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विद्यार्थी के निर्माण में पांच भावों का महत्वपूर्ण योगदानः चिरंजीव

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कार्यक्रम के दौरान मंचासीन अतिथि

सरस्वती विद्या मंदिर इण्टर कॉलेज मायापुर में परिवार प्रबोधन कार्यक्रम का तृतीय संस्करण कक्षा 10 और कक्षा 11 के छात्र-छात्राओं एवं अभिभावकों के साथ हुआ। कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों का मां सरस्वती के सम्मुख दीप प्रज्ज्वलित एवं बच्चों द्वारा वन्दना के साथ हुआ।

अभिभावकों के परिचय के बाद मुख्य वक्ता विभाग प्रचारक आरएसएस चिरंजीव ने अभिभावकों को संबोधित करते हुए संयुक्त परिवार के महत्व को समझाते हुए कहा कि वर्तमान समय में परिवार बहुत छोटे-छोटे होते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि एक बालक का सबसे पहला गुरु उसकी माता होती है जो बालक के अंदर अपने परिवार के प्रति और समाज के प्रति भाव जागरूक करती है। बालक के अंदर ऐसे भाव उत्पन्न होते हैं तो वह अपने परिवार के लिए और समाज के लिए करने में सक्षम हो जाता है।

उन्होंने कहा कि दिन में एक बार भोजन एक साथ करें। मंगल चर्चा करें। त्योहारों में भारतीय वेश अवश्य पहनें, अपनी भारतीय भाषा का अधिकतर प्रयोग करें। एक विद्यार्थी के निर्माण में भाषा, भूषा, भजन, भ्रमण, भवन और भोजन का महत्वपूर्ण योगदान होता है। इन सभी से सनातन संस्कृति बनती है।

मुख्य अतिथि डॉ. विजयपाल सिंह प्रदेश निरीक्षक विद्या भारती उत्तरांचल ने कहा कि विद्या भारती केवल शिक्षण देने का कार्य ही नहीं करती अपितु देश की संस्कृति के संरक्षण का कार्य भी करती है और ऐसा वह अपने विद्यालय के बालकाें को शिक्षित करके करती है। उन्होंने कहा कि संस्कृति को बचाये रखने का मुख्य आधार परिवार है। यदि परिवार संयुक्त होगा तभी हम अपनी संस्कृति को बनाये रख सकते हैं।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए बालकृष्ण शास्त्री ने कहा कि इस समय पूरे देश भर में विद्या भारती के द्वारा परिवार प्रबोधन का कार्यक्रम चलाया जा रहा है, जो सभी परिवारों को एक दिशा देने का कार्य करेगा। उन्होंने कहा कि संस्कार हमारे जीवन में परम आवश्यक हैं क्योंकि संस्कारों द्वारा ही मनुष्य की पहचान होती है। हम चाहे जितनी योग्यता प्राप्त कर लें लेकिन संस्कारहीन हैं तो अपने कर्तव्य मार्ग से भी भटक जायेंगे।

इस मौके पर प्रधानाचार्य अजय सिंह पंवार ने उपस्थित अभिभावकों का विद्यालय परिवार की ओर से आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में शैलेन्द्र रतूड़ी, कृष्ण गोपाल रतूड़ी, बुद्धि सिंह, मनीष धीमान, विपिन राठौर, अम्बरीष, सोनी, गीता सहित आचार्यगण उपस्थित रहे।

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