसे बड़ी वजह मालवा-निमाड़ ही रहा था। क्योंकि यहां की फिलहाल यहां की 66 सीटों में से सबसे अधिक 35 सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी, तो बीजेपी को केवल 28 सीटें मिली थी, जिससे कांग्रेस 15 साल बाद प्रदेश की सत्ता वापसी में सफल रही थी। जबकि साल 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने मालवा-निमाड़ को एकतरफा जीतते हुए 57 सीटों पर अपना कब्जा किया था, जबकि कांग्रेस को केवल नौ सीटें मिली थी, जिससे बीजेपी बंपर बहुमत मिला था। साल 2013 और 2018 के नतीजों के आधार पर सीटों का यही बड़ा अंतर बीजेपी और कांग्रेस की सरकारें बनवाने में अहम साबित हुआ था, लिहाजा बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए मालवा-निमाड़ सबसे महत्वपूर्ण साबित होता रहा है। दोनों ही दलों ने अपनी-अपनी ताकत इस हिस्से में झोंकते हैं। यही वजह है कि साल 2023 के लिए बीजेपी यहां खास फोकस कर रही है।
संघ की नर्सरी माना जाता है मालवा-निमाड़…
खास बात यह भी है कि मालवा-निमाड़ संघ की नर्सरी माना जाता है। संघ का सबसे ज्यादा फोकस यही रहता है। वहीं, मध्यप्रदेश बीजेपी के ज्यादातर बडे़ नेता इसी अंचल से निकले हैं। वैसे तो मालवा-निमाड़ में बीजेपी के कई दिग्गज नेता आते हैं, लेकिन सीएम शिवराज इस अंचल से न होते हुए भी उनकी स्वीकार्यता यहां मानी जाती है, जबकि कैलाश विजयवर्गीय इस क्षेत्र में पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा है। इसके अलावा मालवा-निमाड़ से आने वाले बीजेपी नेता सत्यनारायण जटिया को भी बीजेपी संसदीय बोर्ड में शामिल किया गया है। जबकि ज्योतिरादित्य सिंधिया के भी बीजेपी में आने से मालवा-निमाड़ में पार्टी की ताकत बड़ी है। ऐसे में पार्टी एससी-एसटी के साथ ओबीसी वर्ग को भी साधने की पूरी तैयारी में हैं। कुल मिलाकर बीजेपी का पूरा फोकस मालवा-निमाड़ पर बना हुआ है।