केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह आज नई दिल्ली के विज्ञान भवन में राज्यों के सहकारिता मंत्रियों के दो दिवसीय राष्ट्रय सम्मेलन को संबोधित किया। सम्मेलन में सहकारिता राज्यमंत्री बी एल वर्मा और 21 राज्यों के सहकारिता मंत्रियों और 2 केन्द्रशासित प्रदेशों के उपराज्यपालों सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
अपने संबोधन में केन्द्रीय सहकारिता मंत्री ने कहा कि ये दो दिवसीय सम्मेलन आने वाले दिनों में इस देश में सहकारिता को एक नए पड़ाव तक ले जाने वाला सिद्ध होगा। उन्होंने कहा कि भारत में सहकारिता लगभग 125 साल पुराना विचार और संस्कार है लेकिन किसी भी गतिविधि में अगर हम समयानुकूल बदलाव नहीं करते तो वो कालबाह्य हो जाती है और अब समय आ गया है कि सहकारिता क्षेत्र आज की ज़रूरतों के अनुकूल अपने आप को मज़बूत करके एक बार फिर सबका विश्वास अर्जित करे। श्री शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने 6 जुलाई 2021 को सहकारिता मंत्रालय का गठन कियाथा और लगभग एक साल में सहकारिता के जुड़े सभी क्षेत्रों में मंत्रालय ने कई बैठकों और सम्मेलनों का आयोजन किया है। सहकारिता प्रमुख रूप से राज्यों का विषय है और हमारे संविधान ने सहकारिता की सभी गतिविधियों को राज्यों पर छोड़ा है, लेकिन भारत जैसे विशाल देश में पूरा सहकारिता आंदोलन एक ही रास्ते पर चले, इसके लिए सभी राज्यों को इस बारे में अपने कॉमन विचार तय करने होंगे।
श्री अमित शाह ने कहा कि सहकारिता को मज़बूत करने के लिए पैक्स (PACS) को मज़बूत करना सबसे ज़्यादा ज़रूरी है और इसके लिए सरकार कई काम कर रही है। उन्होंने राज्यों के सहकारिता मंत्रियों से कहा कि हम सबको मिलकर सहकारिता क्षेत्र में टीम इंडिया का भाव जागृत करना होगा और बिना किसा राजनीति के एक ट्रस्टी की भूमिका में अपने-अपने राज्य में सहकारिता क्षेत्र को मज़बूत करने और इसके विकास के लिए आगे बढ़ना होगा। सहकारिता के विगत सवा सौ साल के इतिहास को देखें तो पता चलता है कि भारत के अर्थतंत्र में सहकारिता का बहुत गौरवपूर्ण योगदान रहा है और हमारा प्रयास है कि अगले सौ साल में सहकारिता अनिवार्य रूप में भारतीय अर्थतंत्र का हिस्सा बने और प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के 5 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था के स्वप्न में सहकारिता का बहुत बड़ा योगदान हो।
देश के पहले सहकारिता मंत्री ने कहा कि वर्तमान में देश में कई क्षेत्रों में लगभग साढ़े 8 लाख सहकारी इकाईयां हैं। इनमें से कृषि वित्त वितरण और कृषि से जुड़े सभी क्षेत्रों में सहकारिता का बहुत बड़ा योगदान रहा है। देश में डेयरी और हाऊसिंग की डेढ़ लाख समितियां हैं, 97 हज़ार पैक्स हैं और मधु सहकारी समितियां 46 हज़ार हैं, उपभोक्ता समितियां 26 हज़ार हैं, कई मत्स्यपालन सहकारी समितियां हैं और कई सहकारी चीनी मिलें हैं। देश के 51 प्रतिशत गांव और 94 प्रतिशत किसान किसी ना किसी रूप में कोऑपरेटिव से जुड़े हुए हैं। देश की अर्थव्यवस्था में सहकारिता का योगदान बहुत बड़ा है। देश के कुल एग्रीकल्चर क्रेडिट का 20% कोऑपरेटिव सेक्टर देताहै, खाद वितरण 35% कोऑपरेटिव सेक्टर करता है, खादका उत्पादन 25%, चीनी उत्पादन 31%, दूध उत्पादन 10% से ज्यादा कोऑपरेटिव के माध्यम से होता है, गेहूं की खरीद 13% से ज्यादा कोऑपरेटिव सेक्टर करता है और धान की खरीदी 20% से ज्यादा कोऑपरेटिव सेक्टर करता है और मछुआरों का बिजनेस 21% सेज्यादा कोऑपरेटिव सोसाइटी करती हैं।
