इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अखिल भारतीय किसान मजदूर सभा (एआईकेएमएस) के महासचिव डॉ. आशीष मित्तल के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई पर रोक लगा दी है। बशर्ते उन्हें जांच में सहयोग करना होगा।
उनके खिलाफ 10 जून 2022 को शहर के अटाला में हुए बवाल के मामले में खुल्दाबाद थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी।
निचली अदालत ने मामले में गैर जमानती वारंट जारी कर दिया था। उच्च न्यायालय ने मामले में यूपी सरकार को नोटिस जारी कर दो सप्ताह में जवाब दाखिल करने को कहा है। कोर्ट ने मामले की सुनवाई केलिए 22 अगस्त की तिथि निर्धारित की है। यह आदेश न्यायमूर्ति ओम प्रकाश त्रिपाठी ने डॉ. आशीष मित्तल की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है।
याची के खिलाफ खुल्दाबाद थाने में आईपीसी की विभिन्न धाराओं के अलावा विस्फोटक पदार्थ अधिनियम, किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम और सार्वजनिक संपत्ति अधिनियम के तहत दर्ज प्राथमिकी में गैर जमानती वारंट जारी किया गया था। मामले में 10 जून को जुमे की नमाज के बाद एक सुनियोजित योजना के तहत हिंसक विरोध प्रदर्शन करते हुए धर्म विरोधी नारे लगाए गए थे और बीजेपी नेताओं पर अभद्र टिप्पणियां कीं गईं थीं। प्राथमिकी में 70 लोगों को नामजद किया गया था और पांच हजार लोग अज्ञात थे।
कोर्ट में याची की ओर से तर्क दिया गया कि वह मुस्लिम समुदाय से नहीं हैं और उन्होंने सभा में भाग नहीं लिया था। यह कहा गया कि मजिस्ट्रेट ने मामले की जांच के दौरान पुलिस के समक्ष याची की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए उसके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया था। तर्क दिया कि वारंट जारी करना गलत है। वारंट आरोपी की कोर्ट में उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए जारी किया जाता है न कि पुलिस की सहायता के लिए।
इसलिए इसे रद्द किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि वह एमबीबीएस डॉक्टर हैं और एम्स में तैनात थे और चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान प्रणाली में सुधार के लिए काम कर रहे हैं। कोर्ट केसमक्ष यह भी बताया गया कि 1982 से 1986 के बीच वह ऑल इंडिया मेडिकल स्टूडेंट्स एसोसिएशन और ऑल इंडिया जूनियर डॉक्टर फेडरेशन के अध्यक्ष भी थे। कोर्ट ने याची के तर्कों को स्वीकार करते हुए उनके खिलाफ पुलिसिया दंडात्मक कार्रवाई पर रोक लगा दी और मामले में सरकार से जवाब दाखिल करने को कहा।
आशा खबर / शिखा यादव