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सौराष्ट्र में इस बार कांग्रेस कैसे बचाएगी अपना किला? ‘आप’ के आने से भाजपा को मिली ‘ऑक्सीजन’

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गुजरात के विधानसभा चुनावों के पहले चरण में होने वाले सौराष्ट्र क्षेत्र में इस बार कांग्रेस के लिए अपना किला बचाने को सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है। दरअसल पाटीदार आंदोलन के चलते 2017 में सबसे ज्यादा सीटें कांग्रेस ने इसी क्षेत्र से जीती थीं। लेकिन इस बार पाटीदार आंदोलन के कई बड़े चेहरे कांग्रेस से अलग हो गए हैं। तो सवाल यह है क्या कांग्रेस इस बार सौराष्ट्र में अपना किला बचाने में सफल होगी। सियासी जानकारों का कहना है कि कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओं के अलग होने और आम आदमी पार्टी के सक्रिय होने से भाजपा को ऑक्सीजन मिल गई है। फिलहाल सौराष्ट्र क्षेत्र में होने वाला चुनाव इस बार पिछले साल की तुलना में ज्यादा चुनौतीपूर्ण और महत्वपूर्ण होंगे।

पाटीदार आंदोलन ने बिगाड़ा खेल

भाजपा की बीते कुछ चुनावों से सौराष्ट्र इलाके में मजबूत दावेदारी रही है। 2012 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने सौराष्ट्र की 48 सीटों में से 35 सीटें जीती थीं। लेकिन 2017 आते-आते पाटीदार आंदोलन इतना मजबूत हुआ कि भाजपा को पिछले चुनाव में इस क्षेत्र में मुंह की खानी पड़ी। नतीजा हुआ कि 2017 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने सौराष्ट्र क्षेत्र में 45 फ़ीसदी वोट के साथ 30 सीटें हासिल की थीं। सियासी जानकारों का कहना है कि पाटीदार आंदोलन के चलते कांग्रेस को इस पूरे इलाके के ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे ज्यादा वोट मिले थे। जबकि भाजपा को शहरी क्षेत्र में ज्यादा वोट मिले। हालांकि पिछले चुनाव में कई सीटें ऐसी थीं, जिसमें भाजपा बहुत कम वोटों से हारी थी। डांग विधानसभा सीट भाजपा जहां 768 वोटों से हारी थी वही कपराड़ा विधानसभा सीट 170 वोटों से भाजपा हार गई थी।

गुजरात के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक अनिरुद्ध पटेल कहते हैं कि सौराष्ट्र को जीतने के लिए जातीय समीकरण साधना बेहद आवश्यक है। उनका कहना है 2017 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने पाटीदार समाज को न सिर्फ मजबूती से साधा था बल्कि पाटीदार समाज के ही कई बड़े नेता कांग्रेस के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे थे। वह कहते हैं कि इस बार हालात थोड़े अलग हैं। पटेल कहते हैं कि उस वक्त पाटीदार आंदोलन की अगुवाई करने वाले नेता हार्दिक पटेल कांग्रेस के साथ में थे। इस चुनाव में कांग्रेस का यह युवा बड़ा चेहरा भाजपा के साथ जुड़ गया है। पटेल कहते हैं कि कांग्रेस को इसका नुकसान होगा या फायदा यह तो चुनाव परिणाम बताएंगे, लेकिन पाटीदार आंदोलन के चलते जिस तरीके से 2017 में कांग्रेस ने अपनी बढ़त हासिल की थी, वह इस बार दूसरे समीकरणों के साथ खड़ी है। वह कहते हैं बीते कुछ दिनों में कांग्रेस के कई नेता पार्टी से दामन छुड़ा कर भाजपा या आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए हैं।

 

भाजपा ने माइक्रो लेवल पर किया काम

गुजरात के सियासी गलियारों में चर्चा इस बात की भी हो रही है कि कोली और पाटीदार समुदाय पर जिसकी सबसे ज्यादा पकड़ होगी सौराष्ट्र क्षेत्र में डंका उसी का बजेगा। राजनीतिक विश्लेषक हरिओम भट्ट कहते हैं कि पिछली बार भाजपा को इस क्षेत्र में कम सीटें मिली थीं। यही वजह है कि पार्टी ने यहां पर माइक्रो लेवल पर अपनी टीम को मजबूत करके न सिर्फ हार की समीक्षा की, बल्कि नेटवर्क को भी मजबूत करने की पूरी योजना बनाई है। भट्ट कहते हैं चूंकि इस इलाके में गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपानी भी अपने विधानसभा क्षेत्र के नाते बहुत सक्रिय हैं और गृह मंत्री अमित शाह ने सौराष्ट्र क्षेत्र को मजबूत करने के लिए लगातार कई बैठकें की और बड़े नेताओं से संपर्क भी साधा है। इसलिए इस चुनाव में भाजपा अपने पुराने गढ़ को किसी भी कीमत पर पाने के लिए एड़ी से चोटी का जोर लगा रही है। उनका कहना है कि ऐसा नहीं है कि कांग्रेस इस इलाके में अपनी मजबूती नहीं बना रही है, लेकिन आम आदमी पार्टी की अचानक बढ़ी सक्रियता से इस पूरे इलाके में हालात त्रिकोणात्मक चुनावी संघर्ष के तौर पर सामने दिख रहे हैं।

