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बच्चा गुमसुम है तो चेक कराएं ब्रेन सर्किट, ज्यादा चंचलता भी खतरनाक

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यदि बच्चा अधिक चंचल है या गुमसुम रहता है तो मनोचिकित्सक को दिखाएं। ये दोनों स्थितियां ब्रेन सर्किट की गड़बड़ी से होती हैं। इस गड़बड़ी को चिह्नित कर लिया गया है। ऐसे में अब इस तरह के बच्चों को सटीक इलाज मिल सकेगा। बीमारी के लिए जिम्मेदार ब्रेन सर्किट को चिह्नित करने का कार्य किया है केजीएमयू और सीबीएमआर के विशेषज्ञों ने। इसे यूएस के जर्नल साइकियाट्रिक रिसर्च न्यूरो इमेजिन में जगह मिली है।

मानसिक रोग विभाग में अलग-अलग तरह के बच्चे आते हैं। कुछ में अधिक चंचलता होती है तो कुछ गुमसुम रहते हैं। इनकी वजह तलाशने के लिए केजीएमयू के मानसिक रोग विभाग के अध्यक्ष प्रो. विवेक अग्रवाल, प्रो. अमित आर्य एवं सेंटर ऑफ बायोमेडिकल रिसर्च के एडिशनल प्रोफेसर उत्तम कुमार ने अध्ययन किया। 16 सामान्य और 16 अटेंशन डेफिसिट एंड हाइपरएक्टिविटी डिस्आर्डर (एडीएचसी) बच्चों की फंक्शनल एमआरआई की गई। इनके ब्रेनसर्किट को जांचा गया।

इसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से पूरी स्थिति का आकलन किया गया। इस दौरान देखा गया कि जिन बच्चों में अधिक चंचलता रहती है उनके ब्रेन सर्किट का पैटर्न अलग दिखता है। वहीं, जो बच्चे  एकदम शांत रहते हैं, उनमें भी पैटर्न में बदलाव दिखता है। इसी तरह सामान्य बच्चों का पैटर्न अलग दिखता है। इस तरह तीनों श्रेणी में ब्रेन सर्किट पैटर्न अलग-अलग दिखते हैं। ब्रेन सर्किट की कनेक्टिविटी में भी अलग-अलग तथ्य सामने आए। इस कनेक्टिविटी को जांच कर चिह्नित किया गया, ताकि ब्रेन सर्किट की स्थिति के अनुसार उसे सक्रिय अथवा निष्क्रिय करने के लिए दवाओं का प्रयोग किया जा सके। इस अध्ययन के आधार पर दवाओं का ट्रायल किया जाएगा।

क्या होगा फायदा 
ब्रेन सर्किट की कनेक्टिविटी चेक होने से अब इलाज में सटीक दवाएं दी जा सकेंगी। क्योंकि जब कनेक्टिविटी में असमानता रहती है तो बीमारी होने की संभावना अधिक रहती है। अभी तक बच्चों के व्यवहार के आधार पर उनसे बातचीत कर सवाल पूछे जाते थे। उनके जवाब के आधार पर दवाएं तय की जाती थीं। अब ब्रेन सर्किट की स्थिति के अनुसार दवाएं दी जा सकेंगी।

एडीएचसी के प्रमुख लक्षण
बच्चे का मन न लगना, उसका व्यवहार सामान्य न होना, जिद्दी होना, ज्यादा चंचल होना, कल्पना, सपनों और ख्यालों में खोए रहना, चीजों को भूल जाना, फिजूलखर्ची, कभी ज्यादा बोलना या बिल्कुल न बोलना, निर्देशों को सुनने या पालन करने में असमर्थ प्रतीत होना, मिजाज बदलना, चिड़चिड़ापन और तेज गुस्सा होना आदि लक्षण हैं तो मनोचिकित्सक को दिखा देना चाहिए।

एडीएचडी के प्रमुख कारण
दिमाग की चोट, जन्म के बाद मस्तिष्क का ठीक से विकास न होना, समय से पहले डिलीवरी, जन्म के समय कम वजन, बच्चे को मिरगी के दौरे आना, अगर परिवार में पहले किसी को एडीएचडी की समस्या है तो बच्चे में भी हो सकती है। गर्भावस्था के दौरान शराब और तंबाकू का सेवन।

काउंसिलिंग और दवाओं से होता है सुधार 
केजीएमयू मानसिक रोग विभागाध्यक्ष प्रो. विवेक अग्रवाल बताते हैं कि इस तरह के बच्चों को दवा और काउंसिलिंग की जरूरत होती है। जिस तरह से अन्य बीमारियों का इलाज होता है, उसी तरह से मानसिक रोग का भी सामान्य इलाज होता है। 

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