अमित शाह ने कहा कि सहकारिता के क्षेत्र में हमें नीतिगत एकवाक्यता को अपनाना होगा। हर राज्य का सहकारी विभाग एक ही मार्ग पर और एक ही विषय को लेकर चले। सहकारिता क्षेत्र को देखें तो हमें देश में तीन भाग नज़र आते हैं। पहला, विकसित राज्य जो ज़्यादातर पश्चिम और दक्षिण में हैं। दूसरा, विकासशील राज्य जो मध्य और उत्तर में हैं। तीसरा, अल्पविकसित राज्य जो पूर्व और पूर्वोत्तर में हैं। उन्होंने कहा कि हमारा प्रयास होना चाहिए कि देश के हर राज्य में सहकारिता आंदोलन एक समान रूप से चले। जिन राज्यों में गतिविधियां मंद या बंद हैं, वहां हमें इनमें तेज़ी लाने का प्रयास करना चाहिए और इसके लिए हमें एक नई सहकारी नीति की आवश्यकता है। ऐसी सहकारी नीति जो देश के हर राज्य और केन्द्रशासित प्रदेश के बारे में एकसमान रूप से विचार करके पूरे देश में सहकारिता क्षेत्र के समविकास को सुनिश्चित करने की दिशा में काम करने के साथ-साथ नए क्षेत्रों की भी पहचान करे। श्री शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने देश के 70 करोड़ ग़रीबों के जीवनस्तर को ऊपर उठाने का काम किया है। इन करोड़ों लोगों को मोदी जी ने घर, पेयजल, गैस सिलिंडर, दो साल से मुफ़्त अनाज, पांच लाख रूपए तक की सभी स्वास्थ्य सुविधाएं और बिजली देने का काम किया है और अब इन लोगों की आकांक्षाएं जगी हैं और अब ये करोड़ों लोग देश के विकास में अपना योगदान देना चाहते हैं। लेकिन इन लोगों के पास पूंजी बहुत कम है और वे देश के विकास में योगदान देना चाहते हैं, तो इसका माध्यम सिर्फ़ सहकारिता ही हो सकती है। सहकारिता एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जिसमें कम से कम पूंजी के साथ भी बहुत सारे लोग एकसाथ आकर बहुत बड़ा योगदान दे सकते हैं और गुजरात में अमूल इसका उत्कृष्ट उदाहरण है। इस प्रकार के सर्वांगीण विकास पर विचार करने के लिए सहकारी नीति को तैयार करने के लिए एक समिति बनाई गई है जिसमें सभी राज्यों का प्रतिनिधित्व है और सहकारिता क्षेत्र में अच्छा काम करने वाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्री सुरेश प्रभु जी को इस समिति का अध्यक्ष बनाया गया है।
केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि मास प्रोडक्शन हमारे देश के अर्थतंत्र के विकास के लिए ज़रूरी है लेकिन 130 करोड़ की आबादी वाले हमारे विशाल देश में प्रोडक्शन बाई मासेज़ (Production By Masses) भी बेहद ज़रूरी है और इसका कॉन्सेप्ट सहकारिता के सिवा कहीं से नहीं आता है। इसके लिए हमारी सहकारिता नीति देश को बहुत आगे ले जाएगी। हमने इस नीति का फ़ोकस तय किया है – फ़्री रजिस्ट्रेशन, कंप्यूटराइज़ेशन, लोकतांत्रिक पद्धति से चुनाव, सक्रिय सदस्यता सुनिश्चित करना, संचालन और नेतृत्व में प्रोफ़ेशनलिज़्म, व्यावसायिकता और