झुंझुनू जिले में अरावली पर्वतमालाओं के मध्य स्थित तीर्थराज लोहार्गल में बाबा मालकेतु की 24 कोसीय ( 72 किलोमीटर) परिक्रमा की अच्छी-खासी रंगत दिखने लगी है। खाकी अखाड़े के महंत दिनेशदास महाराज के सान्निध्य में साधु-संतों की टोली परिक्रमा का नेतृत्व कर रही है। बाबा मालखेत की 24 कोसीय परिक्रमा का बड़ा महत्व है। यह परिक्रमा गोगानवमी से शुरू होकर अमावस्या के दिन संपन्न होती है। अमावस्या के दिन लोहार्गल के सूर्यकुण्ड में महास्नान होगा, जिसमें हर साल की तरह इस वर्ष भी लाखों श्रद्धालु भाग लेंगे।
अखिल भारतीय चतुर्थ संप्रदाय के अध्यक्ष दिनेशदास महाराज का कहना है कि भाद्रपद मास में ठाकुरजी की पालकी लेकर पैदल चलने की परंपरा लंबे समय से चली आ रही है। देश में किसी प्रकार की आपदा नहीं आए और अमन चैन बना रहे ऐसी प्रार्थना करते हुए संत समाज की ओर से परिक्रमा की जाती ळें मालखेत बाबा की परिक्रमा अमावस्या तक चलेगी। सभी पैदल यात्री लोहार्गल के सूर्य कुंड में अमावस्या का स्नान करके परिक्रमा का समापन करते हैं। श्रद्धालु पदयात्री मंदिरों में दर्शन और दान-पुण्य करते हुए अपने घरों की तरफ लौट जाते हैं।
इस पैदल यात्रा का नेतृत्व बड़ा मंदिर में विराजमान ठाकुरजी की पालकी करती है। चतुर्थ संप्रदाय के अध्यक्ष जो चारोड़ा धाम खंडेला, सीकर पीठ और लोहार्गल बड़ा मंदिर के महंत के सानिध्य में पालकी निकाली जाती है। इस पालकी को संत महंत कंधे पर लेकर चलते हैं।
लोहार्गल तीर्थस्थल को शेखावाटी के हरिद्वार के रूप में मान्यता प्राप्त है। 24 कोसीय परिक्रमा के दौरान लाखों श्रद्धालु मालकेतु पर्वत के चारों ओर निकलने वाली नदियों की सात धाराओं के दर्शन कर स्नान करते हैं। इन धाराओं में लोहार्गल, किरोड़ी, शाकंभरी, नाग कुण्ड, टपकेश्वर महादेव, शोभावती और खोरी कुण्ड शामिल है। परिक्रमा की अगुवाई कर रही ठाकुर जी की पालकी का पहला रात्रि विश्राम किरोड़ी और दूसरा शाकंभरी में तीसरा रात्रि विश्राम खाकी अखाड़ा पर हुआ। अरावली पर्वतमाला की हरियाली पहाडियों के बीच अमावास तक आस्था का ये कारवां यूं ही चलता रहेगा।
तीर्थराज लोहार्गल से शुरू होकर 24 कोसीय परिक्रमा ज्ञान बावड़ी, शिव गोरा मंदिर गोल्याना, चिराना, किरोड़ी, देलसर की घाटी, कोट गांव, कोट बांध, शाकंभरी, सकराय, नाग कुंड, टपकेश्वर महादेव मंदिर, शोभावती, बारा-तिबारा, नीमड़ी घाटी, रघुनाथगढ़, रामपुरा, खोरी कुण्ड, रामपुरा व गोल्याणा होते हुए वापस लोहार्गल में संपन्न होती है। वर्षों से चली आ रही परंपरा के अनुसार 24 कोसीय परिक्रमा की अगुवाई ठाकुर जी की पालकी करती है। बाबा मालखेत की 24 कोसी परिक्रमा का पुराणों में विशिष्ट महत्त्व है।
24कोसीय परिक्रमा शुरू करने की काफी अलग-अलग मान्यताएं हैं। हर क्षेत्र के लोगों की भिन्न-भिन्न मान्यताएं हैं। प्रचलित प्रथा के अनुसार सबसे पहले तीर्थराज लोहार्गल में स्थित सूर्य कुंड में स्नान किया जाता है। स्नान के बाद सभी मंदिरों में दर्शन कर परिक्रमा शुरू की जाती है। लोहार्गल से शुरू हुई परिक्रमा के संपन्न होने पर एक बार फिर सूर्य कुण्ड में स्नान करना चाहिए। स्नान के बाद विभिन्न मंदिरों में दर्शन व दान-पुण्य करते हुए गंतव्य की ओर प्रस्थान किया जाता है।
श्रद्धालुओं के जत्थे अरावली पर्वतश्रंखला की दुर्गम पहाडियों पर चढ़ते हुए नजर आने लगे हैं। पहाड़ों पर हरियाली चादर के बीच आस्था की ऐसी रेलमपेल का नजारा देखते ही बनता है। 24 कोसीय परिक्रमा का रास्ता पहाड़ी व कच्चा होने से परिक्रमा करने वाले श्रधालुओं को काफी परेशानी उठानी पड़ती है। परिक्रमा के मार्ग में सुविधाओं का भी सवर्था अभाव नजर आता है। ऊंचे-ऊंचे पहाडियो के मध्य से गुजरते रास्ते पर बच्चे, बूढ़े, महिला, पुरूष सभी पूरे जोश के साथ बाबा के जयकारे लगाते हुये यात्रा के पथ पर चलते रहते हैं। क्षेत्र के लोगों की आस्था के कारण लोग पूरी श्रद्वा से परिक्रमा करते हैं। इस परिक्रमा में ऐसे हजारों लोग मिल जायेंगें जो कई वर्षों से नियमित परिक्रमा में शामिल होते हैं।
तीर्थराज लोहार्गल से स्नान करके परिक्रमा शुरू करने का क्रम तेज हो गया। लोहार्गल से शाकंभरी तक दर्जनों स्थानों पर निशुल्क सेवा शिविर लगे हुए हैं। गोल्याणा में शिव गौरा मंदिर ट्रस्ट की ओर से निशुल्क सेवा शिविर लगाए गए हैं। चिराना के सार्वजनिक चैक में निशुल्क भोजन, चाय-नाश्ता व दवा आदि की व्यवस्था की गई है। किरोड़ी में पदयात्रियों को मालपुवे खिलाए जा रहे हैं।
गोल्याणा से लोहार्गल तक अमावस्या के दिन लक्खी मेला लगेगा। जिसमें लाखों श्रद्धालु स्नान करने आएंगे। अमावस्या का महास्नान करने पर ही परिक्रमा को पूरा माना जाता है। इस बार एक तिथि का ह्रास होने की वजह से रविवार को अमावस्या है। अमावस्या की पूर्व संध्या पर विभिन्न मंदिरों व धर्मशालाओं में भजन संध्या व अन्य धार्मिक कार्यक्रमों का आनंद लिया जा सकता है।