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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आयकर विभाग पर पचास लाख रुपये का हर्जाना लगाते हुए यह राशि तीन हफ्ते में प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में जमा करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने बैंक आफ बड़ौदा में जमा ही नहीं की गई राशि पर आयकर निर्धारण की कार्रवाई पर नोटिस जारी करने और आपत्ति पर विचार न कर निरस्त करने को शक्ति का दुरुपयोग मानते हुए यह आदेश दिया है। हालांकि कोर्ट ने अपर सॉलिसिटर जनरल के अनुरोध पर एक सितंबर की सुनवाई की तिथि तक हर्जाना राशि के अमल को स्थगित कर दिया है। यह फैसला न्यायमूर्ति एसपी केसरवानी तथा न्यायमूर्ति जयंत बनर्जी की खंडपीठ ने एसआर कोल्ड स्टोरेज की याचिका पर दिया है। कोर्ट ने याची के खिलाफ आयकर निर्धारण कार्रवाई तथा नोटिस को भी रद्द कर दिया है। साथ ही केंद्र सरकार के वित्त सचिव को एक माह में ऐसा तंत्र विकसित करने का भी निर्देश दिया, जिसमें पोर्टल का डाटा सही हो जिससे कोई करदाता परेशान न हो। अधिकारियों की मनमानी पर रोक लगे और जवाबदेही तय हो सके। बता दें, याची ने यूनियन बैंक में 3 करोड़ 41 लाख 81 हजार रुपये जमा किए, जबकि बैंक आफ बड़ौदा में कोई कैश नहीं जमा किया। फिर भी 13 करोड़ 67 लाख 24 हजार रुपये बैंक आफ बड़ौदा में जमा करने के आरोप में कार्रवाई की गई। याची ने आपत्ति करते हुए कहा कि उसने बड़ौदा बैंक में पैसा जमा नहीं किया। याची ने आरोप लगाया कि पोर्टल परेशान करने वाला है, वहां कोई सुनवाई नहीं होती और प्रधान मुख्य आयकर आयुक्त को बेसिक सिद्धांत तक नहीं मालूम। आयकर विभाग ने अदालत में दलील दी कि याचिका पोषणीय नहीं है। उसे अपील का अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि आपत्ति पर विचार जरूरी है। हाईकोर्ट वैकल्पिक अनुतोष पर निर्णय ले सकता है। याचिका में तथ्य नहीं, कानून का मसला है, ऐसे में सुनवाई की जा सकती है।

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Allahabad High Court

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महाधिवक्ता कार्यालय में आग से जली फाइलों का एक माह बाद भी पुनर्निर्माण न हो पाने को दुखद बताया है। कोर्ट ने कहा कि केस की सुनवाई स्थगित होने के कारण वादकारियों के हितों का नुकसान हो रहा है।

कोर्ट ने कहा सरकारी वकील को दो से तीन हफ्ते का समय दिया गया। कोई जानकारी उपलब्ध नहीं हो सकी। अनिश्चितकाल के लिए इसे जारी नहीं रखा जा सकता। कनिष्ठ अधिवक्ताओं पर पत्रावली की फोटो कापी शासकीय अधिवक्ता कार्यालय को उपलब्ध कराने का अतिरिक्त खर्च डालना उचित नहीं है।

कोर्ट ने कहा सरकार का कर्तव्य है वह फोटोस्टेट मशीन या अन्य माध्यमों से फाइल की कापी की व्यवस्था करे और विभाग सरकारी वकीलों को केस की जानकारी दे ताकि केस की सुनवाई हो सके। यह आदेश न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने विक्रम सिंह की अपील की सुनवाई करते हुए दिया है।

कोर्ट ने कहा कि सरकारी वकील व कोर्ट को इसकी कोई जानकारी नहीं है कि सरकार फाइल के पुनर्निर्माण के लिए क्या प्रयास कर रही है। कोर्ट ने प्रमुख सचिव विधि एवं न्याय को दो दिन में उठाए गए कदमों की जानकारी के साथ हलफनामा दाखिल करने अथवा अगली सुनवाई की तिथि 18 अगस्त को हाजिर होने का निर्देश दिया है।

अपर शासकीय अधिवक्ता ने कहा कि अपीलार्थी अधिवक्ता ने आग में रिकॉर्ड जलने की जानकारी के बावजूद फाइल की छाया प्रति नहीं दी। फाइल नहीं है और विभाग से कोई जानकारी भी उपलब्ध नहीं है। इसलिए सुनवाई स्थगित की जाए। यह भी बताया कि 329 नए केस सूचीबद्ध हैं, जिनमें से 289 केस की फाइल नहीं है। अतिरिक्त वाद सूची के 74 केस में से 73 की फाइल उपलब्ध नहीं है।

अपीलार्थी अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि उसने शासकीय अधिवक्ता कार्यालय को पत्रावली की छाया प्रति 27 जुलाई 22 को दे दी थी। सरकार कोई ठोस उपाय नहीं कर रही है। ऐसी ही स्थिति अन्य कोर्टों की भी है। केस की सुनवाई नहीं हो पा रही है। इस पर कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि यह स्थिति राज्य के लिए दुखद है। आग लगने के एक माह बीत जाने के बाद भी फाइलों के पुनर्निर्माण की ठोस व्यवस्था नहीं हो सकी।

आशा खबर / शिखा यादव 

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