पारदर्शिता लाना, ज़िम्मेदारी और जवाबदेही तय होना। इसके साथ-साथ प्रभावी मानव संसाधन नीति, जिसमें पारदर्शिता से भर्तियां हों, बुनियादी ढांचे का सशक्तिकरण, तकनीक का उपयोग और इसके लिए नीति-नियम और दिशानिर्देश, तीनों को हम समाहित करना चाहते हैं। सहकारिता क्षेत्र में अगर युवाओं और महिलाओं की भागीदारी विशेषरूप से हो तो सहकारिता बहुत आगे जाएगी। हमें बाहरी व्यापार जगत से भी जुड़ाव करना होगा और प्रतिस्पर्धा के सभी मानांकों को हासिल करना होगा क्योंकि अब हम प्रतिस्पर्धा से बच नहीं सकते। कोऑपरेटिव को अब स्पर्धा के साथ जीने का स्वभाव बनाना होगा तभी कोऑपरेटिव आगे बढ़ पाएगा। इसके साथ-साथ कुछ नए आयामों को भी हम तराशना चाहते हैं, जैसे- इंश्योरेंस, हेल्थ, टूरिज़्म, प्रोसेसिंग, स्टोरेज और सर्विसेज़। ये ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें कोऑपरेटिव के माध्यम से काफ़ी कुछ किया जा सकता है।
अमित शाह ने कहा कि पैक्स को मल्टीपर्पज़ बनाना होगा, जो आज की ज़रूरत है। कई नए आयाम जो इन मॉडल बाइलॉज के माध्यम से हम जोड़ना चाहते हैं, उसमें पारदर्शिता, रिस्पांसिबिलिटी और गतिशीलता का भी प्रोविजन है।ऐसा कर पाने से हम सहकारिता क्षेत्र की मूल इकाई को मजबूत कर सहकारी क्षेत्र को एक नया और लंबा और मजबूत आयुष्य देने में सफल होंगे। अभी लगभग 65000 पैक्स क्रियान्वयन में हैं और हमने तय किया है कि तीन लाख नए पैक्स हम 5 साल में बनाएंगे। इस तरहलगभग 2,25,000 पैक्स के रजिस्ट्रेशन का लक्ष्य हमने रखा है। ये पैक्स डेयरी भी होंगे, एफपीओ भी होंगे, जल वितरण भी करेंगे, गैस का वितरण भी करेंगे, गोबर गैस भी बनाएंगे, भंडारण का काम भी करेंगे। उन्होंने कहा कि जिन पंचायतों में पैक्स नहीं हैं,हमने उन्हें चिन्हित कर लिया है। अगर पैक्स को इतना बहुद्देश्यीय बनाना है तो इसके अकाउंटिंग सिस्टम को हमें नए सिरे से देखना होगा। इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी ने पैक्स से एपैक्स तक, सुचारू रूप से सीमलैस ट्रांजैक्शन हो, पैक्स के कंप्यूटराइजेशन का निर्णय किया है। हम 65000 पैक्स को प्रथम चरण में कंप्यूटराइज करेंगे और इसका एक अच्छा सॉफ्टवेयर भी भारत सरकार का सहकारिता विभाग बना रहा है जिसमें सारे कामों को समाहित किया जाएगा। इसके बाद पैक्स, डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव बैंक, स्टेट कोऑपरेटिव बैंक और नाबार्ड, चारों एक ही सॉफ्टवेयर और एक ही प्रकार के अकाउंटिंग सिस्टम से चलेंगे जिससे ऑनलाइन ऑडिट की भी सुविधा हो जाएगी। हमारी बहुत सारी दिक्कतें पैक्स के बाइलॉज एक्सेप्ट करने, पैक्स के कंप्यूटराइजेशन और नए सॉफ्टवेयर को अपनाने से समाप्त हो जाएगी। यह सॉफ्टवेयर देश की सभी भाषाओं में उपलब्ध होगा जिससे हर राज्य अपने पैक्स का कारोबार अपने राज्य की भाषा में कर पाएगा। इस तरह से एक महत्वाकांक्षी योजना सहकारिता विभाग लेकर आया है मगर ये सभी के सक्रिय सहयोग के बगैर संभव नहीं हो सकती।
