कानपुर के छत्रपति शाहूजी महराज के कुलपति प्रो. विनय पाठक के एकेटीयू वीसी रहते हुए निर्माण कार्यों पर अगर किसी ने मुंह खोला तो ऊपर से फोन घनघनाने लगते थे। कई बड़े नौकरशाह उसकी ढाल बनकर खड़े रहते थे। इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (आईईटी) के एक वित्त एवं लेखाधिकारी ने उनके समय में हुए करोड़ों रुपये के भुगतान पर आपत्ति की तो इन नौकरशाहों के दबाव में ही उनका तबादला आजमगढ़ कर दिया गया।
शासन के गलियारों में यह चर्चा आम है कि अगर प्रो. पाठक के खिलाफ जांच पूरी गंभीरता से हुई तो न सिर्फ यहां भी बड़े घपलों का खुलासा होगा, बल्कि उनके मददगार कई बड़े नौकरशाहों के नाम भी सामने आएंगे। सूत्रों के मुताबिक, उनके कार्यकाल में दीनदयाल उपाध्याय गुणवत्ता सुधार कार्यक्रम (डीडीयूक्यूआईपी) के तहत आईईटी को 25 करोड़ रुपये अनुदान के रूप में दिए गए। इसे विश्वविद्यालय ने अपने स्तर से खर्च किया। 9.25 करोड़ रुपये फर्नीचर पर खर्च किया गया। इनके मानकों के अनुरूप न होने के बावजूद फर्म को भुगतान किया गया। 1.95 करोड़ रुपये के सीसीटीवी कैमरे लगाए गए, जो कि प्रस्तावित विशिष्टताओं और गुणवत्ता के नहीं थे। इतना ही नहीं जिस सॉफ्टवेयर की जरूरत ही नहीं थी, उसे भी खरीदने के लिए 35 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया।
उनके समय में एकेटीयू में करोड़ों रुपये की एफडी मैच्योरिटी से पहले ही एक बैंक से दूसरे बैंक में ट्रांसफर की गई, जिससे राजस्व का नुकसान हुआ। बताते हैं कि 12 करोड़ रुपये का गोल्ड बॉन्ड सीधे आरबीआई से न खरीदकर एक एजेंट एजेंसी के माध्यम से खरीदा गया, जिसके कमीशन में हेराफेरी की गई। आईईटी परिसर में आंतरिक सड़कों की मरम्मत में भी बड़ी कमीशनखोरी चली। खास बात यह थी कि विश्वविद्यालय ने अपने स्तर से एजेंसी का चयन किया और आईईटी के किसी भी अधिकारी को इसकी कॉपी तक नहीं भेजी।
इसी तरह से विश्वविद्यालय में निर्मित अधिकारियों एवं कर्मचारियों के लिए निर्मित आवासों के लिए भुगतान बिना थर्ड पार्टी की जांच केकर दिया गया। करोड़ों रुपये के कमीशन की बंदरबांट की गई। डीडीयूक्यूआईपी के तहत 7 करोड़ रुपये लागत के छात्रावास के निर्माण में जिस कार्यदायी संस्था ने काम किया, उसी ने गुणवत्ता प्रमाणपत्र भी जारी कर दिया। जब इस बारे में कुछ अधिकारियों ने सवाल उठाए तो एक निजी आर्किटेक्ट का गुणवत्ता प्रमाणपत्र दिया गया, जबकि प्रावधान है कि इस तरह के निर्माण में थर्ड पार्टी ऑडिट किसी शासकीय संस्थान से ही कराया जाए। निर्माण कार्यों में मनमाने ढंग से बीच में ही कार्यदायी संस्था बदलने के मामले भी प्रकाश में आ चुकेहैं।
एफएओ ने नोट लिखा, दो नौकरशाहों ने बनाया दबाव
सूत्र बताते हैं कि इन वित्तीय घपलों के बारे में आईईटी के तत्कालीन वित्त एवं लेखाधिकारी (एफएओ) ने आधिकारिक नोट लिखा तो कुछ ही घंटों में यह बात शासन में तैनात दो नौकरशाहों तक पहुंच गई। दोनों ने ही एफएओ के ट्रांसफर के लिए पूरा जोर लगा दिया। नतीजतन, उन्हें आजमगढ़ भेज दिया गया।
रिटायर्ड जस्टिस ने भी की थी जांच की स्पष्ट संस्तुति
आईईटी में निर्माण कार्यों में गड़बड़ियों की जांच रिटायर्ड जस्टिस की अध्यक्षता में गठित कमेटी से कराई गई तो उन्होंने भी लिखा कि निर्माण कार्यों के थर्ड पार्टी ऑडिट में सरकारी और अर्ध सरकारी एजेंसियों के बजाय निजी एजेंसियों को क्यों लगाया गया, इसकी जांच गंभीरता से कराई जानी चाहिए।
मनमाना कमीशन देकर खूब फलेफूले करीबी
छत्रपति शाहूजी महराज विश्वविद्यालय कानपुर के कुलपति प्रो. विनय पाठक व उनके करीबी अजय मिश्रा पर दर्ज केस की जांच कर रही एसटीएफ के हाथ अहम सुराग लगे हैं। इसमें प्रो. पाठक के कार्यकाल में कराए गए कई कामों के फर्जी तरीके से भुगतान करने के दस्तावेज भी हैं। एसटीएफ के अधिकारी के मुताबिक प्रो. पाठक के दरबार में जो भी करीबी आया, उसका कारोबार खूब फलाफूला। बदले में अजय मिश्रा ने मनमाना कमीशन तयकर जिस कारोबारी या एजेंसी की सिफारिश की, उसे करोड़ों का काम दिया गया। लखनऊ, कानपुर व आगरा के अलावा उत्तराखंड में तैनाती के दौरान हुए कार्यों की जांच के लिए एसटीएफ की टीमें लगी हैं। एकेटीयू में प्रो. पाठक छह साल तक वीसी थे। इस दौरान मनमर्जी से निर्माण कार्य, खरीद फरोख्त और कई ऐसे कार्य कराए, जिनकी जरूरत नहीं थी।
फुपुक्टा की मांग, प्रो. पाठक को बर्खास्त कर हो सीबीआई जांच
उप्र. विश्वविद्यालय-महाविद्यालय शिक्षक महासंघ (फुपुक्टा) ने विभिन्न विश्वविद्यालयों में बतौर कुलपति तैनात रहे प्रो. विनय कुमार पाठक को बर्खास्त कर उनके खिलाफ सीबीआई जांच की मांग की है। संघ के अध्यक्ष डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने इस संबंध में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र भेजा है। इसमें उन्होंने कहा है कि महासंघ उच्च शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार से व्यथित है और प्रदेश भर के शिक्षकों में काफी रोष है।