जब कोई व्यक्ति सड़क पर चल रहा होता है तो उसके हाथ में वाहन भी एक हथियार की तरह ही होता है। यह बात पहले अदालत ने उन अभिभावकों को फटकार लगाते हुए कही थी, जो अपने नाबालिग बच्चों को वाहन चलाने को दे देते हैं और वे बेखयाली में हादसे कर बैठते हैं। इस तरह जिसके हाथ में वाहन है, वह उसका इस्तेमाल इरादतन किसी की हत्या के लिए भी कर सकता है।
अगर ऐसे मामलों में किसी को सजा मिलती है, जिसमें रसूखदार लोग शामिल हों, तो उससे दूसरों को सबक मिलता और न्याय व्यवस्था पर विश्वास बढ़ता है। हमारे देश में रसूखदार लोगों से जुड़े मामलों में सजा की दर काफी कम है, इसलिए लोगों में यह धारणा बनी हुई है कि ऐसे लोग अपने प्रभाव के चलते बरी हो जाते हैं। इस अर्थ में पूर्व खिलाड़ी और कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू को मिली सजा से लोगों की यह प्रचलित धारणा कुछ कमजोर होगी। मामला चौंतीस साल पुराना है। सड़क चलते हुए विवाद में एक बुजुर्ग को सिद्धू ने मुक्का मारा था, जिससे उसकी मौत हो गई थी। लंबी सुनवाई के बाद पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने सिद्धू को एक हजार रुपए का जुर्माना लगा कर बरी कर दिया था।
इस फैसले को पीड़ित पक्ष ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी कि वह इस फैसले से संतुष्ट नहीं है। इस याचिका के विरुद्ध सिद्धू ने अपने आचरण और सामाजिक साख का हवाला देते हुए अपील की थी कि मामले को दुबारा न खोला जाए। मगर सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले को गंभीर मानते हुए फैसला सुनाया कि एक जवान आदमी का हाथ भी हथियार होता है। इसे गैरइरादतन हत्या का मामला मानते हुए सिद्धू को एक साल सश्रम कारावास की सजा सुनाई।
सड़क चलते झगड़ों यानी रोड रेज के मामले पिछले कुछ सालों में लगातार बढ़े हैं। राह चलते किसी की गाड़ी दूसरी गाड़ी से छू भर जाती है कि लोग आपा खो बैठते हैं। ऐसे झगड़ों में अनेक लोग गंभीर रूप से घायल हो चुके हैं, कई की मौत भी हो चुकी है। यह किसी भी तरह से एक सभ्य समाज में सड़क पर चलने का सलीका नहीं कहा जा सकता। सिद्धू को एक हजार रुपए जुर्माने पर रिहा करना अदालतों के सामने एक नजीर बनता उन बहुत सारे लोगों के लिए, जो सड़क चलते संयम खो देते और किसी की जान तक ले लेने में गुरेज नहीं करते।
जब कोई व्यक्ति सड़क पर चल रहा होता है तो उसके हाथ में वाहन भी एक हथियार की तरह ही होता है। यह बात पहले अदालत ने उन अभिभावकों को फटकार लगाते हुए कही थी, जो अपने नाबालिग बच्चों को वाहन चलाने को दे देते हैं और वे बेखयाली में हादसे कर बैठते हैं। इस तरह जिसके हाथ में वाहन है, वह उसका इस्तेमाल इरादतन किसी की हत्या के लिए भी कर सकता है।
हमारे देश में सड़क दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाना बड़ी चुनौती है। तिस पर रफ्तार पसंद लोग जरा-सा व्यवधान पसंद नहीं करते और उनकी राह में कोई दूसरा वाहन आ जाए तो उनका संयम जवाब दे जाता है। नशा करके वाहन चलाने वाले तो अलग समस्या पैदा करते रहते हैं। उसमें अगर अदालतें इस आधार पर किसी व्यक्ति की गलती को नजरअंदाज करने लगें कि समाज में उसकी हैसियत क्या है, तो फिर सामान्य नागरिकों में कानून के प्रति क्या सम्मान का भाव रह जाएगा।
कानून सबके लिए बराबर है, तो फिर उसमें किसी खास के प्रति नरमदिली क्यों। अच्छी बात है कि सिद्धू ने अदालत के फैसले को स्वीकार करते हुए समर्पण कर दिया। मगर इस फैसले से सर्वोच्च न्यायालय ने एक बार फिर स्पष्ट संकेत दिया है कि सड़क पर चलते समय अपने रुतबे को साथ लेकर चलने के बजाय सभ्य और जिम्मेदार नागरिक की भूमिका के साथ चलें।