केन्द्रीय सहकारिता मंत्री ने कहा कि डिफंक्ट पैक्स को जल्दी से जल्दी लिक्विडेट करके वहां नए पैक्स बनाए जाएं क्योंकि जब तक पुराने पैक्स का अस्तित्व है जब तक आप नए पैक्स नहीं बना पाएंगे। मोदी सरकार एक नीतिगत विचार भी कर रही है कि अभी तक पैक्स सिर्फ शॉर्ट टर्म फाइनेंस कर रहे हैं लेकिन अब पैक्स मध्यम और लॉन्ग टर्म फाइनेंस भी करें, भले ही खेती बैंक के माध्यम से करें। इसके लिए भी पैक्स को अधिकृत करने का एक विचार चल रहा है। उन्होंने कहा कि सहकारी विपणन को बढ़ावा देने के लिए नेफेड का संपूर्ण स्वरूप बदलने का विचार हो रहा है। नेफेड प्रोएक्टिव होकर स्टेट मार्केटिंग फेडरेशन के साथ रहकर पैक्स को सक्रिय रूप से मार्केटिंग से जोड़ेगा और मार्केटिंग का पूरा मुनाफा अंततोगत्वा नेफेड स्टेट और डिस्ट्रिक्ट फेडरेशन के माध्यम से पैक्स में पहुंचे ऐसी ट्रांसपेरेंट व्यवस्था होने जा रही है। इतने सारे बदलाव के लिए हमें ट्रेंड मैनपावर चाहिए, कोऑपरेटिव फाइनेंस को जानने वाले युवा चाहिए, कंप्यूटर को जानने वाले युवा चाहिए, कोऑपरेटिव के कांसेप्ट को आत्मसात् करने वाले युवा भी चाहिए। अगर ट्रेंड मैन पावर चाहिए तो आज एक भी कोऑपरेटिव यूनिवर्सिटी नहीं है और अब हमने तय किया है कि एक कोऑपरेटिव यूनिवर्सिटी बनाई जाएगी और राज्य के सहकारी संघ के तत्वाधान में हर राज्य में इसकी एक एफिलिएटिड कॉलेज भी खोलेंगे जिससे अलग-अलग प्रकार की कोऑपरेटिव के लिए ट्रेन्ड मैन पावर मिलेगा। इस सहकारिता यूनिवर्सिटी को जिले तक ले जाने का काम भी करेंगे, जिससे ट्रेंड मैन पावर मिलने की संभावना बढ़ जाएगी। श्री शाह ने कहा कि आज अगर सहकारिता का विकास करना है तो हमारे पास डेटा नहीं है। इसके लिए अब एक स्थायी डेटाबेस भी भारत सरकार बनाने जा रही है और यह डेटा बैंक अपडेटेड रहेगा। इस डेटाबेस की पहुँच हम डिस्ट्रिक्ट और इसके यूनियन और डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव बैंक तक देना चाहते हैं।
केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि बीज उत्पादन में भी हम एक मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव बीज उत्पादन कॉपरेटिव बनाने जा रहे हैं जो आरएंडी भी करेगी और बीज की नस्लों को संवर्धित और संरक्षित भी रखेगी और नई नस्लें भी बनाएगी। इसके लिए हम चार पांच बड़े कोऑपरेटिव्स को मिलाकर राष्ट्रीय स्तर पर बीज की गुणवत्ता बढ़ाने और हमारे पुराने बीजों को संरक्षित और संवर्धित करने के लिए एक मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव बनाने जा रहे हैं। आज प्रधानमंत्री जी ने किसानों का आह्वान किया है कि ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा दें। प्राकृतिक खेती आज समय की जरूरत बन गई है और किसान की आय बढ़ाने में प्राकृतिक खेती एक बहुत बड़ा हथियार भी बन सकती है। दुनियाभर में ऑर्गेनिक प्रोडक्ट की मांग है मगर हमारे यहां सर्टिफिकेशन की व्यवस्था नहीं है।