Gujarat Election: This Time The Biggest Challenge For The Congress Remains  To Save The Saurashtra Region - Gujarat Election: सौराष्ट्र में इस बार  कांग्रेस कैसे बचाएगी अपना किला? 'आप' के आने से

वरिष्ठ पत्रकार हरीश बावलिया कहते हैं कि 2017 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने भाजपा को कुछ सीटों पर कम अंतराल से हराया था। जबकि कई सीटों पर कांग्रेस को बढ़त मिलने के पीछे निर्दलीयों का मजबूती से चुनाव लड़ना भी शामिल रहा था। इस बार वहां पर आम आदमी पार्टी की सेंधमारी से निर्दलीयों के मजबूती से चुनाव लड़ने और उसका फायदा किसी भी राजनीतिक दल को होने की संभावना है कम नजर आ रही है। इसकी वजह बताते हुए बावलिया कहते हैं कि कई मजबूत प्रत्याशी और अलग-अलग राजनीतिक दलों के नेता आम आदमी पार्टी का दामन थाम चुके हैं। ऐसे में यह कहना कि सौराष्ट्र में लड़ाई भाजपा और कांग्रेस के बीच ही होगी, थोड़ा मुश्किल लग रहा है। हालांकि उनका मानना है कि बदले राजनैतिक समीकरणों के लिहाज से पाटीदार और कोली वोट में बंटवारा हो सकता है। जिसका फायदा भाजपा कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को भी मिलने की उम्मीद बनी हुई है।

 

आप ने की वोट बैंक में सेंधमारी

गुजरात भाजपा के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि पाटीदार समाज के बड़े नेता हार्दिक पटेल के भाजपा में आने से उनकी पार्टी सौराष्ट्र क्षेत्र में न सिर्फ मजबूत हुई है बल्कि 2012 और उससे पहले के नतीजों की राह पर है। इसके अलावा कई कांग्रेस के जातिगत समीकरणों को साधने वाले बड़े नेता आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए हैं। सियासी जानकारों का कहना है कि भाजपा को इस बात की उम्मीद है कि आम आदमी पार्टी के सक्रिय होने से कांग्रेस के वोट बैंक में सेंधमारी होगी। यही वजह है कि भाजपा को ऐसे राजनैतिक समीकरणों के लिहाज से ऑक्सीजन मिलने का अनुमान लग रहा है। जबकि कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि आम आदमी पार्टी तो भाजपा के वोट में ही सेंधमारी कर रही है। इसलिए आम आदमी पार्टी की सक्रियता से कांग्रेस को नहीं बल्कि भाजपा को जबरदस्त नुकसान होने वाला है।

दरअसल सौराष्ट्र क्षेत्र में आम आदमी पार्टी की अचानक बढ़ी सक्रियता से कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे इंद्रनील राजगुरु ने कांग्रेस पार्टी से अपना दामन छुड़ा लिया था। कांग्रेस के लिए यह हार्दिक पटेल के जाने के बाद बड़ा झटका माना जा रहा था और आम आदमी पार्टी के लिए सौराष्ट्र क्षेत्र में मजबूत जमीन तैयार मानी जा रही थी। लेकिन चार दिन पहले राजनैतिक समीकरणों की गणित बिगाड़ते हुए इंद्रनील राजगुरु ने आम आदमी पार्टी छोड़कर वापस कांग्रेस का दामन साध लिया। सियासी गलियारों में अब चर्चा इस बात की हो रही है कि राजगुरु के वापस आने से इस क्षेत्र में कांग्रेस की स्थिति एक बार फिर से मजबूत हो गई है। राजकोट से राजगुरु पिछली दफा पूर्व मुख्यमंत्री विजय रुपाणी सामने चुनाव में थे। हालांकि वह यह चुनाव हार गए थे। कांग्रेस के लिए राजगुरु का वापस आना पार्टी के लिहाज से मजबूत स्थिति बनाने जैसा है। सियासी जानकारों का कहना है चार दिन पहले हुए इस फेरबदल से सौराष्ट्र की राजनीति में क्या असर पड़ेगा यह तो चुनाव परिणाम बताएंगे। लेकिन कांग्रेस पार्टी एक बार फिर से नैरेटिव सेट करने में जुट गई हैं।

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