आज का दिन भारतीय आजादी के इतिहास का पुनरावलोकन करने का दिन है। हमें अपने कर्तव्य को बिना किसी आदेश के करना चाहिए। क्योंकि अगर हम किसी के कहने पर अपने कर्तव्यों को पूरा करते हैं तो हम गुलाम हैं। गुलामी की जिन्दगी बहुत ही कठिन होती है और इसी आजादी के लिये हमारे पूर्वजों ने अपने को बलिदान किया।
यह बातें हिन्दुस्तानी एकेडेमी के सचिव देवेन्द्र प्रताप सिंह ने सोमवार को ध्वजारोहण के उपरांत हिन्दुस्तानी एकेडेमी के तत्वावधान में स्वतंत्रता दिवस समारोह एवं आजादी के अमृत महोत्सव के विशेष संदर्भ में ‘स्वतंत्रता आन्दोलन में प्रयागराज की भूमिका’ विषयक संगोष्ठी में सम्बोधित करते हुए कही।
उन्होंने कहा भारत वर्ष की आजादी में जिन शहीदों ने अपने प्राणों की आहुति दी उन्हें नमन का दिन है। आज हम एक आजाद देश के नागरिक हैं, हमारी आजादी का अर्थ है कि हम अपने देश के प्रति अपने कर्मों का पूर्ण निष्ठा और परिश्रम के साथ निर्वाह करेंगे। देश के प्रति पूर्ण ईमानदारी का संकल्प लें। आज नये भारत के निर्माण के लिये संकल्प लेने का दिन है। देवेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा आजादी का अमृत महोत्सव देश के नागरिकों में विशेष उत्साह भर देता है।
संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे रामनरेश तिवारी ‘पिण्डीवासा’ ने कहा कि ‘अंग्रेजों के खिलाफ शुरू हुए विद्रोह और आजादी के आंदोलन की शुरुआत भले ही कहीं से हुई हो लेकिन जब भी इससे जन विद्रोह के प्रारम्भ की बात होगी तो सबसे पहले इलाहाबाद का नाम आएगा। देश में पहली बार अंग्रेजों के खिलाफ जन विद्रोह इसी शहर से शुरू हुआ था। उस समय मुगलों के अंतिम बादशाह बहादुर शाह जफर ने इसी नगर के मौलवी लियाकत अली को नियुक्त किया था, जो बगावत की कमान संभाली और खुसरूबाग को अपना कार्यालय घोषित किया।
वक्ता प्रो. हरि नारायण दुबे ने कहा प्रयागराज के कण-कण में बलिदानियों द्वारा मिली आजादी आज भी उद्घोष करता है। मौलवी लियाकत अली, दुर्गा भाभी से लेकर चंद्रशेखर आजाद, शहीद लाल पद्मधर, जैसे लाखों स्वतंत्रता सेनानियों की याद समेटे आनंद भवन स्वतंत्रता की लड़ाई का जीवंत प्रतीक है। छात्रों, आचार्यों, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों बलिदानी विजयलक्ष्मी पंडित, इंदिरा गांधी, कमला बहुगुणा आदि नारी विभूतियों ने इलाहाबाद के गौरव को अमर बनाया है।
डॉ.शिव शंकर श्रीवास्तव ने कहा इलाहाबाद 1857 के संग्राम से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ति तक आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल रहा। श्रीदेवी मुसुद्दी, दुर्गावती देवी, सुशीला दीदी से लेकर रामचंद्र, हनुमान पंडित, लियाकत अली, त्रिलोकीनाथ कपूर, रोशन सिंह, चंद्रशेखर आजाद, विश्वनाथ वैशम्पायन, सुखदेव राज, कुंदन लाल गुप्त, बटुक नाथ अग्रवाल, रमेश मालवीय, अब्दुल मजीद, मुरारी मोहन भट्टाचार्य जैसे महान अमर शहीद इसी मिट्टी से सम्बंधित रहे हैं।