इसकी मार्केटिंग और एक्सपोर्ट के लिए अमूल के नेतृत्व में ऑर्गेनिक प्रोडक्ट को सर्टिफाई और मार्केटिंग करने की एक कोऑपरेटिव बनाने जा रहे हैं जो मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव होगी, जिसमें सभी राज्यों को जोड़ेंगे। आने वाले 2 महीनों के अंदर ही बीज संवर्धन और जैविक उत्पादों की मार्केटिंग और सर्टिफिकेशन की मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव बना लेंगे जिससे राज्य जुड़ेंगे तो राज्य के ऑर्गेनिक फार्मिंग करने वाले किसानों को बहुत बड़ा फायदा होगा। इसके साथ ही अमूल, इफको, नेफेड, एनसीडीसी और कृभको मिलकर एक मल्टीस्टेट एक्सपोर्ट हाउस बनाने जा रहे हैं जो खादी के उत्पादों, हैंडीक्राफ्ट और एग्रीकल्चर उत्पाद को विश्व भर के बाजार में एक्सपोर्ट करने का काम करेगा। छोटी से छोटी कोऑपरेटिव इकाई के प्रोडक्ट को एक्सपोर्ट करने के लिए यह मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव एक्सपोर्ट हाऊस बनेगा वही उसको आगे तक ले जाएगा।
श्री अमित शाह ने कहा कि पैक्स के कंप्यूटराइजेशन के साथ-साथ मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव के कानून में हम बहुत बड़े बदलाव लाने जा रहे हैं। मॉडल बायोलॉज भी ला रहे हैं, राष्ट्रीय सहकारिता विश्वविद्यालय बना रहे हैं, राष्ट्रीय सहकारी डाटा बैंक बना रहे हैं, एक एक्सपोर्ट हाउस भी बना रहे हैं, ऑर्गेनिक एग्रीकल्चर प्रोडक्ट को बेचने के लिए एक मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव सोसाइटी बना रहे हैं और बीज उत्पादन के लिए भी हम एक कोऑपरेटिव बनाने जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि सहकारिता मंत्रालय ने कोऑपरेटिव को मजबूत करने के लिए पिछले एक साल में बहुत सारे काम किए गए हैं। पहले, चीनी मीलों के लिए अतिरिक्त आयकर लगता था जो एक बहुत अन्याय की बात थी और 50 साल से चल रही थी। सहकारिता मंत्रालय बनने के 1 माह के अंदर ही अतिरिक्त आयकर को समाप्त कर कर हमने कोऑपरेटिव को बहुत बड़ा समानता का स्टेटस देने का काम किया है। सहकारी समिति पर अधिभार को 12% से घटाकर 7% कर दिया है। देश भर की कोऑपरेटिव को इसका फायदा हुआ, एमएटी दर को 18.5% से घटाकर 15% पर लाकर कोर्पोरेट के लेवल पर लाने का काम किया है। GeMसे खरीद करने और बेचने केलिए कोऑपरेटिव को हमने मान्यता दी है। ग्रामीण और शहरी सहकारी व्यावसायिक बैंकों पर बहुत सारे पॉजिटिव निर्णय कर कर उनका व्यापार बढ़े, इस प्रकार का आरबीआई से बदलाव कराने में भी हमने सफलता मिली है और इसके साथ साथ शहरी सहकारी बैंक और बैंकिंग क्षेत्र के आरबीआई के साथ सभी लंबित सवालों की भी लिस्टिंग हो चुकी है।
केन्द्रीय सहकारिता मंत्री ने कहा कि अब सहकारिता आंदोलन के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार नहीं हो सकता। मोदी जी ने यह विश्वास समग्र सहकारिता क्षेत्र को दिया है परंतु हमें भी पारदर्शिता लानी होगी, जवाबदेह होना होगा, कुशलता बढ़ानी होगी, टेक्नोलॉजी को एक्सेप्ट करना होगा, प्रोफेशनलिज्म को एक्सेप्ट करना होगा और परिश्रम करके नए नए क्षेत्रों में सहकारिता को पहुंचाना होगा। उन्होंने कहा कि सहकारिता राज्यों का क्षेत्र है और जब तक राज्य की इकाइयां इस बदलाव के लिए अपने आपको तैयार नहीं करती, ये कभी नहीं हो सकता। इन सभी बदलावों को राज्य भी अडॉप्ट करें और इस रोड मैप में आपका योगदान हो, तभी सहकारिता को ताकत मिल सकती है। कोऑपरेटिव क्षेत्र को अगले 100 साल में अर्थ तंत्र का एक मजबूत स्तंभ बनाकर देश के करोड़ों गरीबों के कल्याण के अलावा इसका कोई उद्देश्य नहीं है।