सजा पूरी होने के बावजूद देश की अलग-अलग जेलों में नजरबंद बंदी सिखों की रिहाई को लेकर एसजीपीसी के नेतृत्व में रोष मार्च निकाल कर संगत काले कपड़े पहन व हाथों में काली झण्डियां लेकर लघु सचिवालय पर खूब गरजी।
बता दें कि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी श्री अमृतसर द्वारा बंदी सिखों की रिहाई की मांग को लेकर काले कपड़े पहन कर लघु सचिवालय पर रोष प्रदर्शन करने का आह्वान किया था। इससे पहले श्री अकाल तखत साहिब श्री अमृतसर द्वारा आदेश जारी होने के बाद 12 अगस्त को भी बंदी सिखों की रिहाई को जिला स्तर पर रोष प्रदर्शन कर ज्ञापन सौंपे गए थे।
एसजीपीसी के आह्वान पर सोमवार को कुरुक्षेत्र के ऐतिहासिक गुरुद्वारा साहिब पातशाही छठी में सिख संगत एकत्रित हुई। यहां से एकत्रित होकर सिख संगत का काफिला काले कपड़ पहन एवं काली दस्तार सजा कर मोटरसाइकिल काफिले के रूप में लघु सचिवालय पहुंचा। यहां सिखों ने सजा भुगत चुके बंदी सिखों की रिहाई की मांग को लेकर केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते हुए अपना रोष व्यकत किया।
एसजीपीसी वरिष्ठ उपाध्यक्ष रघुजीत सिंह विर्क ने कहा कि आजादी के 75 साल बाद भी देश की आजादी के लिए 80 फीसदी से ज्यादा कुर्बानी देने वाले सिखों के साथ दूसरे दर्जे के शहरी वाला व्यवहार किया जा रहा है। इसका एक उदाहरण तीन दशकों से भारत की विभिन्न जेलों में नजरबंद सिख हैं, जिन्हें अपनी सजा पूरी करने के बाद भी रिहा नहीं किया जा रहा है। ये वह बंदी सिख हैं, जिन्होंने 1984 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा सिख धर्मस्थलों पर सैन्य हमलों के विरोध में संघर्ष का रास्ता चुना था। इन सिख बंदियों को रिहा न करके सरकारें लगातार सिखों के साथ भेदभाव कर रही हैं, जो मानवाधिकारों का एक बड़ा उल्लंघन है।
उन्होंने बताया कि जो बंदी सिख जेलों में बंद है, उनमें भाई गुरदीप सिंघ खैरा, प्रो. देविंदरपाल सिंह भुल्लर, भाई बलवंत सिंह राजोआना, भाई जगतार सिंह हवारा, भाई लखविंदर सिंह लकखा, भाई गुरमीत सिंह, भाई शमशेर सिंह, भाई परमजीत सिंह भियोरा, भाई जगतार सिंह तारा और कई अन्य सिख शामिल हैं।