भू-कानून अध्ययन एवं परीक्षण समिति ने कई अहम संस्तुतियां दी हैं। इनमें जिलाधिकारी के कृषि अथवा औद्यानिक परियोजना को भूमि खरीदने की अनुमति दी जाती है लेकिन कई प्रकरणों में अनुमति का उपयोग उचित नहीं होता। ऐसे में पर्वतीय क्षेत्रों में रोजगार सृजन नहीं हो रहा है। समिति मानती है कि ऐसी अनुमतियां जिलाधिकारी के स्थान पर शासन से दिलाई जाए।
यही नहीं सूक्ष्म एवं मध्यम एवं लघु श्रेणी के उद्योगों के लिए भूमि को क्रय करने की अनुमति जिलाधिकारी देते हैं, समिति ने इन्हें भी शासन स्तर पर आवश्यकता के आधार पर देने की बात कही है। पर्वतीय एवं मैदानी क्षेत्रों में औद्योगिक परियोजनों, आयुष शिक्षा, स्वास्थ्य, चिकित्सा शिक्षा, उद्यान एवं विभन्न प्रसंस्करण, पर्यटन, कृषि के लिए 12.05 एकड़ से ज्यादा भूमि राज्य सरकार दें। प्रचलित व्यवस्था के स्थान पर न्यूनतम भूमि आवश्यकता शासन द्वारा दी जाए।
समिति ने अपनी संस्तुति में कहा है कि केवल बड़े उद्योगों के अतिरिक्त 4-5 सितारा होटल, रिसोर्ट, विशेषज्ञ चिकित्सालय, शैक्षिक संस्थान आदि को अत्यावश्यक प्रमाण पत्र के बाद भी भूमि क्रय करने की अनुमति दी जाए। समिति की संस्तुतियों में कहा गया है कि गैर कृषि प्रयोजन हेतु खरीदी गई भूमि को 10 दिन में उपजिलाधिकारी धारा 143 के अतंर्गत गैर कृषि घोषित करते हुए खतौनी में दर्ज करें तथा निर्धारित प्रयोजन में उपयोग करने की शत हो। यदि 10 दिन में गैर कृषि घोषित किया जाता है तो यह भूमि धारा 167 के अंतर्गत उल्लंघन की स्थिति में राज्य में निहित की जा सकती है।
समिति ने संस्तुति की है कि कोई व्यक्ति अपने परिवार के किसी भी सदस्य के नाम ढाई सौ वर्गमीटर जमीन आवासीय प्रयोजन से खरीद सकता है। राज्य सरकार भूमिहीन को अधिनियम में परिभाषित करें और पर्वतीय क्षेत्रों में 5 नाली एवं मैदानी क्षेत्रों 0.5 एकड़ न्यूनतम भूमि मानक भूमिहीन की परिभाषा में शामिल हो।
समिति ने नदी नालों, वन क्षेत्र, चारागाहों, सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण कर अवैध कब्जा करने वालों के विरुद्ध यथोचित दंड का प्रावधान किया है। इस प्रकार के लगभग 23 प्रावधान समिति द्वारा किए गए हैं। समिति के सदस्यों में सुभाष कुमार के साथ-साथ बद्री केदार समिति के अध्यक्ष अजेन्द्र अजय, सेवानिवृत्त आईएएस अरुण ढौंडियाल, डीएस गर्ब्याल और वर्तमान राजस्व सचिव दीपेन्द्र कुमार चौधरी शामिल हैं।